Padma Agrawal

Inspirational

3.9  

Padma Agrawal

Inspirational

मुक्केबाज अमृता

मुक्केबाज अमृता

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रियो ओलम्पिक्स में भारत को पहला स्वर्णपदक मुक्केबाज अमृता को....

विक्ट्री स्टैण्ड पर तिरंगे के साथ खड़ी अमृता के चेहरे पर केमरे के फ्लैश चमक उठे थे ।उसको  यह सब स्वप्नवत् सा लग रहा था ।उसे अभी भी अपनी सफलता पर य़कीन नहीं हो रहा था । हवा में लहराते तिरंगे झंडे पर निगाह पड़ते ही वह गर्वित हो उठी थी ।उसके मन में भी देश प्रेम का जज्बा जाग उठा था , अनायास ही उसके मुंह से निकल पड़ा था,’’भारत माता की जय’’ उसके हाथ सलामी की मुद्रा में पहुंच गये थे ।

उसके कोच राघव सर ने खुशी से उत्तेजित होकर भावावेश में उसे अपनी गोद में उठा लिया था ।वह अनुभूति अकल्पनीय थी , उस क्षण वह निःशब्द हो चुकी थी ....राघव सर की अथक मेहनत के कारण ही वह सफल मुक्केबाज बन पाई थी । उसने भी उसी क्षण उनके चरणों को स्पर्श कर अपनी कृतज्ञता जाहिर की थी ।

अपने गले में पहने मेडेल को उसने श्रद्धापूर्वक सर के गले मे पहना कर कहा,’’सर, इसके असली हकदार तो आप ही हैं ।‘’

उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे , उन्होंने अपने हाथों को उसके सिर पर रख आशीर्वाद देते हुये कहा कि तुम्हारी लगन और अथक परिश्रम का यह फल है , और मेडेल उसके गले में पहना दिया था ।

उसने मेडेल को श्रद्धा से अपने माथे से लगा कर चूम लिया था ।

इस मेडेल के मिलते ही वह साधारण से विशिष्ट बन बैठी थी ।य़द्यपि कि वह जो कल थी, वही आज भी थी परंतु उसके प्रति लोगों का नजरिया बदल गया था ।सभी लोगों की दृष्टि में वह अपने प्रति सम्मान और आदर दिखाईपड़ रहा था ।

सर के फोन पर बधाई संदेशों की बाढ़ सी आई हुई थी ।मोबाइल की घंटी लगातार बज रही थी ।वह बहुत खुश थी , वह जल्दी से जल्दी अपनी दादी और पापा से मिलना चाह रही थी । उसकी फ्लाइट अगली रात की थी , वह जल्दी जल्दी अपना सामान बैग में भर रही थी । खुशी के अतिरेक में वह अपने मेडल को जब तब चूम लेती थी । वह अपने पापा और दादी की आंखों की खुशियों को शीघ्रातिशीघ्र देखना चाह रही थी । उसकी व्यग्रता देख सर ने अपने मोबाइल से पापा से बात करवा दी थी । उनकी आवाज सुनकर वह भावविह्वल हो उठी ,उसका गला रूंध गया था ।

उसकी फ्लाइट लैण्ड होने वाली थी। वह अपने देश की धरती पर अपने कदम रखने वाली थी , फ्लाइट में बैठे लोग भी उसे पहचान कर बधाई दे रहे थे और सम्मान की दृष्टि से देख रहे थे ।

एयर पोर्ट पर उसके स्वागत् के लिये भारी भीड़ जमा थी ।ढोल मंजीरा, बैण्ड बाजा, भांगड़ाकरते युवक युवती सब उसके नाम की जय जयकार कर रहे थे , साथ मे भारत माता की जय भी बोल रहे थे ।

ऎसा स्वागत् देख उसकी पलकें भीग उठीं थीं ।सुरक्षाकर्मियों ने उसे भीड़ से बचाने के लिये अपने घेरे में ले लिया था । उन लोगों ने सुरक्षा कीवजह से पीछे के मार्ग से निकालना चाहा था ,तो उसने भीड़ के अभिवादन को स्वीकार करके उन्हें धन्यवाद दिया था, फिर वह गाड़ी में बैठ गई थी ।

