नेकी कर दरिया में डाल
नेकी कर दरिया में डाल
बात कुछ पुरानी है आज भी चलचित्र की तरह आंखों के सामने घूमती है। मैं अपनी बाईक से जा रहा था अचानक एक पुलिस जीप ने मुझे रुकने का इशारा किया। मैंने कुछ घबराहट के साथ बाईक साईड कर खड़ी कर दी । जीप से एक नौजवान पुलिस का अफसर उतरा मैं अंदर ही अंदर घबरा
गया था अचानक उस अफसर ने झुक कर मेरे पाँव छू लिये। मैंने कहा "क्या कर रहें है सर हमने आपको नहीँ पहचाना।" वो बोला "सर नहीँ बेटा बोलिये अंकल जी मैं प्रेम, प्रेम पासवान खरखरी ,याद कीजिये।" " ओह कुछ कुछ याद आरहा है ।" तभी उसने जेब से कुछ रुपये निकाल कर मेरी तरफ बढ़ाए मैंने कहा "ये क्या है?" बोला "याद कीजिये।" मेरी आँखो के सामने लगभग पंद्रह साल पुराना वाक्या दौड़ जाता है मैं दुकान पर बेठा था तभी प्रेम मेरे पास आया वह बहुत उदास था ।
मैंने पूछा "क्या बात परेशान क्यों" उसकी आँखे भर आई वह बोला "मुझे कल रांची जाना है पुलिस ट्रेनिंग में ओर मेरे पास पेसे नहीँ है ।मैंने उसे दिलासा दिया पूछा "कितने पेसे से काम चलेगा?" वह बोला "एक हजार". मैंने उसे पंद्रह सौ रुपये दिये वह मुझसे चिपक कर सुबक उठा ।मैंने उसे कामयाबी का आशीर्वाद दिया । आज वह मेरे सामने था पुलिस इंस्पेक्टर प्रेम पासवान। मैंने उसे पेसे वापस करते हुए कहा नहीँ "उस समय तुम्हे जरूरत थी मेरे पास थे तुम्हे दिये अब तुम्हारे पास है किसी जरूरत मंद कॊ देना ,मुझे खुशी होगी ।" उसने एक बार फिर मेरे पैर पेर छुए ओर मेरा नम्बर लिया बोला कल आऊँगा सबसे मिलने ।" अगले दिन प्रेम आया सबसे मिला सब खुश हुए आते हुए मिठाई फल लेकर आया ओर जाते समय बहुत मना करने के बाद
भी बच्चों कॊ दो हजार रुपये देता गया ।