नारद मुनि
नारद मुनि
जिन्दगी में ऐसे कई पल आते है जहां इन्सान खुद को कमजोर और बौना समझने लगता है। ऐसा कभी खुद के कारण तो कभी औरों के कारण अक्सर लगने लगता है। वैसे औरों की क्या मजाल जो कमजोर या बौना महसूस कराए? यह तो अपना ही मन कम्बख्त ऐसा ढीला है कि बस, जाने अनजाने खुद पर लगा ही लेता है। इसलिए औरों का तो केवल बहाना होता है... कहते है ना - अगर दूल्हे के मुंह से लारें टपकती हो तो बेचारे बराती क्या कर सकते है! बस जनाब जो कुछ होता अपने मन का ही फंडा है 'और' तो बेचारे यूं ही बदनाम होते है! ऐसा ही कुछ हाल है हमारी सविता काकी का!
आए दिन काकी को किसी न किसी से शिकायत रहती ही है। बाहर वालों से, अपने घरवालों से, खासकर अपनी बहु से। चलो खुद की बहु से तो शिकायत है ही पर मुहल्ले भर बहुओं से शिक़ायत है। किसी से घूंघट न निकालने के लिए शिकायत तो किसी ने पांव नहीं छुए तो किसी ने आवकार नहीं दिया तो किसी ने चाय के लिए भी नहीं पूछा! अरे भाई इतना ही नहीं समझते कि एक बुजुर्ग महिला घर पर आई और उसकी कोई इज्जत नहीं, आदर नहीं! इस तरह इसकी उसके आगे तो उसकी इसके आगे काकी की शिक़ायत भरी बातें चलती रहती है!
मजे की बात तो यह है कि सारे मुहल्ले के बखान मेरे आगे, मैं परेशान हो जाती, मेरा सारा काम बीच में रह जाता अगर करने लगूं तो काकी का अपमान! समझ में नहीं आता कि क्या करू क्या नहीं करूं? लेकिन इसी तरह खुश होकर काकी कुछ न कुछ कहती रहती और मैं सुनती रहती... काकी के चक्कर में मैं घनचक्कर बन जाती! उहापोह में पड़ी न काम कर पाती और न ही काकी की बातें सुन पाती... अंदर ही अंदर परेशान! तन काकी की बातें सुनने के लिए काकी के पास बैठा रहता मगर मेरा मन कामों में उलझा रहता। खाना भी यह कहकर बनाती - काकी तुमने कुछ खाया नहीं होगा मैं तुम्हारे लिए खाना बना लेती हूं तुम गरमागरम खा लो!
हां वैसे भूख तो नहीं है पर तुम्हारा मान भी तो कोई चीज है, चलो खा लूंगी थोड़ा सा... तेरा मान रखने के लिए नहीं तो तुम्हें कितना बुरा लगेगा!
हां काकी, सो तो है पर काकी जब तक तुमको खिला न दूं, चैन ही नहीं पड़ता है!
बहु, यही तो है संस्कार! अपने बड़ों की इज्जत करना, उनका मान रखना। सच कहूं बहु, मुहल्ले में कोई नहीं तेरे जैसी! रंग सेबास (शाबाश) है तेरे माता-पिता को! यह काकी का रोज़ का शगल है! मैं तमाम कोशिशों के भी काकी को खुलकर कुछ नहीं कह पाती और मेरे ज़रूरी काम रह जाते।
कई बार मेरा घर बिखरा रहता, बच्चे स्कूल से आ जाते तब उनमें लगना पड़ता। थोड़ी देर के लिए किसी और के यहां चक्कर लगाकर चाची फिर आ जाती, बच्चों का होमवर्क वगैरह रह जाता। रात को कराने बैठती मगर उस वक्त उनको नींद आती फिर मिस्टर गुस्सा करते - क्या यार, तुम बच्चों को बेवक्त पढ़ाती हो। बेचारों की आंखें नहीं खुलती दिन भर करती क्या हो? यही तो, काकी के आगे-पीछे लगी रहती हो! वो औरत किसी की सगी नहीं। तुम्हें क्या लगता है अगर तुम उसकी तीमारदारी करोगी तो बुराई नहीं करेगी? जो अपनी बहुओं को नहीं छोड़ती, तो क्या वो तुम्हें बक्श देगी? अगर इस चक्कर में हो तो भूल जाओ। हां तुम्हारे मुंह पर तो तुम्हारे गुणगान करने में जाने कितने कसीदे काढ़ेगी! वैसे भी उसने तुम्हें ताड़ को झाड़ पर खूब चढ़ा रखा होगा!
