Kumar Vikrant

Inspirational

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Kumar Vikrant

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नेकी का पुरस्कार

नेकी का पुरस्कार

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शहर के बाहर रह रहे खानबदोश लोगो के तम्बुओ में हाहाकार मचा हुआ था। खानबदोश मेहर का तीन साल के बेटा बिटटू पिछले चार घंटे से गायब था। मोहर पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने का प्रयास करके तक चुकी थी। थाने में मौजूद दरोगा ने उसे झिड़कते हुए कहा था, "अरी एक ही बच्चा तो खोया है, जा जाकर दूसरा पैदा कर ले। वो भी खो जाए तो तीसरा पैदा कर लेना; लाइन लगा दे बच्चो की। यही काम तो आता है तुम लोगो को; सरकार को तो तुम सबकी नसबंदी कर देनी चाहिए। चल दफा हो जा, पुलिस के पास और भी बहुत काम है.......आ जाएगा तेरा बच्चा। हफ्ते भर बाद भी न आए तो चली आना, लिख देंगे तेरी रिपोर्ट।"

अब अकेली मेहर करे तो क्या करे, उसका पति चोरी के जुर्म में तीन साल की जेल काट रहा है। उसके पड़ोसी उसकी पुकार पर उनकी बस्ती के चारो तरफ भटकते फिर रहे थे, आखिर तीन साल का बच्चा कितनी दूर जा सकता है।

दोपहर से शाम होने को आई मेहर के पडोसी भी निराश होकर वापिस आ चुके है, बिटटू कहीं भी न मिल सका।

"आजकल बच्चो को उठाने वाले भी बहुत घूम रहे है, लगता है बिटटू को कोई उठा ले गया है।" मेहर के पड़ोसियों ने अपना निर्णय सुना कर खोज बंद कर दी।

मेहर को चैन कहाँ, उसने अपनी छह महीने की बेटी परी को गोद में उठाया और बिटटू की तलाश में भटकने लगी।

उसके डेरे से लगभग २०० मीटर दूर एक विशाल मैदान में कूड़ा बीनने वाले दो बच्चे सात साल का धर्म और आठ साल का वीर एक बच्चे के रोने की आवाज सुनकर इधर उधर भटक रहे थे। बच्चे के रोने इतनी महीन थी कि बहुत गौर से सुनने पर ही वो आवाज सुनी जा सकती थी।

"ओ यार आवाज झाडी से आ रही है, लगता है बच्चा झाडी में ही है........" धर्म बोला।

"अबे नहीं झाडी में क्या करेगा बच्चा?" वीर ने झाडी की तरफ देखते हुए कहा।

"आ देख लेते है, मुझे तो आवाज झाडी से आती हुई ही लग रही है।" धर्म ने झाडी की तरफ बढ़ते हुए कहा।

उन दोनों ने जैसे ही झाडी हटा कर देखा तो उनकी रूह काँप गई। झाडी के बीचो बीच एक डेढ़ फीट चौड़ा बोरवैल था।

"अबे बच्चा बोरवैल में गिर गया है, तभी उसके रोने की धीमी आवाज आ रही है।" वीर डरते हुए बोला।

उन दोनों के शराबी बाप जो उनकी कूडा बीनने की कमाई पर पल रहे थे उन्हें डांटते हुए कहते- अबे कंजरो के मैदान के पास मत जाना, वहाँ बहुत गहरे बोरवैल है, अगर उनमे गिर गए तो बहुत बुरी मौत मरोगे।

"चल यहाँ से चल इस बच्चे को अब कोई नहीं बचा सकता......." कहते हुए वीर धर्म का हाथ खींचने लगा।

"यार ये बच्चा कंजरो का ही होगा, चल उन्हें बता देते है, हो सकता है वो इसे इस कुए से निकाल ले......." धर्म ने वीर को समझाते हुए कहा।

तभी उन्हें मैदान की तरफ आती मेहर दिखाई दी, उसे देखते ही दोनों जोर-जोर से चिल्ला कर उसे आवाज देने लगे।

