Shelley Khatri

Drama

5.0  

Shelley Khatri

Drama

नियति

नियति

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उसकी जिंदगी सफेद हो गई, सफेद पत्थर। सुनी आंखें पथरा सी गई हैं। कौन कहेगा, वह कभी चंचल बालिका थी।

खुशी बचपन से ही चंचल थी। कोयल सी मधुर आवाज। जो भी सुनता बरबस उस आवाज के आकर्षण में बंधा उसे गोद में उठाता और बातें करने की कोशिश करता।

जैसे जैसे खुशी बड़ी होने लगी, उसकी सुंदरता और मधुर आवाज की चर्चा दूर दूर तक फैलने लगी। मलाई जैसी गोरी खुशी को सफेदी बहुत भाती थी। सहेलियां छेड़ती - तू तो खुद गोरी है, व्हाइट ड्रेस क्यों पहनती है। डार्क कलर पहना कर।

खिलखिलाती खुशी का जवाब होता- यह सफेद है बेबे। रंगों का राजा। जानती नहीं सारे रंग मिलकर सफेद हो जाते हैं। यह दृष्टि का ही अंतर है। प्रिज्म से झांक कर देख मैंने इंद्रधनुष धारण किया है। उसके तर्क सबको निरूतर कर देते।

और खुशी पहुंच गई कॉलेज में पर वही अल्हड़पन रहा। वैसी ही शरारतें करती और कोयल सी कूकती शुभ्रवस्त्रों में परियों सी घूमती।

वह शाम सुहानी थी। थोड़ी देर पहले झमाझम पानी बरसा था। बादल अभी भी आसमान में डेरा डाले बैठे थे। ठण्डी - ठण्डी हवाएं मौसम की मादकता बढ़ा रही थीं। खुशी कॉलेज से घर जाने के लिए बस स्टाप पर खड़ी थी। उसका दिल कह रहा था- आज बस देर से आये ताकि वह मौसम का आनंद उठा सकें।

बादल आकार बदलते एक दूसरे के साथ लुका - छुपी का खेल खेल रहे थे। नीरदमाला के बीच बार बार क्षणप्रभा का आना एक जादुई लोक सृजित कर रहा था। खुशी की अपलक दृष्टि उनकी ओर ही लगी थी। तभी जैसे सितार के तार बजे, सुनिए।

उसने दृष्टि नीचे की। उसे खोयी सी देखकर उसने फिर कहा, आपको कोई परेशानीहै क्या? इतनी शाम को यहां बस स्टॉप पर क्यों खड़ी हैं? यह इलाका ठीक नहीं और आज तो मौसम भी खराब है। आपकी बस छूट गई क्या?

अब तक वह मंत्रमुग्ध सुन रही थी। पर अब अकबकाई। बस छूट गई? उसने घूम कर देखा, आसपास कोई नहीं था। घड़ी पर नजर डाली- बाप रे! साढ़े छह।

क्या आज बसें नहीं आयेंगी, उसने घबराकर खुद से ही पूछा? वह हंस पड़ा- सारी बसें आकर चली गई। मैंने चार बजे आपको यहीं देखा था। अब लौटते समय आपको यहीं देखकर लगा, आप मुसीबत में हैं। इसी से जानना चाहा।

ओह! अब उसके चेहरे पर परेशानी झलकने लगी। मुझे बादल बहुत पसंद हैं। इन्हीं से इतना खोयी रही कि ढाई घंटे बीत जाने की खबर न लगी और न ही बसों का आना ,जाना।

वह फिर हंसा पड़ा- प्रकृति से तो मुझे भी प्यार है, पर मैं कभी उनमें इतना नहीं खोया कि दुनिया भूल जाउॅं।

पर खुशी दूसरे ही ख्यालों में खोयी थी। अनमनी सी अजनबी से ही पूछ बैठी- बस के बिना घर कैसे जाउंगी?

आप चाहें तो मैं आपको छोड़ सकता हूं। मेरा नाम शलभ त्रिपाठी है। भरोसा कर सकती हैं मुझ पर एसएसपी हूं। इंदौर का रहने वाला हूं। नौकरी लगी है तब से दिल्ली में हूं। वह एक ही सांस में अपने बारे में सब कुछ बताता गया।

उसके आकर्षण में खिंची, खुशी बताती गई, अपने बारे में जैसे किसी आत्मीय से वर्षो बाद मिल हो और जिंदगी के छूट गए पन्नों से उसका परिचय करा रही हो।

अब हमें चलना चाहिए, शलभ ने ही उसे टोका। उसे हां ! वह उसकी गाड़ी में बैठ गई और आदेशात्मक स्वर में कहा- दिलशाद गार्डन।

घर पहुंच कर उसने शलभ को अंदर बुलाया। घर में सब उससे मिलकर प्रसन्न हुए। पुलिस वाले भी इतने विनम्र हो सकते हैं यह खुशी ने उसी दिन जाना।

अब यह रोज का सिलसिला बन गया। पहले ही दिन शलभ ने उसके दिल की अतल गहराइयों को छू लिया था। दोनों बैठे दुनिया जहान की बातें करते। शलभ अपराधियों से भिड़ने के किस्से सुनाता, खुशी उसकी वीरता पर वारि वारि जाती।

तुम्हें कौन सा रंग पसंद है? शलभ के हाथों में सफेल गुलाब देखकर खुशी ने पूछा था।

धवल, सफेद, इन फूलों जैसा, तुम्हारे गालों जैसा

 वाह, उसे बीच में ही टोक कर खशी पुलक उठी- मुझे भी।

शलभ ने गुलाब उसके बालों में टॉक दिए। अपने हाथों में उसका हाथ लेकर उसकी आंखें में झांकता हुआ बोला- मेरा चांद बनकर मेरी दुनिया में चांदनी फैलाना पसंद करोगी?

