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Saroj Verma

Tragedy

3  

Saroj Verma

Tragedy

नई सुबह...

नई सुबह...

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सरकारी अस्पताल का एक कमरा जहां कई सारे रोगी अपने अपने पलंग पर लेटे लेटे, और कोने के एक बिस्तर एक महिला लेटी है,बोझिल मन,उनीदीं आंखें और जीर्ण-जर्जर शरीर उम्र यही कोई चालिस पैंतालिस साल, रह रहकर दरवाजे की ओर देख रही है शायद उसे किसी का इंतज़ार है।।

तभी दरवाज़े की ओर से कोई आता हुआ दिखाई दिया, किसी के साथ, दोनों हाथों में हाथ पकड़े हुए थे।।

तभी वह कराहते हुए बोली,"तुम आ गए और साथ में ये कौन है?"

"हां, और मैं ये बताने के लिए आया हूं कि तुम्हारी बिमारी में लगाने के लिए मेरे पास और पैसे नहीं हैं और डाक्टर ने भी कहा है कि तुम्हारे सारे टेस्ट करवाएं बिना,तुम्हारी बिमारी का कुछ पता नहीं चल पाएगा और इसके लिए ना तो मेरे पास फ़ालतू पैसा है और ना समय और फिर नगरपालिका के झाड़ू लगाने वाले के पास इतना पैसा कहां से आएगा कि तुम्हारा इलाज करवा सके और ये है चमेली मैंने कल ही मंदिर में इससे शादी कर ली है अब तुम अपना देखो,मैं और नहीं कर सकता तुम्हारे लिए", मुन्ना बोला।।

"कैसी बातें कर रहे हो? मैं तुम्हारी बीवी हूं, कुछ तो रहम करो", शकुंतला बोली।।

लेकिन मुन्ना बिना कुछ बोले वहां से चला गया।।

शकुन्तला भी अस्पताल वालों को बिना कुछ बताए, वहां से चली आई, भादों मास की गर्मी थी,बहुत कड़क धूप थी लेकिन वो चलते चली जा रही थी.….. चलते चली जा रही थी.....जब घाव मन में लगा हो तो शरीर पर किसी चीज़ का पता नहीं चलता।।इतना दर्द शकुंतला झेल नहीं पा रही थी, उसने तो जैसे गंगा मैया में डूबने का मन बना लिया था और बढ़ चली गंगा की ओर,क्रोधित इंसान मे ना जाने कहां से इतनी शक्ति आ जाती है कि बस उसे तो अपने लक्ष्य के सिवा कुछ दिखाई नहीं देता।।वो बढ़ चली गंगा की ओर,जब गंगा किनारे पहुंची तो गंगा के पानी में उसने जैसे ही अपने पैर डाले,एक अजीब सी तरावट उसके अन्त:मन को भिगो गई ,धीरे धीरे वो उसमे समाती जा रही थी और फिर उसने एक डुबकी लगाई और बाहर आ गई फिर बहुत देर तक वो अपने पैरों को गंगा के पानी में डालकर बैठी रही, उसने मरने के विषय में छोड़ दिया ‌।।

गंगा के किनारे बाहर आई, अब उसे अच्छा अनुभव हो रहा था गंगा मैया से साक्षात्कार के बाद, उसने फिर सड़क की ओर अपना रूख किया,अब उसे भूख लग रही थी, वहां नजदीक ही कूड़े का ढेर था, उसने देखा कि कुछ रोटियां पेपर में लिपटी हुई पड़ी है उसने उठाई और खाने लगी, थोड़ी दूर पर प्याऊ थी उसने वहां पानी पिया,आज उसका मन बहुत शांत था,आज वो सारे बंधनों से मुक्त थी।अब उसने रोज का ही नियम बना लिया, गंगा में स्नान, कूड़े के ढ़ेर से खाना,अब वो अच्छी भी होने लगी थी,अब तो लोग भी उसे खाने को दे जाते, कभी तो कोई कोई पुराने कपड़े भी दे जाता,अब लोग उसे कचरे वाली माई कहने लगे थे।

अब तो लोगों ने कचरे के ढेर के बगल में छोटी सी रहने लायक झुग्गी भी बना दी थी,अब तो कचरे वाली माई उसमें रहने लगी।।फिर एक रात, पता नहीं कौन एक नवजात बच्ची को वहां छोड़ गया,बच्ची रोई,माई को आवाज आई और उसने उस बच्ची को उठा लिया,अब माई उसका पालन-पोषण करने लगी लोगों ने सलाह दी माई छोटी बच्ची है, तुम्हारे लिए हम कहीं और झुग्गी बना देते हैं, ऐसा ना हो बच्ची बीमार पड़ जाए।।अब माई और बच्ची कचरे के ढेर से दूर रहने लगे थे,लोग भी बहुत मदद करते माई की,अब बच्ची भी बड़ी होने लगी थी, बहुत से लोगों ने उसकी पढ़ाई का जिम्मा भी ले लिया, बिटिया पढ़ाई में बहुत होशियार थी,माई ने उसका नाम रोशनी रखा था।

अब रोशनी ने मेडिकल की परीक्षा पास कर ली थी और कुछ सालों में डाक्टर भी बन गई, उसे डाक्टर के ड्रेस में देखकर माई बहुत खुश हुई।।माई बोली आज अस्पताल आऊंगी बिटिया, मुझे देखना है कि तू मरीजों का कैसे इलाज करती है।।

रोशनी बोली,' ठीक है माई, आ जाना।"

शकुन्तला अस्पताल पहुंची, रोशनी को ढूंढते हुए वहां पहुंच गई जहां रोशनी मरीजों को देख रही थी, तभी किसी ने कहा___

" डाक्टरनी जी, मेरे पति को बचा लो।"

शकुन्तला ने पास जाकर देखा तो वो मुन्ना था और उसकी बीवी रोशनी से उसे बचाने को कह रही थी।।शकुन्तला ने रोशनी से कहा, "बिटिया इसका इलाज़ ठीक से करना,इसको छोड़ना मत क्योंकि बहुत कष्ट होता है जब कोई छोड़ देता है।"

मुन्ना ने देखा और कुछ नहीं बोला क्योंकि वो इस लायक बचा ही नहीं था कि__

शकुन्तला बोली, "चिंता मत करो एक नई सुबह आशा की किरण लेकर आती है "और आंखों के आंसू पोछते हुए शकुंतला अस्पताल से चली गई।।



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