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Pallavi Verma

Drama

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Pallavi Verma

Drama

हौसला

हौसला

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मेरा नया एडमिशन हुआ था। सत्र के बीच में। बकायदा परीक्षा देकर। मैं उत्तीर्ण हुई और पाठशाला जाने लगी। दुर्भाग्य से मेंरी अध्यपिका जिसने मान लिया था की कौन प्रथम आएगा या ये मान लिया था, कि नयी आई छात्रा प्रथम नहीं आ सकती।

हमारे कई सारे विषय वो अकेले ही पढाया करती थी । अर्ध वार्षिक परीक्षा मेंं हद से ज्यादा मेंहनत करनी पड़ी क्योकि पहले कराया गया कोर्स भी कंप्लीट करना था ,और परीक्षा के लिए भी तैयारी करनी थी जब अर्धवार्षिक परीक्षा का परिणाम आया तुम मेंरी आकांक्षा के विपरीत अंक देखकर मैं अपनी 10 साल की आयु मेंं चकित रह गई ,और पता नहीं मन मेंं क्या विचार किया सारे पेपर्स को रोल करके मैंने पहले से तैयार किए और मैडम से वॉशरूम जाने के लिए इजाजत मांगी और सीधे दन दनाते हुए प्रिंसिपल रूम मेंं चली गई, वहां पर उनको अभिवादन किया, और सीधे स्पष्ट शब्दों मेंं नम्रता से अपनी बात रख दी कि मेंरे सारे के सारे विषयों मेंं अंक कम दिए गए हैं यदि कुछ अंकों की बात होती तो मैं आपको परेशान ना करती, पर मेंरी आशा के विपरीत यहां केवल पासिंग मार्क्स ही दिए गए हैं।

मेरा अनुरोध है कि कृपया आप व्यक्तिगत रूप से इसे चेक करें, प्रिंसिपल ने मुझे कहा और आश्वस्त किया, कि ठीक है मैं देखती हूं। तुम इस बारे मेंं किसी से मत कहना और मुझे वापस कक्षा मेंं भेज दिया।

मैं वापस आकर अपनी कक्षा मेंं बैठ गई । उन दिनों हमारी दो रिसेस हुआ करती थी । पहली रिसेस चल रही थी, तभी पियून आया और बोला तुम्हें प्रिंसिपल रूम बुलाया जा रहा है। मेंरे सारे दोस्त डर गए और पूछने लगे तूने क्या किया? तुझे क्यों बुला रहे हैं? मैंने उनसे कहा कोई बात नहीं, तुम लोग टिफिन फिनिश करो मैं आती हूं। जब मैं प्रिंसिपल रूम पहुंची। वहां का वातावरण बहुत ही तनावपूर्ण था। मैंने देखा प्रिंसिपल मैडम मेंरी टीचर को भी वहां बुलाई थी। मैं दोनों हाथ पीछे करके सिर नीचे करके खड़ी हो गई।

प्रिंसिपल मैडम मेंरी तरफ आई मेंरे पीठ पर हाथ फेरा और दोनों हाथों मेंं मेरा चेहरा लेकर मुस्कुराई, मैंने भी उन्हें देखकर हल्का सा मुस्कुरा दिया, फिर वह मेंज मेंं रखी हुई मेंरी पेपर मेंरे हाथ मेंं देते हुए बोली तुम हिंदी मेंं कितनी उम्मीद कर रही थी, मैंने उन्हें बता दिया 50 मेंं से 45 के ऊपर उन्हें मेंरे हाथ मेंं पेपर दिया उसमेंं 48 मार्क्स थे जबकि मुझे पहले 17 मार्क्स दिए गए थे।

और इंग्लिश मैं कितना मिलना चाहिए मैंने कहा लगभग 48 उन्होंने मुझे कहां बिल्कुल सही तुमको 49 नंबर मिले हैं।

