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Pallavi Verma

Tragedy

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Pallavi Verma

Tragedy

नदी का प्रतिशोध

नदी का प्रतिशोध

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मैं नदी हूं मेरा संबोधन मानव जाति स्त्री वाचक संज्ञा के रूप में करता है। स्त्रियों को नदी भी कहा जाता है। काफी हद तक सही भी है। इस बात को सिद्ध करने के लिए मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाती हूँ, जो प्रतिशोध की कहानी है, तो सुनिए उस दिन मेरी शांत, शीतल जलधारा भी शाम्भवी के मन के, प्रतिशोध की भावना को, शांत नहीं कर पा रहे थी। इसी जल राशि में अपनी नाबालिग बहन की अर्धनग्न लाश को तैरते देखा था। अंतिम संस्कार के वक़्त, सौतेले पिता के, कांपते हाथों में, खरोच के निशानों ने, शाम्भवी के शक को, यकीन में बदल दिया।


रात के अंधेरे में अपनी पहचान छुपाने ओवर कोट पहना और सौतेले पिता की नाँव में छेद कर दिया, कुछ ही देर में, मेरी अथाह जलराशि ने, इस पापी सौतेले पिता को अपने आगोश में लेकर, मासूम के साथ हुए अन्याय का बदला लिया किनारे खड़ी शाम्भवी और मैं (नदी) अब दोनो शांत थे।



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