बालमन की मनोदशा की रक्षक
बालमन की मनोदशा की रक्षक
मेरे पिताजी फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया में काम करते थे। रबी और खरीफ की फसलों के हिसाब से तबादला होता रहता था। हम कभी भी एक जगह पढ़ाई नहीं कर सकते थे। तबादलों के के कारण हम लोग अभ्यस्त हो गए थे बदलाव के।
ऐसा ही एक बदलाव आया जब पिताजी जी का तबादला गुजरात में हुआ ,जहां हमें सारे विषयों के साथ गुजराती विषय लेना आवश्यक था।
बचपन से ही मैं पढ़ाई को बड़ा गंभीरता से लेती थी। गुजराती विषय ना तो समझ आता था। ना ,ही लिखना आता था। गुजराती विषय के पीरियड में मैं लगातार जूझती रहती, मगर फिर भी कुछ बनता नहीं। जब सारी हिम्मत हार गई तो निराश हो गई।
जैसे ही पीरियड शुरू होने का समय होता दिल धक धक करने लगता। पसीने आने लगते। और लगता चारों तरफ अंधकार ही अंधकार है। धीरे धीरे मैं अवसाद ग्रस्त रहने लगी। घंटो रोतीरहती।
मेरे गुजराती विषय की शिक्षिका का नाम हरी मैडम था। वह बहुत ही सुलझी हुई शांत महिला थी। उनको मैंने कभी भी जोर से बोलते जो चिल्लाते हुए नहीं सुना था। यही एक कारण था कि मैं निराश होते हुए भी चुपचाप पढ़ने की कोशिश करती रहती, मगर यह प्रयास ज्यादा दिन नहीं चला, और मैं लगभग हार मान चुकी थी।
अगले दिन बुधवार था गुजराती विषय पीरियड शुरू होने ही वाला था और मैं लगातार हिचकी ले लेकर रो रही थी। जब मैडम आई तब सारे सहपाठियों ने मैडम से कहा कि यह लगातार रो रही है। हरी मैडम ने सारे बच्चों को कुछ अभ्यास करने के लिए दे दिया। और मुझे अपने गोद में बिठाया और गुजराती बाराखडी लिखना सिखाने लगी। छठवीं कक्षा में मैं गुजराती बाराखडी सीख रही थी ,उनके सौम्य,ममता मय व्यवहार के कारण मैं थोड़ा शांत हुई।
मेरी अनभिज्ञता के बावजूद उन्होंने बेहद शांति से मुझे हफ्ते दर हफ्ते गुजराती बाराखडी ,शब्द बनाना सिखाती रही। मेरी घबराहट डर अब थोड़ा कम होने लगा था। हरी मैडम ना केवल मुझे गुजराती विषय के पीरियड में पढ़ाती थी।
बल्कि रिसेस में मेरे लिए गुजराती डिश बनाकर लाती और मेरे साथ लंच करती थी।मेरे स्कूल के प्रांगण में झुमरु चाट वाले भैया अपना ठेला लगाते,जिसे मैं बड़े चाव से खाती थी,हरि मैडम मुझे पैसा देकर खुद के लिए और मेरे लिए चाट मंगवाया करते हैं और स्टाफ रूम में मुझे अपने साथ बिठा कर खिलाती साथ ही साथ गुजराती पढ़ाती जाती मैं अच्छी छात्रा तो थी ही आज्ञाकारी भी थी उनके बताए रास्ते पर चलते हुए मैंने कड़ी मेहनत की जो सबक वह देती मैं उन्हें जल्द ही याद करके उनको बता देती हमारे टेस्ट हुए और आश्चर्य की गुजराती विषय में मेरे बेहद संतोषजनक अंक आए हरी मैडम का पढ़ाने का उत्साह दुगना हो गया मैं भी उनके संपर्क में काफी अच्छी जानकार बन गई थी जब हमारी अर्धवार्षिक परीक्षा हुई तब सारी क्लास में मैं अव्वल आई इस बीच मेरा और हरी मैडम का रिश्ता बहुत प्रगाढ़ हो गया था। हम गुरु शिष्य की जोड़ी पूरे स्कूल में छा गई थी। संडे को अपने घर बुलवाया करती, हम वहां पर ढेर सारा अभ्यास किया करते चाहे वह पढ़ाई से संबंधित हो या कोई प्रोजेक्ट से संबंधित। सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या कोई निबंध प्रतियोगिता, चित्रकला प्रतियोगिता सब में हरी मैडम मेरा मार्गदर्शन करने लगी। उनकी वजह से लगभग हर प्रतियोगिता को मैं जीत जाती
मगर जैसे मैंने आप सभी को बताया कि मेरे पिताजी का तबादला जल्दी-जल्दी हुआ करता था। यहां पर भी मैं ज्यादा दिन नहीं रह पाई, और पिताजी का फिर से तबादला हो गया। जब मैंने हरी मैडम को यह बात बताई तो वह मुझसे भी ज्यादा उदास हो गई।
मेरे जीवन में मेरे शिक्षकों का बहुत महत्व रहा है उनके द्वारा दिए गए ज्ञान से ही आज मैं लेखक के तौर पर अपने आप को स्थापित कर पाई हूं। उन्हीं शिक्षकों में से एक थी मेरी हरी मैडम मुझे याद है जिस दिन हम टी सी निकालने स्कूल गए थे मेरे पिताजी को हरी मैडम ने कहा था इसे यहीं छोड़ जाइए अभी जो गुजराती सीखी है इस्तेमाल भी नहीं कर पाई थी की आप ले जा रहे हैं। ऐसा बोलकर उनकी आंखें भर आई थी। और मैं उनसे लिपट कर रो पड़ी थी।
मन में हरी मैडम की यादें लिए मैंने गुजरात छोड़ा आज भी जब कभी गुजराती में लिखे हुए कोई शब्द दिखते हैं या कोई गुजराती डिश खाती हूं तो मन कहीं दूर हरी मैडम को याद करने लगता है।
पता नहीं अब कहां होगी वह उन्हें पता भी होगा कि नहीं कि जिस छात्रा को उनने अपनी गोद में बिठाकर तिल तिल कर पढ़ाया था बिना किसी एक पैसे की उम्मीद किए बिना ,किसी मेडल की चाह में ,बिना यह जाने कि वह जिस पर इतनी मेहनत कर रही है, वह आने वाले महीनों में उस स्कूल में रहेगी भी या नहीं वो शिष्या उन्हे कितनी शिद्दत से याद करती है। काश कि मैं उनसे एक बार मिल पाती उनको बोल पाती की हुं तने प्रेम करूँ छूं। कितनी महान कितनी आदर्श शिक्षिका थी मेरी।
