नशा

नशा

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हमारा विद्यालय अनुभव कुछ अनोखा रहा। विद्यार्थी जीवन में नशा करना कोई बडी़ बात नहीं थी। हम जब बारहवीं कक्षा में थें तो, मैं और मेरा दोस्त रफिक कुछ अधिक नशेड़ी थे। विद्यालय की हर छुट्टी हमारे लिये गोल्डन चांस था कि हम दुकान पर आकर एक सुटाँ मार जाये।

वो चाहे लघुशंका हो या फिर दीर्घशंका हमारा पूरा समय लग जाता था।

हालाकिं दुकान अधिक दूर नहीं थी तो हम समय रिकवर कर लेते थे। एक दिन हमारी दिनचर्या के मुताबिक दुकान पर गये कि तुरंत हमारे हिन्दी के अध्यापक आ पहुचें। वो किसी अन्य काम से आये थें।

हमारी सिगरेट जली हुयी थी मगर कश न लगा सके। हम धुएँ को इधर - उधर कर रहे थे। मगर वो उनकी आँखो से ओझल न हो पाया।

हमें कुछ नहीं कहा तो हमें लगा उन्होनें कुछ नहीं देखा। और हम लेट भी हो चुके थे। जब हम प्रवेश की अनुमति लेने लगे तो हम घबरा रहे थे। उनकी आँखो से लग रहा थी वो   हमें कुछ नहीं कहेंगे लेकिन हमारी आँखे बंद हो रही थी।

हमनें जब प्रवेश लिया तो पाठ चल रहा था प्रेमचंद जी का "नशा" उस पाठ ही पाठ में उन्होनें हमारी बंद आँखे खोल दी।

वो कहने लगे कि विद्यार्थी जीवन में नशे के बगैर पढा़ई नहीं होती है। हमारी कक्षा में भी कुछ विद्यार्थी है जो नशे के बगैर पढा़ई नहीं कर पाते है।

"मेरी तरफ ईशारा कर के कहा क्यों शिशपाल " मैं शर्म के मारें पानी पानी हो गया।

मेरा दोस्त भी मेरी तरफ देखकर मुस्करा रहा था। फिर हमारी पिटाई होने वाली थी। क्योंकि मैं झूठ बोल गया। मेरी जमकर पिटाई हुई। मेरा दोस्त रफिक रोजा रखता था। 

इसलिये जब रफिक की बारी आई तो उसने कि मेरा रोजा है। तो उसे छोड़ दिया गया मुझे ये मजूंर नहीं था।

तो मैने कहा सर आज इसने रोजा नहीं रखा है। तो उसकी मुझसे ज्यादा पिटाई हुई।

तब जाकर मुझे चैन की साँस आई। वही दोस्त मेरी जिन्दगी  

के हर कदम पर साथ रहता है। एक बार हमारा गृहकार्य पुर्ण नहीं था। तो हमारें रामलाल जी सर की आदत थी कि घर के अभिभावक से बात करेंगें।

हम दोनों मारे गये।

फिर एक रास्ता निकाला कि क्यों न हम आपस में बात करले। तो मैंने उसका पिता बनकर बात की और उसने मेरे पिता बनकर बात की। दूसरे ही दिन हमारी खुशी से दोंनो का भाँडा फूट गया।

हमें फिर मार खाने को मिली फिर भी हम खुश थे। हम कभी भी लड़ते तो कोई भी सिरियस नहीं लेता था , क्योंकि हमारी लडा़ई सिर्फ कक्षा तक सिमित थी।

बाहर तो ऐसा रौब था कि जब भी अकेला निकलता मैं या मेरा दोस्त, लोग पूछ ही लेते थे दूसरा कहाँ मर गया।


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