पति के बटुए की सीख,संतोषी बनो
पति के बटुए की सीख,संतोषी बनो
अपना कॉलेज बैग फेंकते हुए महिमा ने मां से 2000 मांगे, कहा मां मेरे को नई ड्रेस सिलवानी है फेयरवेल के लिए|
मां ने कहा बेटा अभी तेरे लिए तो हमने न्यू ईयर में सिलवाई थी, वही ड्रेस पहन ले, मगर महिमा बिल्कुल तैयार नहीं हुई।
पिताजी ने कहा 1 तारीख आने दे, हम तुझे नई ड्रेस दिला देंगे| महिमा एक जिद्दी लड़की थी, वह किसी का नहीं सुनती थी। उसकी जिद के आगे सब हार जाते| पिताजी ने बैंक में पड़े आखरी कुछ नोट को निकाल कर महिमा को दे दिए। महिमा खुश होकर अपनी ड्रेस लेने चली गई।
कॉलेज के अंतिम वर्ष के बाद ही उसका विवाह तय हो गया। उसकी सहेली ने कहा इतनी भी जल्दी क्या है? कुछ और पढ़ लेती, कुछ बन जाती। मगर महिमा ने कहा "तू सोच मुझे कितने सारे ड्रेस, साड़ी, मेकअप और जाने क्या क्या मिलेगा। मैं तो तैयार हूं शादी के लिए और लड़का भी खूब कमाता है। यहां तो पिताजी 1 तारीख 1 तारीख रटते रहते हैं, वहां तो कोई तारीख का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
महिमा के पिताजी अपनी सारी जमा रकम को निकाल के महिमा के लिए शादी की तैयारी करते हैं। मगर आखिरी समय तक महिमा खुश नहीं होती। उसे हर चीज में कम ही कमी दिखती है। उसके पिताजी उसको खुश करने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हैं। मगर विदाई के समय भी यही कह कर जाती है, अब बाकी का आप रहने दीजिए नहीं तो फिर 1 तारीख का दुखड़ा सुना देंगे। शादी के बाद खूबसूरत महिमा और भी खूबसूरत हो जाती है। रोहित भी उसके खूब नखरे उठाता है। शुरू शुरू में किसी को एतराज नहीं होता महिमा की फिजूल खर्चे से।
पर एक समय के बाद रोहित ने महिमा से बहुत ही प्यार से कहा कि जब तक जरूरत ना हो तब तक सामान नहीं खरीदा करो। अनावश्यक सामान से खर्चा भी बढ़ता है और घर का रखरखाव भी नहीं होता। इससे अच्छा हमें भविष्य के लिए सेविंग करनी चाहिए। महिमा कुछ कह नहीं पाती, क्योंकि पिताजी को तो कुछ भी कह सकती थी । मगर यहां बात अलग है खुल के जीना अब कहाँ सम्भव?
