नमन

नमन

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आज पूरा शहर बड़ा खुश है और दुल्हन की तरह सज़ा हुआ है। हो भी क्यों ना, शहर का नाम रोशन करने वाला, इतिहास में दर्ज करने वाला ,सरहद का रखवाला, इस शहर का बेटा नमन आज वापस आ रहा है। 


दो साल ही हुए हैं बस नमन को फौज में भर्ती हुए और लगभग छः महीने पहले अपने कुछ आदमी छुड़वाने के लिए आतंकवादियों ने नमन और उसके तीन साथियों को पकड़ लिया था। चारों को बहुत यातनाएं दी गई थी जिसके वीडियो भी सारी दुनिया ने देखे थे। 


सरकार ने बड़ी कोशिश करी थी उन्हें छुड़वाने की लेकिन आतंकवादियों की मांगें कुछ ज़्यादा बड़ी थी। उन्हें अपना एक ऐसा साथी छुड़वाना था जो बहुत खतरनाक था। फिर एक बार जब इन चारों का लाइव वीडियो आतंकवादियों ने दिखाया तब इन्होंने बड़ी निडरता से कायरों की तरह छूटने से मना कर दिया था कि ऐसी ज़िन्दगी से मौत भली और यही जवाब इन देश के रखवालों के परिवार वालों ने दिया था कि उनके लिए देश सर्वोपरि है।


धन्य हैं ऐसे वीर, नमन है उनके परिजनों को और इस देश की मिट्टी को जो ऐसे रतन पैदा करती है।


आखिर में ये लोग छूटे तो सही पर अपने बलबूते पर। चारों में से एक अब नहीं रहा था और बाकी तीन भी कुछ ना कुछ गवां चुके थे जैसे की नमन अपना बायां हाथ खो चुका था। हां ये ज़रूर था कि जितना इन्होंने खोया उससे तिगुना इन्हे पकड़ने वालों को खोना पड़ा था। उनका पूरा कैंप ही ख़तम कर आए थे ये भारत मां के वीर।


अपने शहर में नमन ने जब पहला कदम रखा तो झुक कर अपनी मातृभूमि को चूम लिया। सारे शहर के लोग उसका स्वागत ताली बजा कर कर रहे थे और गले में फूलों की माला डाल रहे थे। नमन अपने माता पिता के गले लग गया। बहुत खुश था वो लेकिन शहर में घुसते ही कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो गई थी।


आज से लगभग तीन साल पहले की बात है। तब नमन आज के नमन जैसा नहीं था, बहुत बिगड़ा हुए ,आवारा लड़का था जो जैसे तैसे करके बी. ए पूरा कर रहा था। दिन भर इधर उधर घूमना और दोस्तों की बातों में आकर उल्टे सीधे काम करना उसका रोज़ का रूटीन था।


ऐसे ही एक दिन बाइक पर स्टंट करते उसकी नजर नीलिमा पर पड़ी और वो पहली नजर में ही दिल हार गया। एक ही दिन में उसने नीलिमा की सारी कुंडली निकलवा ली थी, वो कहां रहती थी, किस कॉलेज में पढ़ती थी, उसकी सहेलियां वगैरह सब। अब बस उसका दिल जीतना बाकी था।


हर तरह के हथकंडे अपनाए नमन ने, नीलिमा का दिल जीतने के पर नीलिमा बड़ी सुलझी लड़की थी। उसे आवारा नमन में रती भर भी दिलचस्पी नहीं हुई अलबत्ता उससे चिढ़ने ज़रूर लगी थी वो। रोज़ रोज़ नमन के अपने पीछे आने से वो बेहद परेशान थी।


एक दिन जब वो कॉलेज से वापस आ रही थी तो नमन उसके चारों ओर अपनी बाइक से स्टंट करने लगा ताकि नीलिमा को रिझा सके।लेकिन उस दिन नीलिमा के सब्र का बांध टूट गया। उसने खींच कर नमन को दो झापड़ रसीद कर दिए और बोली कि किस बात पर इतरा रहे हो तुम, तुम में है ही क्या। मां बाप के कमाए पैसों पर ऐश कर रहे हो, अपनी मेहनत से कभी एक रुपया भी कमाया है क्या तुमने। आज अपनी हरकतों से मां बाप को रुला रहे हो, कल को अगर मैं तुम्हारी ज़िन्दगी में आई तो मुझे भी रुलाओगे। इधर सड़कों पर आवारागर्दी करके मरने से अच्छा है कि फौज में भर्ती हो जाओ। मरोगे तो शहीद तो कहे जाओगे कम से कम। 


ये सब कह कर नीलिमा तो चली गई लेकिन नमन को हकीकत से रूबरू करा गई। समय भी शायद नमन के पक्ष में था जो उसने नीलिमा की बातों को दिल पर ले लिया और कड़ी मेहनत करके वो फौज में भर्ती हो गया। 

नमन पुरानी यादों से बाहर आ गया। आज भी वो नीलिमा का शुक्रगुजार था कि उसकी वज़ह से वो सही राह पर आ गया था। लेकिन अब उसे पता था कि नीलिमा को भूलने का वक़्त आ चुका है। वो भला एक अपाहिज के साथ कैसे सारी ज़िन्दगी बिताएगी, ये सोच वो मुस्करा दिया। बड़ा पक्का दिल जो होता है हमारे फौजी भाइयों का।


नमन घर पहुंच कर आराम करने लगा। अगले दिन उसके पिताजी ने नमन को कहा कि उसके लिए एक रिश्ता आया है। हम अभी करना नहीं चाह रहे थे कि तुम पहले अच्छे से आराम कर लो पर लड़की वाले मान ही नहीं रहे, अड़े हुए हैं कि एक बार मिल लो बस। तुम्हारे चाचाजी के जानकार है इसलिए पूरा दबाव बना दिया है उन लोगों ने। तुम एक बार मिल लो फिर बेशक ना कह देना। तुम्हारे चाचाजी का मान रह जाएगा। नमन इस बात पर क्या कहता, मान गया ।


लेकिन अगले दिन जब लड़की सामने आई तो वो नीलिमा को देखकर हैरान रह गया। नीलिमा के चेहरे की खुशी देखने लायक थी। अकेले में जब नमन ने उस से शादी करने से मना कर दिया कि वो अपने अपाहिज शरीर का बोझ किसी पर नहीं डालेगा तो नीलिमा कमर पर दोनों हाथ रख कर उस से लड़ने लगी की मेरे फौजी वीर को अपाहिज कहा तो मुझसे बुरा कोई ना होगा और शादी तो तुम्हे मुझसे करनी ही पड़ेगी वरना मैं तुम्हारे घर के बाहर धरने पर बैठ जाऊंगी।


उसकी बातें सुनकर नमन ज़ोर से हंस पड़ा। नीलिमा ने उसे बताया कि जब उसने नमन का वीडियो देखा था जिसमें उसने सरकार को मना किया था खुद को छुड़वाने से, तभी उसे नमन से प्यार हो गया था। वो कहने लगी कि ये तो तुम वापस आ गए नहीं तो मैंने सारी उम्र तुम्हारे प्यार के नाम पर अकेले गुजार देनी थी। तुम्हारे जैसे वीर देशभक्त के बाद मुझे कभी कोई पसंद आ ही नहीं सकता था।


नमन उसकी बातें सुन खुश हो गया। आज उसे शायद अपनी मातृ भूमि की सेवा का फल भी मिल गया था।


सच में, हमारे देश के इन फौजी वीरों को दिल से सैल्यूट और इनको दिल पर पत्थर रख कर फौज में भेजने वाले परिवार वालों को भी नमन।


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