Jhilmil Sitara

Inspirational

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Jhilmil Sitara

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नेकी और पूछ - पूछ

नेकी और पूछ - पूछ

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"मोना जल्दी से मेरी घड़ी,रूमाल और बैग दो, मैं दफ्तर के लिए देर से निकला तो फिर से ट्रैफ़िक में फंसकर लेट हो जाऊंगा।" अतुल रसोई में उसका लंच पैक कर रही मोना से झल्लाकर कहता है। 


"अतुल सब सामने ही तो पड़ा हुआ रहता है ले लिजिए ना, मैं बस आपका लंच पैक कर के अभी आई।" मोना ने डब्बा बन्द करते हुए कहा रसोई से।


"तुम थोड़ा जल्दी उठकर लंच पैक नहीं कर सकती यार मोना। हर दिन का यही जवाब है तुम्हारा। "

पड़ोस के मित्तल जी की पत्नी को देखो, सुबह जल्दी उठकर सारा काम निपटाकर मित्तल साहब के साथ नाश्ता करके अपने दफ्फ़र के लिए साथ में निकल जाती हैं।और तुम तो कभी सुबह उठ ही नहीं सकती। पांच साल का रिकोर्ड ही टूट जाएगा कहीं तुम जल्दी उठ गई तो है ना मोना। अतुल की झल्लाहट अब गुस्से में तब्दील होने लगी थी। 


मोना कमरे में पहुँचकर अतुल की घड़ी अलमारी के दराज़ से निकाल कर देती हुई बोली" अतुल आप हमेशा मित्तल जी की पत्नी का ही उदाहरण देते हुए थकते नहीं हैं।जबकि, मैं पहले भी बता चुकी हूँ कि वो आज का लंच रात को ही पैक कर के फ्रिज़ में रख देती हैं या सब्जियाँ काटकर रख देती हैं सुबह के लिए फ्रिज़ में जिससे उनका समय बचे।

और इस काम में उनके पति पूरा हाथ बंटाते हैं हर दिन। और मैं जल्दी उठकर भी सबकुछ आपके लिए ताज़ा बनाकर पैक करने में देर हो जाती हूँ। और आप मेरी ज़रा सी मदद करते तो एक साथ नाश्ता करने का रिकोर्ड शायद तोड़ पाती मैं। क्योंकि, रविवार को आप देर से उठकर सीधे ब्रंच करना पसन्द करते हैं।" 


मोना की इतनी बातों‌ में से कुछ ही बातों‌ पर अतुल ने गौर किया। वो भी उस बात पर जिसमें मोना ने मित्तल साहब को उनकी पत्नी के कामों में हाथ बंटाने की बात कही थी।

 इस बात पर अतुल ने कहा " वो साहब तो अपनी पत्नी की मदद इसलिए करते हैं क्योंकि, वो भी कामकाजी महिला हैं और समय पर उन्हें‌ भी दफ्तर पहुँचना होता है। और तुमको तो पता है उनकी पत्नी की तन्ख्वाह मित्तल साहब से अधिक है।तो खुशी - खुशी हाथ बंटाऐगें ही।

लेकिन, तुम तो पूरा दिन घर में रहती हो, दिन में आराम कर‌ लिया करो मेरे जाने के बाद काम रहता भी क्या है। खाना सुबह ही बन गया अब थोड़ी साफ़ सफ़ाई के बाद आराम कर‌ लो।

 पूरा दिन इससे उससे गप्पे लड़ाना और टीवी पर धारावाहिक देखना हर रोज़ जरूरी है क्या। तुम खुद ही सोचकर देखो।" 


अतुल की हर बात की तरह ये बातें भी मोना ने ध्यान से सुनी और धीरे से बोली" मैं गप्पे किसी से क्या करूंगी अतुल। सभी अपने बच्चों की और ससुराल‌ वालों की बातें करते हैं और मेरे पास बात करने के लिए एक ही विषय है वो हैं आप अतुल।लव मैरेज़ के बाद आजतक हमसे सब नाराज़ हैं। सोचा था एक बच्चा गोद में आ जाएगा तो शायद सब अपना लेंगें, मेरे घरवाले भी और आपके घरवाले भी। लेकिन, मेरी सूनी गोद ने और भी सबको दूर ही कर दिया मुझसे।" 


कहते हुए मोना के दिल में भरे दर्द ने पलकों‌ के बांध को तोड़कर आँंखो से बाहर छलक पड़े। अतुल के कदम अब दरवाजे को छोड़ मोना की तरफ़ मुड़ गए।

वह मोना को गले लगाकर कहता है "तुम भी क्या नकारात्म बातें लेकर बैठ गयी सुबह - सुबह मेरी सोहनी।अभी से उम्मीद छोड़ देना सही नहीं है मोना।और रहा सवाल रिश्तेदारों का तो जिन्हें हमारी खुशियों की परवाह नहीं वो बच्चे के होने पर ही परवाह करेंगे तो यह बात हज़म नहीं होती।फिर भी, हम एक बच्चे को अनाथालय से गोद ले लेते हैं, अगर तुम्हारी इजाज़त हो तो और भी किसी अनाथ का भविष्य भी संवर जाएगा। क्यों‌ क्या कहती हो इस बारे में तुम।"


मोना की आँखों में चमक सी तैर गई। वह चहकते हुए बोली" नेकी और पूछ- पूछ" चलिए हम अभी चलते हैं अपने घर के सूनेपन को एक नन्हे फरिश्ते‌ की खिलखिलाहटों से भरने की ख़तिर। 


अतुल भी हंसकर बोला "और मेरा दफ्तर मैडम जी। "


मोना ने कहा "आज सिर्फ मेरी ड्यूटी करेंगें आप।" 


दोनों चहकते हुए निकल पड़ते हैं नए रिश्ते के पक्के सफ़र पर।  


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