अपने देश में इतना भव्य स्वागत् होगा ,ये तो उसने स्वप्न में भी कभी नहीं सोचा था ।गाड़ी में पापा को बैठा देख वह उनसे लिपट गई और फिर दोनों की आंखों से खुशी के कारण अश्रुधारा प्रवाहित हो उठी, जिसे वह चाहकर भी नहीं रोक पा रही थी ।

“पापा, ये मेडेल मेरा नही वरन, आपका है । आज जो कुछ भी मैं हूं, वह आपकी वजह से हूं ।सब आपकी मेहनत का फल है ।‘’

उन्होंने प्यार से उसका माथा चूम लिया था ।‘’ मेरी बच्ची आज के सारे अखबारों की हेडलाइन में तुम्हारा ही नाम छाया हुआ है । केन्द्र सरकार 5 करोड़, राज्य सरकार 2 करोड़, एकेडमी, और खेल संगठन तुम्हारे लिये ईनाम की घोषणा कर रहे हैं । न्यूज चैनल तुम्हारा इंटरव्यू दिखाना चाह रहे हैं । तुम्हारे जीवन पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने के लिये भी मेरे पास फोन आया था ।‘’

मात्र 20 वर्ष की उम्र में तुमने यह उपलब्धि प्राप्त की है ।

उसे गांव पहुंचते पहुंचते रात के 10 बज चुके थे ।वहां भी मानों पूरा गांव उसके स्वागत् में फूल मालाओं के साथ पलकें बिछाये इंतजार कर रहा था । महिलायें उसे गोद में उठा कर नाच रहीं थी , उसे मालाओं से लाद दिया था ।वह थक कर निढाल हो रही थी ।

दादी के हाथ का बना खाना ,इतने दिनों के बाद खाकर उसे अमृत सा लगा था । वह दादी से लिपट कर बोली कि दादी आप दुनिया में सबसे अच्छा खाना  बनाती हो ।दादी कौशिल्या की आंखें खुशी से भीग उठीं थीं ।

स्वागत् सत्कार, भीड़भाड़ लंबी य़ात्रा के कारण वह बुरी तरह थक चुकी थी ।दादी के हाथ का खाना खाकर उसका मन तृप्त हो गया था । पहले की तरह वह अपने छोटे से कमरे के बिस्तर पर लेटी तो आंखें नींद से बोझिल हो उठी थीं तभी पापा उसके कमरे में आये और उसे जागता देख उसके माथे को चूमकर आशीर्वाद देकर कहा कि बेटी आज मुझे तुम पर गर्व है । वह बहुत भावुक हो रहे थे ।

आज वह निश्चिंत होकर गहरी नींद सोना चाह रही थी, परंतु निद्रा देवी तो सदा ही ऐसे अवसर पर रूठ कर दूर चली जाती हैं । उसका अपना कड़ुआ अतीत जब तब उसकी आंखों के सामने आकर खड़ा हो जाता है । वह चाह कर भी अपने मन के चित्रपटल से वह कटु यादें नहीं मिटा पाती ,वह उन्हीं स्मृतियों के साये में विचरण करने लगी थी।

वह पापा मम्मी के साथ रहती थी ...दो भाई और वह , तीनों भाईबहन मिल कर खूब खेलते और लड़ाई भी करते । वह अपने भाइयों से छोटी थी लेकिन जब वह मुक्का मारती तो बड़े होते हुये भी वह रो पड़ते थे ।पापा खेत पर मजदूरी करते थे, कभी मजदूरी मिलती तो कभी नहीं मिलती...जिस दिन नहीं मिलती घर में खाना नहीं बनता। हम सब पंजाब के होशियारपुर के गांव में रहते थे ।

पापा शराब पीते थे ,इसलिये हमेशा पैसे की तंगी बनी रहती । नशे में चूर पापा घर आते और फिर घर में मारपीट और गाली का शो हुआ करता । पड़ोसी भीड़ बनाकर खड़े हो जाते और तरह-तरह की बातें बनाते ।तीनों भाई- बहन मुंह फाड़ कर जोर जोर से रोया करते । मां से बच्चे भूख से तड़पते नहीं देखे गये तो पापा की इच्छा के खिलाफ उन्होंने एक सेठ जी के दुकान में नौकरी कर ली ।अब दोनों समय पेट भर खाना मिलने लगा था, और वहां से उनके बच्चों के उतरन कपड़े

