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Pallavi Verma

Drama

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Pallavi Verma

Drama

बोनसाई

बोनसाई

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डिलेवरी के पाँचवे दिन ही निशा को डिस्चार्ज मिल गया। बेटी हुई है उसकी, उसके नन्हे-नन्हे चेहरे को देखकर उसका मन भर आया, आज वह माँ जो बन गई थी, जब वह अपने घर पहुंची तुरंत ही सासु मां ने कहां कि अगले बार लल्ला ही होना चाहिए।

निशा का चेहरा बुझ गया बुझे मनसे वह सिर्फ मुस्कुरा दी। कमरे में जाते ही उसके पति अजय आए कहा यह रोनी सूरत क्यों बना रखी है? निशा ने बात टाल दी।

एक बार बातों ही बातों में उसकी बिटिया माही को ननद ने खिलाते हुए कहा यह तो पराई अमानत है निशा का मन बैठ गया, अपने बच्ची के लीवह सोचने लगी कि जब तक मैं अपने मायके में थी, मुझे पराई अमानत कहा गया, हमेशा कहा गया की तुमको अपने घर पति के घर जाना है यह घर तेरे भाई का है, और जब कभी ससुराल में छोटी सी बात पर भी झगड़ा हो तो पति कहता निकल जाओ मेरे घर से उम्र के इस दहलीज में भी एक औरत होने के नाते मैं समझ ही नहीं पाती कि मेरा घर कौन सा है पिता का या पति का आज जब मेरी मां मेरे पिता की मृत्यु के बाद मेरे भाई के घर में है तो मेरी मां का घर कौन सा है?क्यो हर औरत गमले की बोनसाई होती है फलती फूलती है मगर एक दायरे मे, मगर उसने निर्णय लिया कि वह नहीं बनेगी बोनसाई वह असीम उचाईयों को छुएगी।

गमले में नही धरती मे बोएगी अपने अस्तित्त्व का बीज, तभी माही रोने लगी और वो वर्तमान में लौट आई पर आज कुछ निष्कर्ष पर पहुँच चुकी थी निशा, शाम का खाना परसते हुए उसने अपने ससुराल वालों को बताया उसने बैंक के मुख्य परीक्षा के लिए आवेदन दिया है सभी सकते में आ गए की बेटी अभी छोटी है मत काम करो मगर उसने कहा मैं संभाल लूंगी ऐसा नहीं की दिक्कत ही नहीं आई, आई मगर वो सब को संभालते हुए परीक्षा में उत्तीर्ण हुई 5 साल बाद उसने एक मकान खरीदा सभी ने सोचा कि यह पति पत्नी के नाम होगा मगर जब रजिस्ट्री देखी तो उसमें निशा का नाम था और नाबालिग नॉमिनी में माही का।

आज शाम को चाय का कप लिए निशा खुश नजर आ रही थी कि हां यह मेरा घर है और माही का भी। माही कोई बोनसाई नहीऔर ना ही पराई अमानत है। ना, चली जा अपने घर के तानो को सुनने को मजबूर कोई आश्रित। यह माही है मेरी माही। मेरी बेटी। एक स्वतंत्र इकाई एक पूरा वजूद लिये जियेगी जिन्दगी अपनी शर्तों पर।


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