रोहित का ट्रांसफर होने से नई गृहस्थी जमाना, बच्चे हो जाने से उनके खर्चों में उलझी महिमा दिन रात बजट के बारे में ही सोचा करती। नई साड़ी कब खरीदेगी, कब मेकअप के सामान खरीदेगी, पड़ोसी के यहां क्या है, वैसा ही सामान मैं कब ले आऊं? मगर कभी स्कूल फीस, कभी नया प्रोजेक्ट का खर्चा , कभी किसी बीमारी की दवाई, किसी का जन्मदिन, किसी की मैरिज एनिवर्सरी, तो कभी रिश्तेदारों का लेन-देन कभी खत्म नहीं होते, यह सब चलते ही रहते और पैसे समय से पहले खत्म हो जाते|
महिमा दिन रात हिसाब लगाती रहती, वह चाहती थी कि कुछ पैसे बचें, ताकि उसके और बच्चों के कुछ शौक पूरे कर सके| कभी बाहर जाने का प्लान बनता तो 3 दिन में ही कैंसल हो जाता। बच्चे और वह जितनी तेजी से उत्साह मनाते, उतनी ही तत्परता से मायूस भी हो जाते| महिमा बहुत ही दुखी हो जाती।
महिमा की बेटी रूही ने एक दिन एक खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और महिमा से जूतों के लिए बाजार चलने कहने लगी। महिमा ने उससे कहा महीने की आखिरी तारीख चल रही है अभी उसके पास इतना पैसा नहीं हैं| 1 तारीख तक रुक फिर चलेंगे| इतना कहते ही उसे अपने स्वर्गीय पिता की याद आ गई, वह बेचारे तो इतना कमाते भी नहीं थे और हमारा इतना बड़ा परिवार था| फिर भी मैं उनकी एक नहीं सुनती थी। आज मैं भी उसी दौर में हूं जहां कल मेरे पिताजी थे। कुछ याद आया कितने दिन हुए उसने अपने लिए कुछ खरीदारी नहीं करी, कितना मनहूस जीवन हो चुका है। 1 तारीख को तनख्वाह आती है, 3 तारीख तक किराया, किराना, स्कूल बस फीस, बिजली बिल, पेपर में मोबाइल बिल, दवाइयों में ही 70% खर्च हो जाता है, बाकी 30% का कोई हिसाब नहीं| महीने के 15 दिन खींचातानी में निकलते हैं। इसी उधेड़बुन में शाम हो गई| रोहित ने आकर चाय मांगी, महिमा चाय बनाते हुए काफी उदास थी। रोहित ने कारण पूछा तो उसने टाल दिया।
तभी रूही पापा के गलेे में हाथ डालकर बोली मेरेे प्यारे पापा मेरे लिए जूतेे ले दो, मुझे खेल में जूतों की बहुत जरूरत है| पापा ने कहा बेटा उन्हीं जूतों से काम चलाना होगा, अलग-अलग अवसर के लिए, अलग अलग सामान खरीदना पैसों की बर्बादी होती है। रूही ने कहा मगर मम्मा ने कहा है कि 1 तारीख
आने दो, ले दूंगी।
रोहित एक समझदार आदमी था। उसने कहा बेटा इस 1 तारीख का इंतजार पिछले कई दशकों से हर नौकरी पेशा आदमी करता आया है, जो या उच्च, मध्यमवर्गीय या निम्न वर्गीय कोई भी हो ।
पांच में से चार आदमी, 1 तारीख का इंतजार करते रहते है, मगर 3 तारीख आने तक सारी तनख्वाह इधर उधर बँट जाती है। कुछ लोग तो उधारी ले लेते हैं तो बची कुचि तनख्वाह भी नहीं बचती| तो फिर निकल पड़ते हैं उधारी लेने और यह चक्र चलता रहता है। इससे अच्छा हमें अपनी जरूरतों को कम करना चाहिए, ऐसी हसरत ही नहीं पालनी चाहिए जो पूरी ना हो सके| खुशियों को भौतिक सामानों में ढूंढना बंद कर देना चाहिए। केवल जरूरत पूरी हो सके बाकी पैसे बचत के रूप में जमा करनेे कोशिश चाहिए। अपने बिगड़े बजट से परेशान महिमा ने रोहित से पूछा तो साारी ख्वाईश का गला घोंट दें? मेरे मां बाप जिंदगी भर 1 तारीख का इंतजार करते रहे और पिताजी तो खत्म भी हो गये।