भी लेकर आतीं ।पापा गुस्सैल और शक्की थे । मां के नौकरी करने के बाद दोनों के बीच झगड़े बढ गयेक्योंकि पापा मां से पैसा झपट लेना चाहते थे और उनके चरित्र पर शक करने लगे थे ।शक के कारण उनके अत्याचार मां पर बढते जा रहे थे । हम तीनों भाई बहन कमरे के कोने दुबक कर फूटफूट कर सुबकते रहते । पापा मां को वह इतना मारते कि कभी उनके माथे से खून निकलता तो कभी बाल नोच कर पीटते । पापा का नशा करना बढता जा रहा था , वह आधी रात को नशा करके आते और तमाशा करते ।

एक रात काफी देर तक पापा जब नहीं लौट कर आये तो मां ऩे परेशान होकर फोन किया तो मालूम हुआ कि पापा ने नशे में किसी आदमी को चाकू माऱ दिया है , इसलिये पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया है । मां कमरे में बैठ कर रो रहीं थीं । घर में पूरी तरह से सन्नाटा छाया हुआ था । देर रात दादी हम सबके लिये खाना लेकर आई थीं । उन्होंने बताया कि चूंकि गोपी नशे में था ,इसलिये उसको निश्चित रूप से सजा होकर रहेगी । इसी बात पर मां और दादी के बीच बहुत देर तक झगड़ा होता रहा और फिर दादी गुस्से में रात में ही अपने घर लौट गईं।

पापा ने गाय पाल रखी थी । हम लोगों को दूध पीने को मिल जाता था , परंतु पापा के जेल चले जाने के बाद मां के लिये बहुत सारे काम बढ गये थे- गाय को चारा देना, दूध दुहना, गोबर के कंडे बनाना, गंदगी साफ करना , एक तरफ पैसे की तंगी दूसरे तरफ काम का बोझ ,मां ने परेशान होकर गाय को बेच दिया था ।गाय के जाने के बाद हम सब देर तक रोते रहे थे ।

राज जो 10 साल का था, उसे एक गैरेज में काम सीखने के लिये लगा दिया था , वहां उसे कुछ दिनों के बाद 50 रुपये मिलने लगे । छोटा सुजान ,जो 8 साल का था , उसे किसी के घर में काम करने और वहीं रहने के लिये भेज दिया था । 7 साल की वह पढना चाहती थी, परंतु हालात ऐसे थे कि पेट भरने का इंतजाम हो जाये, इतना ही काफी था ।वह कहीं काम करने के लायक नहीं थी , इसलिये मां उसे घर के अंदर बंद करके जाया करतीं थीं । वह अकेले घर के अंदर गुस्से में तकिया पर मुक्के चलाया करती ।

दिन बीत रहे थे, मां , भाई पेट भर रोटी के लिये जद्दोजहद में लगे हुये थे ...कभी पेट भर तो कभी भूखे सोना पड़ता । उसे पापा की बहुत य़ाद आती थी क्योंकि वह उसे बहुत प्यार किया करते थे ।

एक दिन मां ने बताया कि तुम्हारे पापा को 5 साल की सजा हुई है ।

जब कभी वह बाहर निकलती पड़ोसी ,उन सबका मजाक बनाया करते । उसे चिढाते कि देखो देखो , इसका पापा जेल में बंद है । वह गुस्से में जोर का मुक्का मार देती फिर लड़ाई बढ़ जाती ।मां ने इस यंत्रणा से बचने के लिये उसके घर से बाहर निकलने पर प्रतिबंथ लगा दिया था ।

लगभग छः महीने के बाद मां के साथ एक दिन सुखवीर अंकल आये थे । अब वह रोज आने लगे , वह अपने साथ मिठाई, समोसे, चॉकलेट जैसी चीजें लाते लेकिन उसे वह बिल्कुल भी नहीं अच्छे लगते । वह बहुत काले मोटे थे, उनकी लाल आंखें बड़ी डरावनी लगतीं थी ।वह उसके लिये चॉकलेट जरूर लेकर आते और अपनी गोद में बिठा कर उसके गालों पर चुम्मी की बौछार करते , साथ ही उसको मसल कर रख देते ।

