भक्ति का सैलाब
भक्ति का सैलाब
एक सुसज्जित रथ पर फूलों से सजे कांच के छोटे से शोकेस पर गाँव ही नहीं शहर का भी हर व्यक्ति श्रद्धा से नमन करते हुए अपने सामर्थ्य से अधिक रुपये पास रखी दान पेटी मे डाल रहे थे। ये नज़ारा देख एक विदेशी टूरिस्ट ने व्यंग्यात्मक लहज़े में अपने साथी से कहा-
'वास्तव मे ये इंडियंस आज भी बेकवर्ड और रूढ़िवादी ही है देखो किस तरह जन सैलाब उस निर्जीव वस्तु के पीछे खुशी खुशी पूरी आस्था से अपना सब कुछ लुटा रहे हैं ताकि उनकी मनोकामना पूरी हो सके ?'
इतना सुनते ही करीब चल रहे गाइड ने अपना मुँह खोला,
'साँरी सर ! वह निर्जीव हम सबके लिए सजीव है समस्त देशवासियों का सिर श्रद्धा से उस शोकेस के समक्ष इसलिए झुक रहा है क्योंकि उसके अंदर रखी लाल मिट्टी कोई अंधविश्वास नहीं बल्कि देश के सरहद से आई हमारे वीर सैनिकों के शहादत की निशानी है और एकत्रित हो रहा
यह धन शहीदों के परिजनों को दिया जायेगा।'
स्पष्टीकरण सुनते ही विदेशी टूरिस्ट की आँखें भर आई और उसके मुख से अनायास ही निकल पड़ा,
"वास्तव मे भारत महान है।"