नहीं, ऐसा नहीं है।बेचारी बुजर्ग महिला है, आ जाती है, तो क्या आवकार न दूं? आप भी सोचो, क्या अच्छा लगेगा?
अरे मॅडम, कभी - कभी के लिए ठीक है लेकिन रोज़-रोज़ का झंझट! कितनी बार तो मेरे आॅफिस से आने तक भी बैठी रहती है। मैं फ्रेश भी नहीं हो पाता हूं, जैसे ही आता हूं अंदर आ जाती है और फिर लंबी -लंबी हांकने लगती है मुहल्ले भर की! रियली मैं तो परेशान हो जाता हूं, रोज़ के वही वही टाॅपिक्स! मेरा तो दिमाग भन्ना जाता है, तुम बोर नहीं होती?
होती तो हूं, कई बार कहने की कोशिश भी करती हूं पर हिम्मत ही नहीं होती!
फिर एक बार हिम्मत करके कह क्यों नहीं देती? तुमसे नहीं कहा जाता तो मैं कह देता हूं! रियली, घर में प्राइवेसी नाम की कोई चीज नहीं रही! आजकल पता है आॅफिस में तुम्हारे साथ काकी-पुराण के चर्चे है। अभी परसों ही आशिष कह रहा था - अब काकी ने तेरा घर पकड़ा है, पता नहीं भाभी के बारे में क्या - क्या कह रही थी - ऐसे तो ठीक है पर सास-ससुर से अलग रहती है, आज़ाद हो गई है। अरे भई तेरी सास की उमर की हूं और अपने पति से मेरे सामने ही नंगे सिर पटर-पटर करती है भाई, मुझे सरम लगती है!
वाह काकी, मेरे सामने तो मुझे संस्कारी बता रही थी, मेरी बड़ी तारीफ कर रही थी और बाद में पीठ पीछे ऐसे रंग बिखेरती है!
और नहीं तो करता, मैंने तुम्हें दो-तीन बार पहले भी कहा था - काकी को ज्यादा मुंह न लगाओ पर तुम तो तारीफ की भूखी जो ठहरी! इसको पूछना तो सही इसने खुदने जवानी में क्या-क्या गुल खिलाए थे?
क्या बात करते है, फिर आपको कैसे मालूम?
कैसे क्या? इनके घरके लोग ही कहते है!
अरे वाह, आपको तो औरतों की तरह बहुत कुछ मालूम है!
मालूम तो तुमको भी हो जाएगा जब काकी की तारीफों से बाहर निकल कर देखोगी!
ठीक है फिर हम भी देख लेते है इस जगतकाकी को!
अभी मुश्किल से बच्चे और आदित्य घर से निकले ही थे कि काकी हाजिर! आज मैंने सिर्फ आने को कहा और अपने काम में लग गई! काकी कुछ न कुछ बोलती रही लेकिन मैं रोज़ की तरह सारा काम-धाम छोड़कर उनके पास में नहीं बैठी। मैं अपना काम करती रही काकी पता नहीं क्या-क्या बड़बड़ाती रही, बीच में कहीं हां - हूं कर देती! बाद में बोर होकर खुद ही चली गई मैंने सोचा - चलो अच्छा हुआ जल्दी ही पिंड छूटा लेकिन मेरी सोच कितनी गलत निकली! कुछ ही देर में खुद लौट आयी!