मां उनके लिये पनीर की सब्जी पूड़ी बनातीं , खूब हंसहंस कर उनके साथ देर रात तक बातें करतीं रहतीं ।वह गुस्से में धधकती रहती । राज भइया भी सोने का बहाना करके उन लोगों की हरकतों पर अपनी आंख और कान लगाये रहता ...उसे अंकल से इतना डर लगता कि वह कभी बाथरुम के अंदर देर तक बैठी रहती तो कभी बिस्तर के अंदर ...लेकिन वह तो पूरे घर में घूमने के लिये आजाद थे । वह उसे अपनी बाहों में जकड़ कर कहते कि मधु मुझे तुम्हारी अमृता बहुत प्यारी लगती है । वह कसमसा कर रह जाती लेकिन एक दिन उसने उनकी नाक पर जोर का मुक्का जड़ दिया था ,वह बिलबिला उठे थे । लेकिन मां ने आकर उसकी जमकर पिटाई की थी । वह हर पल अपने पापा को याद करती... वह 9 साल की हो गई थी , उसे अंकल की निगाहें और उनका स्पर्श गंदा लगता था । उनके पास एक चाभी रहती वह जब तब आ जाते थे । उसके साथ अश्लील हरकत करते और धमका कर कहते कि खबरदार यदि किसी से बताया तो तुम्हारी मां और भाई को मार डालूंगा । उन्होंने अपने पास से बड़ा सा चाकू निकाल कर भी दिखाया था । अब तो वह सचमुच में डर गई थी । वह डरी सहमी हुई अपने शरीर के साथ उनको मनमानी करने देती , मजबूरन उनका हुक्म मानकर गंदी हरकतें करती । 5-6 दिनों तक वह बिलख बिलख कर बर्दाश्त करती रही, उनके हौसले बढते गये और एक दिन उन्होंने उसके साथ जबर्दस्ती बलात्कार करके उसके शरीर को लहुलुहान करके रख दिया , उसने बहुत मुक्के चलाये थे लेकिन बलशाली अंकल के सामने उसका चीखना चिल्लाना कुछ काम नहीं नहीं आया और वह उसे ऱोज की तरह धमका कर अपने पैंट के बटन बंद करते हुये घर से चले गये थे । वह रोते रोते बेहोश सी हो रही थी । वह दर्द से बुरी तरह से बिलख बिलख कर रो रही थी ।

जब मां शाम को आईं तो वह उनसे लिपट कर फूट फूट कर रो पड़ी थी ,’’मां , अंकल बहुत गंदे हैं, उन्होंने मेरे साथ जबर्दस्ती बलात्कार किया है ।‘’

मां पूरी तरह से अंकल के पैसे और प्यार में डूबी हुई थीं । उन्होंने उसे धक्का देकर कहा ,’’पागल हो गई हो....ऐसा कहते तुम्हें शरम नहीं आ रही ... कहां वह और कहां तुम छोटी सी बच्ची....उसे बुरी तरह से झिड़क दिया था ।

“मैं और सुखवीर शादी करने वाले हैं ।‘’

मां की बातें सुनकर उसका दिल टूट गया था । उसे दर्द भी बहुत हो रहा था । उसे अपने चारों तरफ घना अंधकार दिखाई पड़ रहा था । पापा को याद कर सुबक रही थी , तभी उसे दादी की याद आई थी और वह हिम्मत करके रात के अंधेरे में चुपचाप घर से निकल पड़ी थी, उस दिन अंकल नहीं आये थे तो मां ने खाना भी नहीं बनाया था । उसने झांक कर मां को देखा कि वह आंख बंद कर लेटी हुई थीं ।

वह एक रिक्शे वाले की सहायता से रात के अंधेरे में दादी के पास पहुंची तो दादी समझ गईं कि मां से परेशान होकर ही यह आई है ....उन्होंने प्यार से गले लगा कर उसके आंसू पोछे थे । उन्होंने प्यार से अपने हाथ से खाना खिलाया और अपने से लिपटाकर सोईं तो उसने सिसक सिसक कर अपनी सब आपबीती बता डाली थी । दादी ने उसके जख्मों पर मरहम लगाया था । बरसों बाद उसे इतना प्यार और अपनत्व मिला था ।