बच्चो की आवाज सुनकर मेहर दौड़ी-दौड़ी उन दोनों बच्चो के पास गई और सारा मामला सुनकर समझ गई कि बोरवैल में गिरा बच्चा उसका बिटटू ही है जो दोपहर से भूखा-प्यासा उस बोरवैल में पड़ा रो रहा है।

अपने बच्चे की हालत देख कर वो बहुत जोर-जोर से रोने लगी। उसके रोने की आवाज सुनकर उसके डेरे को कुछ लोग उस बोरवैल के पास आकर बोरवैल से आने वाली आवाज सुनने की कोशिश करने लगे। मेहर रो रो कर अपना बच्चा बचाने की फरियाद कर रही थी लेकिन किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे।

खानबदोश लोगो की उस भीड़ को देख कर एक पुलिस पेट्रोल कार भी वहाँ आ गई। सारा माजरा समझ कर पेट्रोल कार के स्टाफ ने थाने को फोन कर दिया। कुछ देर बाद थाने से पुलिस की जीप में थाना इंचार्ज आया और सारा मामला समझ कर बोला, "यह बच्चा बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गया है, इसे निकालने के लिए इस बोरवैल के पास ही एक और कुआ खुदवाना पड़ेगा। लेकिन ये सब अब रात में नहीं हो सकता है। खुदाई का सारा इंतजाम करते-करते सारी रात लग जाएगी, सुबह ही कुछ हो सकेगा।"

इसके बाद थानेदार दो सिपाहियों की ड्यूटी वहां लगाकर चला गया।

"आंटी रात भर बच्चा गड्ढे में कैसे रहेगा? कुछ करो न?" धर्म ने रोती हुई मेहर की तरफ देखते हुए कहा।

"क्या करूं, कहाँ जाऊ, मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा है।" मेहर रोते हुए बोली।

"मैं बचा सकता हूँ आपके बच्चे को......" कुछ सोचते हुए धर्म बोला।

"कैसे?" मैहर ने उस बच्चे की बात पर गौर न करते हुए पूछा।

"आंटी मैं कुए की चौड़ाई से बहुत पतला हूँ, एक लम्बी सी रस्सी में मेरे पैर बांध कर इस कुए में लटका दो, मैं नीचे से तुम्हारा बच्चा पकड़ लूँगा और तुम मुझे ऊपर खींच लेना।" धर्म ने दृढ़ता के साथ कहा।

"अबे पागल है तू, उल्टा लटक कर तू भी कुए में ही मर जाएगा।" वीर ने धर्म की बात को समझते हुए उसे चेतावनी दी।

"कुछ नहीं होगा, मँगाओ लम्बी सी रस्सी।" धर्म ने मेहर की तरफ देखते हुए कहा।

धर्म की बात सुनकर कुछ खानाबदोश दौड़ कर बाजार गए और १०० फ़ीट लम्बी रस्सी खरीद लाए।

"अबे एक तो अंदर मरने लग रहा है, दूसरे को मारने की तैयारी क्यों कर रहे हो?" स्थल पर मौजूद सिपाहियों ने खानाबदोश लोगो को डाँटते हुए कहा।

"मुझे कुछ नहीं होगा अंकल?" धर्म बोला।

"अबे कुए की गैस से तेरा दम घुट जाएगा, तेरा सारा खून तेरे सिर में उतर जाएगा, वो जो अंदर पड़ा है वो तो रात भर में मर ही जाएगा, लेकिन तू तो कुए में डालते ही मर जाएगा।" पुलिस वाले ने धर्म को डांटते हुए कहा।

"मैं तो उल्टा लटकाने से नहीं मरूँगा लेकिन वो बच्चा उसे बचाने के इंतजार में सुबह तक मर सकता है।" धर्म ने अपनी उम्र से बड़ी उम्र के लोगो जैसे बात की।

