नाम में क्या रखा है

नाम में क्या रखा है

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ॠषिता को बचपन से ही लिखने का बड़ा शौक था। स्कूल के मैगजीन, काॅलेज की पत्रिकाओं में उसके लेख छपे थे। लेखिका के रूप में जब उसे थोड़ी प्रसिद्धि मिल रही थी कि ऐसे समय एकदिन उसकी शादी करा दी गई। शादी के बाद, जैसा कि अकसर होता है, कलम को ताक पर उसे चूल्हा -चौका पर अपना ध्यान केन्द्रित करना पड़ा।

एक दिन उसके पति ने उसे चोरी -छुपे लिखते हुए पाया। वे अवाक् रह गऐ उसका लेख पढ़कर।

उन्होंने उसे और लिखने को कहा।

बोले--"तुम लिखो, छापने की जिम्मेदारी मेरी।"

उसने खुशी-खुशी एक सुंदर एवं सारगर्भित लेख लिखकर पतिदेव के सुपुर्द कर दिया।

कुछ दिन बाद उसके पति दफ्तर से मिठाई लेकर लौटे।


बोले ," तुम्हारा लेख हमारे विभागीय पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। लो मुंह मीठा करो। मेरे बाॅस ने भी इस लेख को खूब सराहा है।"


उत्सुकतावश उसने पत्रिका खोलकर लेख पढ़ें। लेख तो वही था परंतु लेखक के नाम के स्थान पर उसके पति का नाम छपा था।


" नाम में क्या रखा है ?"


आंसुओं से डबडबाती हुई अविश्वास भरी दो जोड़ी घूरती नज़रों की तनिक भी परवाह न करते हुए उसके पतिदेव ने यह कहकर स्नान हेतु बाथरूम की ओर चल दिए।


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