खुशी की गहरी आंखों ने शरमा कर हामी भर दी। शलभ जैसे खुशी से पागल हो गया। दोनों हाथों में उसे उठाकर गोल गोल नचाता हुआ बोला- चलो अपनी मां से तुम्हारी बात कराउं। और खुशी ने उसी दिन शलभ की मां की ममता भरी आवाज सुनी। दोनों ने बैठ कर भविष्य के सपने बुनें। खुशी के घर वालों को भला क्या ऐतराज हो सकता था, दोनों ओर से विवाह की तैयारियां शुरू हो गई।

विवाह दिल्ली से ही होगा। खुशी ने सफेद लहंगा बनवाने को कहा तो मां गुस्सा करने लगी। कफन बनवा रही है या शादी का जोड़ा। सब लोग लाल कपड़े पहनते हैं तुझे सफेद सूझ रहा है। मां, दूल्हा तो सफेद घोड़ी पर ही आता है और ईसाई क्या सफेद कपड़ों में विवाह नहीं रचाते।

उन्हें रहने दें। लहंगा तो लाल ही बनेगा, मां ने घोषण की। ठीक है मैं लाल बूटों वाली सफेद चुन्नी ओढूंगी। खुशी ने भी अपना फैसला सुना ही दिया।

सारी बातें सुनकर शलभ बोला, चिंता मत करो। मैं एक सफेद साड़ी तैयार करवा रहा हूं- एक दम यूनिक। देखना परी लगोगी। बारात में लेकर आउंगा और उसे ही पहना कर विदा कराऊँगा।

खुशी मुस्कुरा दी, एक तुम ही तो मेरी भावना समझते हो।

पर नियति को उसकी बातें कहां अच्छी लग रही थी। जैसे जैसे शादी के दिन आने लगे। उनका मिलना बंद हो गया। अब वे सिर्फ फोन पर ही बातें करते- शलभ ने बताया,उसकी साड़ी उसने बुटीक में तैयार करवा ली है। स्टोन, सितारे आदि लगने के बाद साड़ी का वजन 15 किलो हो गया। संभालने के लिए तैयार रहे।

आज खुशी की शादी है। आज वह हमेशा -हमेशा के लिए शलभ की हो जायेगी। उसने खुद अपना मेकअप किया। लाल लहंगे पर लाल बूटों वाली सफेद चुन्नी ओढ़कर साक्षात परी सी सज गई। मां ने आकर नजर उतारी।

सारी तैयारियां हो गईं थीं। पर बारात का कहीं पाता नहीं था। फोन करने पर किसी ने फोन भी नहीं उठाया। किसी आदमी को शलभ के घर भेजने के बारे में सोंच ही रहे थे कि बारात आने की सूचना मिली। सभी स्वागत के लिए दौड़ पड़े। खुशी भी सहेलियों के साथ आकर बालकनी में की रेलिंग पकड़ कर खड़ी हो गई।

शलभ के मित्र और रिश्तेदार डांस करने में लगे थे। शलभ की गाड़ी तो पीछे थी। मधुर स्वरलहरियों के बीच खुशी का मन नाचने का हो रहा था। पर आज वह दुल्हन थी। बार बार गाड़ी की ओर देखती, कहीं शलभ बाहर झांक रहा हो।

अचानक धमाका हुआ। सारा संगीत थम गया। जो हुआ वह इतना अप्रत्याशित था कि कोई कुछ भी समझ नहीं पाया। शलभ की कार के परखच्चे उड़ गए। एक तरफ ड्राइवर और दूसरी तरफ शलभ का क्षत विक्षत शव पड़ा था। पास ही टूटे सूटकेश से जगमगाते सितारों वाली साड़ी झांक रही थी। शलभ की लहू की बूंदे उसमें बूटे बना रही थीं। लोग चारों ओर इकठ्ठा हो गए। पुलिस लोगों का हटाने का प्रयास करने लगी ताकि कोई सुराग खोजा जा सके।

अब सबने खुशी को देखा। वह शलभ के सिर के पास अपनी नई साड़ी मुठ्ठी में दबा, पत्थर सी बैठी थी। उसकी आंखों में आंसू नहीं थे। न चेहरे पर विशाद था और न कोई भाव। पुलिस उसे वहां से हटने को कह रही थी। पर वह तो निर्जीव पत्थर बनी थी। दहाड़ मार कर रोती मां ने जब यह देखा तो रोना भूल खुशी के पास आईं। उसे झकझोर कर कहने लगी, रो मेरी बच्ची रो। देख तेरा सबकुछ खत्म हो गया। देख सफेद चुन्नी की तरह तेरी जिंदगी सफेद हो गई। पर खुशी न रोई न बोली और न वहां से हटी ही। अंत में उसे उठाकर कमरे में लाया गया। वह पलंग पर बैठी रही, मूर्तिवत , हाथों में अपनी साड़ी थामें। इन्वेस्टीगेशन चलती रही। कार में बम रखने वाले हाल में शलभ द्वारा पकडे गए शातिर अपराधी के साथी थे। बाद में उसे भी पकड़ लिया गया। पर खुशी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। उसकी सूनी पत्थराई आंखों में एक ही चेहरा था- जो अब जीवित नहीं हो सकता।


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