"उल्टा लटक कर मरना चाहता है तो टांग दो बदमाश को, लेकिन हमारे जाने के बाद। हम चाय पीने जा रहे है तब तक तुम ये कारनामा खत्म कर लेना नहीं तो जेल की हवा खाने को तैयार रहना।" पुलिस वालो ने वहाँ से जाते हुए कहा।

थोड़ी ही देर बाद खानबदोश लोगो ने रस्सी को मजबूती से धर्म के पैरो से बांध दिया और सुरक्षा के तौर पर रस्सी उसकी कमर और पैरो से इस तरह बाँधी गई कि रस्सी किसी भी तरह फिसल न सके।

चार जवान लड़को ने धर्म को बोरवैल में लटकाते हुए समझाया कि जैसे ही बच्चा उसके हाथ में आए अपने पैर जोर से हिला देना; हम तुझे ऊपर खींच लेंगे।

जिस समय धर्म को बोरवैल में रस्सी के सहारे उतारा जा रहा था उस समय मैदान में मौजूद मेहर सहित हर खानाबदोश की हालत खराब थी क्योकि अगर उस बच्चे को कुछ हो गया तो उन सबको पुलिस छोड़ेगी नहीं। सबको आशंका सत्ता रही थी कि अगर अंदर की तरफ से बोरवैल संकरा हुआ और बच्चा वहां फंस गया तो क्या होगा?

जैसे-जैसे रस्सी छोटी पड़ती जा रही थी तो लोगो को शंका होने लगी कि अगर बोरवैल १०० फ़ीट से भी गहरा हुआ तो फिर क्या होगा?

सभी शंकाएं निर्मूल साबित हुई और लगभग ८० फ़ीट जाकर रस्सी ढीली पड़ गई और उसके कुछ सेकेण्ड बाद रस्सी को नीचे से झटका दिया गया।

लोगो के मन में शंका थी लेकिन फिर भी उन्होंने डरते-डरते बहुत ही सावधानी से रस्सी को ऊपर खींचना शुरू किया।

कुछ ही मिनटो में सारी रस्सी ऊपर खींच ली गई और धर्म एक बेहोश बच्चे को अपने हाथो से पकडे बोरवैल से बाहर निकल आया।

मेहर ने दौड़ कर बच्चा धर्म से लेकर अपनी बाहों में समेट लिया।

शंकित लोगो ने बेहोश बच्चे की तरफ डर से देखा लेकिन बच्चा जिंदा था और ताजी हवा मिलते ही उसे होश आ गया और वो रोने लगा।

बच्चे के रोते ही मेहर ने दौड़ कर धर्म को अपनी बाँहो में भर लिया और उसे दुवाए देने लगे।

जब तक पुलिस वापिस आई तब तक खानाबदोश अपने डेरो में जा चुके थे और कूड़ा बीनने वाले धर्म और वीर न जाने कहाँ चले गए थे।

अगले दिन शराबी कर्मा की झुग्गी के सामने सदर थाने के थानेदार की जीप आकर रुकी और थानेदार देवदत्त सिंह ने जीप से उतर कर झुग्गी के टूटे दरवाजे को जोर से खटखटाया।

गिरता पड़ता कर्मा दरवाजे पर आया और पुलिस को खड़े देख कर उसके होश उड़ गए।

"क्या हुआ हुजूर?" कर्मा डरते हुए बोला।

"धर्म कहाँ है?" इंस्पैक्टर ने विनम्रता से पूछा।

"कूड़ा बीनने गया है साहब।" कर्मा ने कांपते हुए जवाब दिया।

"डर मत कर्मा कल तेरे बेटे ने एक छोटे बच्चे की जान बचा कर पूरे शहर का मन जीत लिया है। शहर के पुलिस कप्तान न केवल उसका नाम बहादुरी पुरस्कार के लिए भेज रहे है बल्कि उन्होंने उसके पालन-पोषण और पढाई का जिम्मा भी ले लिया है। चल मेरे साथ चल धर्म को ढूंढ कर पुलिस कप्तान साहब के पास लेकर चलना है।" इंस्पैक्टर ने विनम्रता से कहा।


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