STORYMIRROR

Rajesh Kumar Shrivastava

Inspirational

4  

Rajesh Kumar Shrivastava

Inspirational

नरक चतुर्दशी

नरक चतुर्दशी

6 mins
407

     

        

पाँच दिवसीय दीपावली का दूसरा पर्व छोटी दीवाली है । यह पर्व नरक चतुर्दशी या रुप चतुर्दशी के नाम से भी प्रसिद्ध है । यह कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है । इस दिन प्रातःकाल का स्नान अपामार्ग,नीम आदि के पत्तों से युक्त जल से करना चाहिए तथा संध्या के समय यमराज को दीपदान करना चाहिए । ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से नरक से मुक्ति मिलती है ।


द्वापर युग में इसी दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक दैत्य का वध किया था । नरकासुर प्राग्ज्योतिषपुर का राजा था । वह बाणासुर का मित्र था । उसने देवमाता अदिति का कुण्डल, वरुण देव का छत्र तथा देवताओं की मणि आदि बलात् छीन लिया था । नरकासुर ने बीस हजार सुंदर कुमारी कन्याओं की बलि चढ़ाने का संकल्प लिया हुआ था । इसके लिए उसने देश के अलग-अलग भागों से सोलह हजार एक सौ कन्याओं का अपहरण करके उन्हें बंदी भी बनाया हुआ था । इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान कृष्ण से नरकासुर के त्रास से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की । नरकासुर की माता भू देवी थी इस कारण उसका एक नाम भौमासुर भी था भौमासुर ने यह वरदान मांगा था कि उसकी मृत्यु उसकी माता के सिवाय किसी दूसरे के द्वारा न हो । ऐसी कौन माता होगी जो स्वयं अपने पुत्र का वध करेगी ? इस तरह उसने अपनी समझ में मृत्यु से बचने का पूरा प्रबन्ध कर लिया था ।


भगवान कृष्ण इस वरदान के संबंध में जानते थे । भू देवी ने सत्यभामा के रुप में जन्म लिया था । इसीलिये उन्होंने सत्यभामा को साथ लिया और नरकासुर की राजधानी प्राग्ज्योतिषपुर में आक्रमण कर दिया ।  भगवान ने चक्र और गदा के प्रहार से उसकी किलाबंदी को छिन्न-भिन्न कर दिया । सेना का संहार करने के उपरांत ‘मुर’ नामक दैत्य का उद्धार किया । इससे भगवान का एक नाम ‘मुरारी’ प्रसिद्ध हुआ । नरकासुर से भयंकर युद्ध हुआ । नरकासुर के बाण प्रहार से भगवान को मूर्छा आ गई । यह देख माता सत्यभामा अत्यंत क्रोधित हुई तथा नरकासुर से युद्ध करने लगीं । अंततः सत्यभामा के शर के प्रहार से नरकासुर मारा गया । 


उसके मरने के बाद उसका पुत्र भगदत्त राजा बना । उसने नरकासुर के द्वारा बंदी बनाये गये सभी स्त्री-पुरुषों को ससम्मान मुक्त कर दिया । सोलह हजार एक सौ कन्याओं को छोडकर सभी स्त्री पुरुष भगवान श्रीकृष्ण का जयजयकार करते हुए अपने अपने स्थानों को चले गये । कन्याओं ने भगवान से कहा कि -हे भगवन् ! हम सब कहाँ जायें । हमें नरकासुर ने बरसों से बंदी बना रखा था । हमें अब कौन आश्रय देगा ? हमारे निष्पाप होने का विश्वास कौन करेगा ? हमारे माता-पिता भी हमें स्वीकार नहीं करेंगे । इससे यही अच्छा था कि वह पापात्मा नरकासुर हमारी बलि चढ़ा देता । आपने हमें व्यर्थ मुक्त किया ।


भगवान श्रीकृष्ण ने उन कुमारियों से कहा – मैं जानता हूँ कि तुम सब निष्पाप और निरपराध हो ! तुम्हारा अपमान करने वाला अपराधी मारा जा चुका है । यदि तुम सब चाहो तो मैं तुम सबसे विवाह करने को तैयार हूँ, जिससे तुम सबको मान-सम्मान की प्राप्ति हो ।

सभी सोलह हजार एक सौ कन्यायें भगवान से विवाह करने को सहर्ष तैयार हो गयी । इसके बाद श्रीकृष्ण सभी कन्याओं सहित द्वारिका लौटे तथा वरिष्ठ यदुवंशियों की उपस्थिति में सभी का पाणिग्रहण किया । इस तरह भगवान श्रीकृष्ण की पत्नियों की संख्या सोलह हजार एक सौ आठ हुई ।


कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरकासुर के अत्याचारों से मुक्ति मिली थी । इसी कारण चतुर्दशी के दूसरे दिन दीपावली मनाई जाती है 