इतिहास खुद को दोहरा रहा है, हम भी 1 तारीख का इंतजार करते हैं और अपनी संतानों का सपना 1 तारीख के खूंटी में टांग देते हैं| आखिर कब तक? रोहित ने कहा "क्या जीवन की सार्थकता वस्तुओं का उपभोग करना मात्र है? नहीं, जीवन में लक्ष्य कीमती होता है, रिश्ते कीमती होते हैं, प्रेम, परोपकार, सेवा, इससे जीवन चलता है। इन सबके लिए त्याग बहुत जरूरी है, आराम और वस्तुओंं का उपभोग हमें आलसी और भीरु बनाता है। हम कठिनाइयों का सामना नहीं कर पाते। इससे तो अच्छा है, हम सीमित वस्तुओं के प्रयोग के द्वारा अपने उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त करें। तुमने कभी सुना है कि कोई व्यक्ति बहुत आराम से जीवन जिया और खूब आगे बढ़ा? नहीं! आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है। हर चीज पर्याप्त होगी तो कोई आगे बढ़ेगा ही क्यों? वहीं रुक जाएगा। अभाव ही आगे बढ़ने को प्रेरित करता है और सब कुछ मिल जाना बहुत बोरिंग होता है।
यदि भाग्य में कुछ यश संपन्नता है तो भी सादा जीवन उच्च विचार ,आपको भीड़ से अलग खड़ा कर देंगा।
- आज तुम कितनी परेशान रहती हो क्योंकि तुमने असीमित महत्वाकांक्षाए पाल रखी हैं जो अब लालच में तब्दील हो गईं हैं। एक इच्छा पूरी हुई नहीं कि दूसरी पैदा हो गई। इस उधेड़बुन में न कल, ना आज, ना आने वाले कल में चैन से जी पाओगी और यही शिक्षा अपने बच्चों को भी जाने अनजाने सिखा दोगी। मैं बहुत दक्ष तो नहीं, फिर भी कुछ बिंदु बताता हूं, चाहो तो नोट कर लो। यह तुम्हारी खुशी के लिए बहुत जरूरी हैं।अनावश्यक चीजों का संग्रह मत करो, जैसे डिनर सेट, मग, चादर आदि। फैशन बदलेगा यह चीजें काम की नहीं रहेंगी।
- यदि 1 साल तक कोई वस्तु उपयोग में नहीं आ रही है तो उसे या तो बेच दें या दान कर दें।
- आय का 20% बचत करें।
- किसी भी सेल के चक्कर में ना पड़ें। सेल जनहित में नहीं लगाई जाती जरूरत के एक सामान के बदले हम चार खरीदते हैं तो खर्च तो चौगुना हुआ।
- बिना कारण की बिजली ना जलाएं ।
- घर में बनाए भोजन और पकवान ही उत्तम हैं, यह ना सिर्फ खाने योग्य होते हैं बल्कि पैसों की बचत करते हैं।
- बाद में काम आ जाएगा यह सोचकर कुछ भी ना खरीदें। कोई भी कपड़ा या सामान जो आज काम में नहीं आ रहा यकीन मानो कल भी नहीं आएगा|
- जन्मदिन का देसी तरीका श्रेष्ठ है, प्रदर्शन के चक्कर में केक को मुंह में लगा लगा कर खराब करना गलत है| इसके बदले यह केक अनाथ आश्रम वृद्ध आश्रम में बांट दीजिए, कम से कम दुआ तो मिलेगी|
- तन्खवा आए तो जितने लोगों को पेमेंट देना है इतने लिफाफे पहले से बना लें, यहां तक कि महीने के आखिर का लिफाफा भी बनाकर डाल दें, ताकि अति आवश्यक सामान के लिए 1 तारीख का इंतजार ना करना पड़े।
आखिरी और सबसे जरूरी बिंदु संतोषी जीवन सबसे अच्छा। लालची व्यक्ति हमेशा दुख पाता है।आखिर महिमा को पता चल ही गया था कि वह कहां गलत थी। उसने रोहित से वादा किया कि वह हमेशा बजट के अनुसार ही चलेगी और अपनी अनंत महत्व कांक्षा और लालच को संतोष मैं बदल देगी। अपने बच्चों को भी सीमित आय में आनंद से जीना सिखाएगी। जीवन जीने के लिए है 1 तारीख के इंतजार के लिए नहीं।
आप सभी 1 तारीख का इंतजार करते हैं या अपना बजट कंट्रोल में रखते हैं अपनी राय जरूर दें जिससे सबका भला हो सके।
धन्यवाद।