मुंशी प्रेमचंद्र
मुंशी प्रेमचंद्र
स्कूल का पहला दिन तो नहीं कहा जा सकता पर हां स्कूल के ही दिनों की एक बड़ी रोचक घटना याद आई ।
जो मैं आपके सामने बताना चाहूंगी।
मेरी इतिहास की अध्यापिका मुझे बहुत प्यार करती थी उन्होंने मुझसे पूछा कि तुम्हारे पिताजी क्या करते हैं तो मैंने उन्हें अपने पिता की व्यापार के बारे में बताया मेरे पिताजी हीरे का व्यापार करते थे।
हीरे के आभूषण बनवा कर उनको बेचने का काम था ।
मेरी अध्यापिका ने मुझसे कहा कि तुम उनको अपने स्कूल में ही बुलवा लो मुझे उनसे कुछ कानों के लिए खरीदना है।
मैंने अपने पिताजी को बोल दिया कि आप अगले दिन स्कूल में कानों के कुछ आभूषण लेकर आ जाना।
मेरे पिताजी धोती , कुर्ता और सर पर टोपी यही हमेशा पहनते थे वह और उस समय उनकी दाढ़ी भी कुछ बड़ी हुई थी।
जब वह स्कूल में आए तो मेरा उस समय मध्यांतर चल रहा था हम सभी सहेलियां आंगन में खेल रहे थे तो मेरी कुछ सहेलियां मजाक बनाते हुए कहती हैं कि देखो हमारे स्कूल में मुंशी प्रेमचंद जी चले आ रहे हैं।
मैं भी मजाक बनाती हुई बोला कि अरे वाह चलो चलो देखते हैं मुंशी प्रेमचंद को....
पर जैसे ही पिताजी सामने आए तो मेरे होश उड़ गए मैंने सबको बताया कि यह तो मेरे पिता है और फिर हम लोगों का बाद में हंस हंस के जो बुरा हाल हुआ यह घटना में आज तक नहीं भूल पाई।