नरक चतुर्दशी के मनाने के संबंध में दूसरी कथा इस प्रकार है :---


प्राचीन काल में रंति देव नामक एक राजा थे । वे पूर्व जन्म की भाँति इस जन्म में भी महा दानी तथा धर्मात्मा थे । उन्होंने प्रजा की भलाई के लिये बहुत सा कार्य किया । अनेकों बार याजकों विद्वानों को दानादि से संतुष्ट किया था । बहुत से यज्ञ तथा तीर्थाटन भी किया था । कथा श्रवण तो नित्य करते ही थे ।जब देह त्यागने का समय हुआ, तब उनके प्राण लेने यमदूत आये । वे बड़े भयंकर प्रतीत हो रहे थे । उनकी आँखें लाल-लाल तथा क्रोध से भरी हुई थी । वे बार बार कह रहे थे :-- राजन् ! नरक में चलो ! नरक में चलो ! 


यह सुन कर राजा भयभीत हो गया और यमदूतों से पूछने लगा:--- हे यमदूतों ! मुझे कौन से अपराध की वजह से नरक में ले जा रहे हो ? उसे कहो ! मैंने क्या पाप किया है ?


यमदूत बोले:-- राजन ! आपके सत्कार्यों तथा पुण्यों को तो सारा संसार जानता है किंतु आपके पाप कर्म केवल भगवान तथा यमराज ही जानते हैं ।

राजा ने उनसे निवेदन किया कि जानते हों तो उसके पाप कर्म को बता दें । जिससे उसका प्रायश्चित किया जा सके ।


यमदूत बोले :-- राजन ! एक बार आपके द्वार से एक अकिंचन, भूखा ब्राह्मण भूखा ही लौटा दिया गया था । इसी पाप की वजह से आपको नरक में जाना पड़ेगा !


यह सुन कर धर्मात्मा राजा रंति देव बहुत दुखी हुआ । उसने यमदूतों से निवेदन किया कि वे इस पाप का प्रायश्चित करने के लिये उसे एक वर्ष का समय दें । भगवद् प्रेरणा से यमदूतों ने राजा का प्राण अपने पाश से मुक्त कर दिया ।

जीवित होते ही राजा ऋषियों के पास गया तथा पाप से शीघ्र मुक्ति का उपाय पूछा । ऋषियों ने कहा :- राजन् ! आप कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को व्रत रखिये तथा भगवान कृष्ण का पूजन कीजिए । ब्राह्मणों को भोजन कराईये तथा अपना अपराध बताकर उनसे क्षमा माँगिये । इतना करने से आप पाप मुक्त हो जायेंगे ।


राजा रंति देव ने ऐसा ही किया । जिससे उसके पाप क्षय हो गये । एक वर्ष बाद राजा के प्राण लेने यमदूत नहीं आये । बल्कि भगवान के पार्षद विमान लेकर आये । तथा राजा को विमान में आदर सहित बैठाकर भगवद् धाम को ले गये ।

राजा को नरक चतुर्दशी व्रत करने से नर्क से मुक्ति मिली थी । 


नरक चतुर्दशी का एक नाम रुप चतुर्दशी भी है. इसकी कथा इस प्रकार है :--


प्राचीन काल में एक योगी हुए । वे अखण्ड समाधि के द्वारा भगवान का ध्यान-दर्शन करना चाहते थे । अत: उन्होंने समाधि लगा ली । योगीराज ने तन की शुचिता पर कम तथा मन की एकाग्रता पर ज्यादा ध्यान दिया था । फलतः उसके सिर भौं दाढ़ी-मूछ आदि में जूँए लग गये । शरीर रोगग्रस्त हो गया । जो थोड़ा-बहुत ध्यान लग रहा था वह भी लगना बंद हो गया ।


 भगवद् कृपा से देवर्षि नारद से उनकी भेंट हुई । उनकी दशा देखकर देवर्षि बोले:-- योगी राज ! आपने अपने देह धर्म का पालन भलीभाँति नहीं किया । इसी से आपकी यह दुर्दशा हो रही है । शरीर को स्वस्थ रखना भी आवश्यक होता है क्योंकि सभी प्रकार के कार्य शरीर के द्वारा ही संभव हो पाता है ।


ऐसा कहकर देवर्षि नारद ने योगी राज को कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के व्रत- पूजन का महात्म्य बताया । योगीराज ने देवर्षि के बताये अनुसार व्रत अनुष्ठान किया । भगवान की कृपा से उनका शरीर पूर्ववत सुंदर तथा हृष्ट-पुष्ट हो गया । 

इस कारण नरक चतुर्दशी का एक नाम रुप चतुर्दशी भी है ।


वायु पुराणादि के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को श्री हनुमान जी का जन्म हुआ था । अत: इस दिन को ‘हनुमान जन्मोत्सव’ के रुप में भी मनाया जाता है । इस तरह हिन्दू संस्कृति में नरक चतुर्दशी का पर्व विशेष स्थान रखता है ।

 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational