निर्णय
निर्णय
माँ के देहांत के साथ ही दोनों भाइयों ने फैसला कर लिया कि पिता जी को वे बारी बारी 6-6 माह अपने अपने साथ रखेंगे . इतना सुनते ही छोटी बहू उमा के माथे पर बल पड़ गये फिर भी कुछ सोच समझ कर उसने कहा -
" ठीक है एक जनवरी से तीस जून तक पिताजी जी हमारे यहाँ रहेंगें "
प्रतिक्रिया स्वरूप मोहन जी ने ही अपने मन की इच्छा व्यक्त की -
" उमा बेटी ! मै चाहता हूँ कि शुरू के छ: माह बड़े के पास शिमला मे ही रहूँ वहां ठंडक रहती है। "
उमा ने जिद मे आकर कहा-
" नहीं , आपको पहले हमारे यहाँ ही रहना होगा मै बाद में नहीं रख सकती हूँ। "
उसकी इस जिद से परेशान नितिन उसका हाथ पकड़ कमरे मे जा प्रश्न किया -
" उमा ! ये बे सिर पैर की क्या जिद है तुम्हारी "
उमा ने कुटिल मुस्कान के साथ जवाब दिया-
" निरे बुद्धु हो तुम , अरे ! एक तो फरवरी का महिना छोटा होता है और गर्मियों मे आराम से बच्चों के साथ महीने बाहर घूमने जा सकते हैं घर की भी कोई चिंता नहीं रहेगी "आश्चर्य मिश्रित स्वर मे नितिन ने चहकते हुए जवाब दिया -
"ओ - हो! ऐसा तो मैंने सोचा ही नहीं "
और दोनों खुशी खुशी कमरे से बाहर आये और बाहर आते ही नितिन ने ऐलान कर दिया-
" मै जब तक बाहर पढ़ने नहीं गया पिता ने कभी अपनी आँखों से ओझल नहीं होने दिया मुझे खिलाये बगैर खाना नहीं खाया खुद ने चाहे फटे कपड़े व फटी चप्पल पहन कर दिन गुजारे हों पर मेरी शान मे कोई कमी नहीं आने दी अब पिता जी हमेशा के लिए मेरे साथ ही रहेंगे "
उमा के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी वहीं मोहन जी की आँखें अनायस ही खुशी से नम हो गईं.