नहीं, ऐसी शादी नहीं
नहीं, ऐसी शादी नहीं
आज सुहाना बहुत खुश है। होती भी क्यों ना, आज उसकी शादी जो है। लाल रंग के भारी से लहंगे में, कोहनियों तक मेहंदी से सजे हाथ, नख से शिख तक सजी संवरी सुहाना नज़र लगने की हद तक सुंदर लग रही है। मां यानी सुनीता जी उसकी बलाएँ लिए नहीं थक रही। पापा यानी अशोक जी की आंखें अपनी लाडली को विदा करने का सोच सोच कर भरी जा रही हैं। और छोटी बहन विभा सखियों के साथ मिलकर सुहाना को छेड़े जा रही है। उन सबकी शरारतों से सुहाना हंसे जा रही है।
सुहाना के ससुराल वाले जयमाला के लिए बोलते हैं तो सुनीता जी विभा को सुहाना को स्टेज पर लेकर जाने को कहती हैं। सुहाना स्टेज पर पहुंच जाती है पर अभी सुनील, उसका होने वाला पति स्टेज पर नहीं आया। सुहाना बेचैनी से इधर उधर देखती है कि तभी सुनील दूर से आता दिखता है।
सुहाना सुनील को देखकर खुश हो जाती है पर वो हैरान रह जाती है कि सुनील लड़खड़ा रहा है। वो सोचती है कि शायद उसके पैरों में चोट लग गई है।पर जैसे जैसे सुनील पास आता है,उसे समझ आ जाती है कि वो नशे में चूर है।
सारे पंडाल में चुप्पी छा जाती है। होने वाला दूल्हा इतने नशे में। सुहाना के सारे अरमानों पर पानी पड़ जाता है, आंखों से आंसू बह जाते हैं। उसके होने वाले सास ससुर झेंपी हंसी हंसते हुए कहते हैं कि दोस्तों ने ज्यादा पिला दी लगता है। वैसे भी हम ऊंचे खानदान के लोग हैं, थोड़ा बहुत पीना पिलाना तो चलता है।
सुहाना उनका व्यवहार देख कर दंग रह जाती है और अपने मम्मी पापा के पास खड़ी होकर शादी से इंकार कर देती है।सारे मेहमान जो अभी तक सुनील की बुराई कर रहे थे, अब सुहाना की बुराई करना शुरू कर देते हैं कि आजकल की लड़कियों में ज़रा भी रिश्ते निभाने की नीयत नहीं होती। ज़रा सी बात पर शादी तोड़ने की बात करने लग गई । क्या हुआ अगर थोड़ी पीकर आया है, दोस्तों ने पिला दी होगी । नहीं पसंद तो छुड़वा देती ये आदत शादी के बाद, शादी को ना किसलिए कहना।
सुहाना के होने वाले सास ससुर भी टेढ़े टेढ़े मुंह बनाने लगे और उसके मम्मी पापा को कहने लगे कि क्या यही संस्कार दिए हैं उन्होंने अपनी बेटी को। सुहाना को सुनकर इतनी हैरानी हुई कि कितने बेशरम लोग हैं, अपने बेटे की हरकतें नहीं देख रहे और दूसरे की बेटी को बुरा कह रहे हैं।
और सुहाना के पापा, उन्हें भी सुहाना पर गुस्सा आने लगता है कि ज़रा सी बात का बतंगड़ बना दिया। इतना तो चलता रहता है शादी ब्याह में। अशोक जी जो अभी बेटी की विदाई होगी, ये सोचकर अपनी आंखें भर रहे थे, अब उन्हें अपनी बेटी से ज्यादा समाज की चिंता होने लगी कि लोग कैसी कैसी बातें बनाएंगे। उन्होंने सुनीता जी को कहा सुहाना को समझाने के लिए और सुनीता जी सुहाना को कहने लगी कि छोड़ ये सब बातें, जयमाला डाल। तू ऐसे ही फालतू बातों पर अड़ी रही तो कल को तेरी बहन की शादी कैसे होगी, पता भी है कि लोग कितनी बातें बनाएंगे। चल जल्दी कर।
और सुहाना उसके लिए तो चंद लम्हों में ज़िन्दगी बदल गई। कहां तो वो आने वाली ज़िन्दगी के सपनों में खोई हुई थी और कहां ना सिर्फ वो सपने टूट गए बल्कि उसके अपने मम्मी पापा जिन्होंने फूलों की तरह उसे पाल पोस कर बड़ा किया, वो भी पराए हो गए। आज अपनी बेटी से ज्यादा उन्हें समाज की चिंता होने लगी। एक बेटी का घर सही से बसे या नहीं दूसरी की चिंता शुरू चाहे उसके लिए बड़ी बेटी को नरक में क्यों ना धकेलना पड़े। पल भर में सब कांच कि तरह चकनाचूर हो गया।
