मुनिया की दुनिया

मुनिया की दुनिया

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चौदह वर्षीय मुनिया काम के बदले गेहूं चावल ही मांग कर ले जाती रीनाभी बड़ी खुश घर के छोटे मोटे काम स्कूल की छुट्टी के दिन अधिकांशतया रविवार को मुनिया मात्र थोड़े से अनाज की खातिर आसानी से खुशी खुशी निपटा जाती साथ ही रीना का पुराना पड़ा अनाज ठिकाने लग रहा था वो अलग। मुनिया को देखते ही रीना बांछे खिल जाती हींग लगे ना

फिटकरी रंग भी चोखा. ऊपर से रीना गाहे बगाहेअपना एहसान जताने से नहीं चुकती कभी रीना ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि मुनिया को पेट भर

खाना मिलता है या नहीं इस डर से भी नहीं पूछती कि कहीं उसका सवाल उस पर ही भारी ना पड़ जाये। सखियों के बीच बालिका मुनिया को खाद्य सामग्री प्रदान करने हेतु अपनी शेखी बघार स्वयं को समाज सेविका घोषित करती वो अलग. पिछले रविवार मुनिया नहीं आई

 लेकिन इस रविवार भी मुनिया गायब ,रीना का पारा सांतवें आसमान पर। मुनिया के घर का पता ठिकाना भी 

नहीं था ढूँढे तो कहाँ ढूँढे बस केवल मोहल्ले का नाम ज्ञात था उसी आधार पर निकल पड़ी अपनी टू व्हीलर लेकर उसे खोजने। एक जगह मंदिर के करीब बने  

चबूतरे और पास ही के पेड़ पर लगी तख्ती देख वह ठिठक गई जब उसे पढ़ा तो आँखें नम हो गई 

उस तख्ती पर लिखा था -  ' 'प्लीज अपनी इस मासूम बेटी की थोड़ी सी सहायता

 किजिये गर्मी का मौसम है मेरी परिक्षाएं चल रही है मै अभी काम पर जाने मे असमर्थ हूँ मुठ्ठी भर अन्न इस डिब्बे मे डाले और चुल्लू भर पानी इस कटोरे मे क्योंकि पर्यावरण व जीव दया हेतु मूक पक्षियों के भूख प्यास का ध्यान हमें ही रखना है मेरा खर्च माँ उठती है और इन पक्षियों का।..।

आप सभी को मेरा प्रणाम

मुनिया '

रीना ने गाड़ी मे बैठे बैठे ही डिब्बे पर नजर डाली वह अनाज से लबालब भरा हुआ था और कटोरा पानी से।


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