मैंने कहा मेरा गणित का पेपर ठीक नहीं गया था उसमें मुझे 38 मार्क्स ही मिलने चाहिये ,इस तरह से उन्होंने मेंरे अन्य विषय के बारे मेंं भी पूछा मैंने निडरता से अपने टीचर के सामने ही कहां सारे विषयों मेंं मुझे कम अंक दिए गए हैं जबकि मुझे ज्यादा की उम्मीद थी। मैंने ध्यान से देखा मेंरे बढ़ाएं हुए अंको के नीचे हरे पेन से मेंरे प्रिंसिपल मैडम के साइन थे । और अंदर भी सारे उत्तर को अंडरलाइन करके हरे पेन से चेक किया गया था । मुझे सारे पेपर दे करके मैडम ने कहा मैं पहली बार तुम जैसी छात्रा से मिली जिसे अभी स्कूल मेंं आए हुए ज्यादा वक्त भी नहीं हुआ फिर भी अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का साहस रखती हो बहुत खुशी हुई मुझे तुमसे मिलकर मैंने उनके पैर पड़े, उन्होंने मुझे गले लगाया ,और कहां अपनी कक्षा मेंं जाओ। मैं अपने पेपर्स उठाई और बाहर आ गई उन दिनों हमेंं जूते उतारकर प्रिंसिपल रूम जाना होता था, जब मैं जूते पहन रही थी ,मुझे स्पष्ट आवाज आ रही थी, मेंरी मैडम लगातार प्रिंसिपल मैडम से माफी मांग रही थी । और मैडम उन्हें कड़े शब्दों मेंं अपमानित कर रही थी।  

फिर मैं वापस कक्षा मेंं आ गई मेंरे चेहरे मेंं काफी सुकून था, मगर यह सुकून ज्यादा देर का मेंहमान नहीं था। मुझे आने वाले समय मेंं इन मैडम से लगातार दंडित होना पड़ा क्योंकि मेंरे कारण जो उनको अपमान सहना पड़ा उ,स अपमान का बदला उन्होंने मेंरे साथ तब तक लिया ,जब तक मैं उस स्कूल मेंं रही।

चूँकि मेंरे पिताजी फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया मेंं थे इस वजह से हमेंं जल्दी-जल्दी अपने स्कूल बदलने पड़ते थे क्योंकि उनका तबादला रवि और खरीफ की फसलों की हिसाब से होता था।

ज्यादा समय तक मैं उस स्कूल मेंं नहीं रही पर मुझे याद है कि कठिन से कठिन प्रश्नों को मुझसे पूछा जाता, यदि मैं जवाब ना दे पाती, तो गोल लकड़ी से हथेली लाल कर दी जाती। हाथ ऊपर करके घंटों पीछे खड़ा किया जाता। लगभग पहले पीरियड मेंं मुझे हर रोज दंड दिया जाता था कई बार तो मुझे समझ मेंं नहीं आता कि मैंने किया ही क्या है ?चाहे डांस कंपटीशन हो, लेमन स्पून रेस हो ,बाधा दौड़ ,कुर्सी दौड़ हो । मेंरे साथ बहुत भेदभाव किया जाता । मगर मैंने भी कभी हार नहीं मानी। मैं हर एक प्रतियोगिता मेंं भाग लेती । और कड़ी मेंहनत से अपना स्थान बनाती।

एक प्रकार से मेंरी उस टीचर ने मुझे जिंदगी के सबसे बड़ा सबक सिखा दिया था कि जो भी व्यक्ति अन्याय के खिलाफ खड़ा होता है उसके साथ सबसे ज्यादा अन्याय होता है। मगर मेरा व्यक्तित्व निखारने का इतना बड़ा उत्तरदायित्व उन्हीं ने निभाया। आज भी कई दफे जीवन मेंं ऐसे पड़ाव आते हैं। जब मुझे निर्णय करना होता है कि मैं आगे बढ़ू या हर किसी के समान सह जाऊं। मगर जब मैं 10 वर्ष की आयु मेंं नहीं रुकी तो अब क्या कहां रुकूंगी। ये हौसला तब भी बुलंंद था आज भी है ।

फिर भी इस संघर्ष की वही मुख्य सूत्रधार थी थैंक यू टीचर।

दोस्तों यदि बचपन से ही हम अपने बच्चों को हौसला देंगे अपनी बात रखने का, खुद के सम्मान का, खुद के अधिकारों का, महत्व समझाइएंगे। तो वे  कभी भी अपनी बात रखने मेंं नहीं हिचकिचाएँगे। सम्मान पूर्वक अपने जीवन को जी पाएंगे।


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