सुहाना वहीं बैठकर फूट फूट कर रो पड़ी। सुनील का झटका तो वो बर्दाश्त कर गई पर अपने ही मम्मी पापा का रंग बदलना नहीं बर्दाश्त कर पाई। क्या रिश्ता होते ही वो पराई हो गई, क्या अब उसके सुख दुख से उनका कोई लेना देना नहीं रहा, क्या उन्हें दिखाई नहीं दे रहा कि इस शादी का कोई फ्यूचर नहीं है? मां बाप के होते अनाथ वाली फीलिंग आनी शुरू हो गई उसे।
तभी उसके सिर पर किसी ने प्यार से हाथ रखा । चौंक कर सिर उठाया सुहाना ने, किसी से प्यार की उम्मीद बाकी ही नहीं थी। वो हाथ उसकी बहन विभा का था। विभा ने उसे ज़मीन से उठाया और गले से ज़ोर से लगा लिया। दोनों बहनें खूब रोई।
फिर विभा ने सब रिश्तेदारों की साइड देखा और बोला, " हां, सुहाना बहुत खराब है, इसे रिश्ते निभाने नहीं आते। लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि अपनी बेटियों को रिश्ते निभाना ज़रूर सिखाया होगा से आप सब ने। तो ऐसा कीजिए आज आप में से कोई अपनी प्यारी बेटी की शादी इस पियक्कड़ से कर दो, फिर मानूंगी मैं आपके संस्कारों को। " सब रिश्तेदार मुंह बनाकर रह गए लेकिन कड़वी सच्चाई झुठलाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई।
फिर उसने सुनील के मां बाप की तरफ देखा और बोली," हुंह बड़े आए ऊंचे खानदान के बेसंस्कारी लोग। बड़े आए हमें इज्ज़त और संस्कारों का पाठ पढ़ाने, ये पाठशाला अपने घर में खोलो। कुछ सिखाओ अपने बेटे को। मेरी बहन कोई सुधार केंद्र नहीं है जो शादी के बाद तुम्हारी बिगड़ी औलाद को संभालती, सुधारती रहे। जो सिखाना,समझाना है वो आप का फ़र्ज़ है सो आप ही निभाइए।" वो लोग अपमान की कड़वी घूंट पीकर रह गए । शायद चुप इसलिए थे कि शायद कुछ करके उनका खोटा सिक्का आज चल जाए ।
फिर विभा ने अपने मम्मी पापा की ओर देखा और कहने लगी," क्यों कर रहे हैं आप ऐसा? क्या अब तक आप हमें बोझ समझ कर पाल रहे थे कि किसी भी ऐरे - गैरे से हमारी शादी कर देंगे। बस शादी की और आपका फर्ज़ निपटा चाहे उसके लिए बेटी को नर्क में ही क्यों ना धकेलना पड़े। ऐसा ही है तो सुबह से रो रोकर क्यों दिखा रहे थे। एक ही बार ज़हर देकर हमसे और अपने फर्ज़ से छुटकारा पा लेना था। क्या भविष्य होगा सुहाना का अगर वो आपकी बात मान लेगी तो।मेरी शादी की चिंता में आप इसकी ज़िन्दगी बर्बाद कर देते। ऐसी शादी ही आपको करनी है तो हम बहनें शादी के बिना भली। और आप को इस से दिक्कत है तो हम ये घर छोड़ कर चली जाती हैं।"
सुहाना जो अभी तक रो रही थी, उसने अपनी बहन को गले लगा लिया और बोली," आज तो तू मुझ से भी बड़ी हो गई।" उनके मम्मी पापा शर्मिंदा खड़े थे और अब अपनी गलती पर पछता रहे थे।उन्होंने अपनी दोनों बेटियों से माफ़ी मांगी और लड़के वालों और सब तथाकथित रिश्तेदारों को बाहर का रास्ता दिखाया।
आज सुहाना और विभा की हिम्मत से सुहाना की ज़िन्दगी बर्बाद होने से बच गई। अब समय आ गया है कि हर लड़की को अपने हक के लिए आवाज़ उठानी चाहिए।