आते ही बोली - अरी बहु सुन तो बड़े काम की बात है! मजबूरन बैठना पड़ा - तुझे कुछ मालूम भी है तेरे बारे में वो तेरी भायली राधा बड़ी बकवास कर रही थी। कह रही थी - मधु तो अपने सास-ससुर के साथ नहीं रहती इसलिए छोटे-बड़े का लिहाज ही नहीं। कैसे भी रहती है, मुझे तो बड़ा गुस्सा आया मैंने तो कह दिया मधु बहु जैसा कोई संस्कारी नहीं! सच्ची कहूं - मैंने तो डांट दिया, फिर चुप हो गई!
काकी क्यों झूठ बोल रही हो ये सब तो मेरे बारे में आपने कहा है राधा को। आप तो राधा के सामने उसकी खूब तारीफ करते थे और मेरी बुराई, जैसे अभी मेरे सामने राधा की बुराई करते हो। वाह काकी, आप तो बड़े नारद मुनि निकले! अरे काकी, आपकी उम्र हो गई है, ये सब आपको शोभा नहीं देता! मैंने आपको कितना मान दिया, ख्याल रखा, अपना काम छोड़छाड़ कर आपके पास बैठी रहती थी। मेरा काम, मेरे बच्चों की पढ़ाई सब छूट जाता था कि आपको बुरा न लगे और आपने ये सिला दिया ?
अरी बहु मैं तो तुम्हारी तारीफ़ करते नहीं थकती थी और तुम ऐसी बातें करती हो? तमीज नाम की कोई चीज नहीं। मां-बाप ने यही संस्कार दिए है, बड़ों से ऐसे बात करते है? मैं तो तुम्हें संभालने को आ जाती थी कि घर में कोई बड़ा नहीं है ना इसलिए! तौबा-तौबा इसके रंग-ढंग तो देखो, हे भगवान जी!
काकी, सब जान गई हूं किसलिए अपने मुंह को थका रहे हो? आज तो मेरे पास चाय बनाने का भी टाइम नहीं है, आज घर जाकर अपनी बहु से बनवा लो और एक कप मुझे भी लाकर दे दो, भगवान जी भला करेंगे आपका!
मेरी बहु खाली बैठी है जो तेरे लिए चाय बनाकर भेजेगी, उसे काम नहीं है क्या?
है ना बहुत काम है आपकी बहु के पास, मेरे पास तो टाइम ही टाइम है पर चाय बनाने के लिए नहीं है! काकी, नहीं तो आप ही अपनी चाय के साथ मेरी भी बना दो, देखूं तो सही आपकी मां ने आपको चाय बनानी सिखाई भी है! आपको तो अच्छी ही बनानी आती होगी, है ना काकी?
मैं तेरी नौकर हूं जो चाय बनाऊं तुझ महारानी के लिए, चाय बना दो, आई बड़ी! इतने दिन तो बड़ी अच्छी बन रही थी, आ गई असलियत सामने! बड़ों की कोई इज्जत ही नहीं है जैसे!
काकी, इज्जत देकर ली जाती है। सब जगह सबके बारे में रायता तो आपने फैला रखा है उसी का नतीजा है, मुझे तो आप माफ ही करो! भगवान जी भला करे आपका, अब मेरे पास वक्त नहीं है काम भी बहुत पड़ा है!
अरेरेरेरे... ये लुगाई तो पूछो ही मत, हे भगवान जी, मैं इसके लिए क्या - क्या सोचती थी और क्या निकली! ये तो एकदम छागटी कुत्तिया है, राम-राम रे भगवान जी !
काकी, खबरदार जो बकवास की! मुझे लगता है अब आपको अपने घर जाना चाहिए शायद वही खुला मिले, बाकी के दरवाजे तो आपने खुद ही बंद कर रखे है। आज तो आपने ये दरवाजा भी बंद कर दिया!