नाचता चेहरा (लघुकथा)
नाचता चेहरा (लघुकथा)
बाल्यकाल में अब वह अबोध न रही थी। घर में एक एलबम देखते हुए व एक-दूसरे को दिखाते वक़्त आज जैसे ही उसे उसकी कुछ साल पहले वाली तस्वीर दिखाई गई, सुंदर रंगीन पोशाक में सजी-धजी अपनी फोटो देखकर उसके मुख से निकली चीख एक कठोर हथेली से दबा दी गई। दो उम्रदराज आंखें बोल रहीं थीं, फटे से दो बाल-नयन उन्हें सुनकर बस चीख रहे थे। एलबम के पृष्ठ फड़-फड़ की ध्वनि के साथ पलटे जा रहे थे मधुर स्मृतियों की टिप्पणियों को हँसी में लपेटते हुए। वह मूक बनी परिवारजन को भौचक्की सी घूर रही थी। ... फिर ... फिर क्या हुआ? वह हथेली शीघ्र ही ढीली पड़ गई। मासूम ज़ुबाँ नियंत्रित कर ली गई। एलबम देखने-दिखाने की रस्म पूरी हुई। कक्ष में संगीत गूँजने लगा, महँगे टीवी के परदे पर मोबाइल से वीडियो जो देखा व दिखाया जाने लगा था! वह संगीत व नृत्य में खो गई, वीडियो में वह भी थी। सब उसके नृत्य पर तालियाँ बजा रहे थे। अब उसके चेहरे के भाव बदल चुके थे, मासूम जो थी!