सुबह मां उसे ढूढती हुई आई फिर दादी के साथ उनकी जोर जोर कहा सुनी हुई , वह पैर पटकते हुये चली गईं थी । मां को पूरी आजादी मिल गई थी क्योंकि राज भइया भी घर छोड़ कर कहीं चला गया था ।जब वह पूरी तरह से ठीक हो गई तो दादी ने स्कूल में उसका नाम लिखवा दिया परंतु उसके पिता के जेल में होने की खबर वहां पहले से ही सबकी जुबान पर थी । इसलिये यहां पर भी उसे अपमान झेलना पड़ रहा था । एक तो वह दूसरे बच्चों की तुलना में उनसे उम्र में काफी बड़ी थी , इसलिये भी बच्चे उसे परेशान करते,चिढाते, कई बार पीछे से धौल भी जमा देते ।वह सब मिल कर उसे तंग करते कक्षा के बच्चों के साथ उसकी मारपीट हो जाती । वह स्कूल जाने से कतराने लगी थी लेकिन दादी का कहना मान कर स्कूल जाती । विनय उसको सबसे ज्यादा परेशान करता था, वह उसकी शक्ल से चिढने लगी थी , वह सुबह पहुंची ही थी कि विनय ने कभी उसके पीठ पर घूंसा मारता तो कभी सिर पर मारता .... वह गुस्से के मारे कांप रही थी , अपने को बहुत रोकने की कोशिश करती रही लेकिन फिर वह अपने को रोक हीं पाई थी और विनय को पकड़ कर इतने मुक्के मारे कि वह हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगा ,तभी उसने उसे छोड़ा था ।

 क्लास के बच्चे अब उससे डरने लगे थे ।विनय के पिता स्कूल के ट्रस्टी थे , उन्होंने अपनी पहुंच दिखाते हुये उसके घर पर शिकायत भेजकर दादी को बुलवाया । उन्हें डांट कर कहा कि यदि अमृता अब किसी को भी पीटेगी तो उसका स्कूल से नाम काट दिया जायेगा ।

दादी घर आकर रोने लगीं थीं । यदि स्कूल से नाम काट दिया गया तो पढाई तो बंद होगी ही साथ में उनकी समाज में बहुत बदनामी होगी , वैसे ही गोपी के जेल में होने के कारण वह किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं है ।

दादी ने प्यार से उसके सिर हाथ फेरते हुये उसे समझाया था कि मेरी प्यारी बच्ची अपने गुस्से पर काबू करना सीखो । तुम्हें भगवान् ने विशेष शक्ति , बल और खास मकसद से इस दुनिया में भेजा है । तुममें इतनी ताकत है कि अपने मुक्के से बड़े बड़े लड़कों को धूल चटा देती हो । यह तुम्हारे लिये ईश्वर का दिया हुआ वरदान है, इसको इस तरह से व्यर्थ में बरबाद मत करो ।

अपने इस बल ,आक्रोश,क्रोध, शक्ति , ताकत को दूसरों पर निकालने की जगह किसी सकारात्मक एवं रचनात्मक कार्य पर निकालना सीखो । तुम अपना आक्रोश , क्रोध को शब्दों के माध्यम से डायरी में लिखो । जब तुम अपनी डायरी में अपने आक्रोश या क्रोध को शब्दों के माध्यम से लिखोगी तो तुम्हारा आक्रोश एवं क्रोध का आवेग कम हो जायेगा ।

दूसरी बात कि तुम्हें जिस व्यक्ति पर क्रोध आ रहा है, कॉपी में उसकी आकृति बना लो फिर उसे पेन या किसी भी तरह से उसे विकृत करो, इससे भी तुम्हारे क्रोध को निकलने का अवसर मिलेगा । इन तरीकों से तुम्हें मानसिक शांति एवं संतोष मिलेगा ।

दादी ने फटे पुराने कपड़ो को इकट्ठा करके एक मजबूत पैंट की मसनद टाइप बनाकर उसके अंदर भर दिया और फिर उसे छत से टांग कर लटका दिया था । उन्होंने उससे कहा था कि जब भी तुम्हें किसी पर गुस्सा आये तो उसे मारने के बजाय इस पर मार कर अपने गुस्से को बाहर निकाल दिया करो । शायद यही उसकी पहली मुक्केबाजी की प्रैक्टिस क्लास थी ।

दादी के प्यार और देखभाल के कारण उसका जीवन बदल गया था । उसने किताबों से दोस्ती करना सीख लिया था । वह लाइब्रेरी से महान् पुरुषों की जीवनी लाकर पढती , जिससे उसे मालूम हुआ था कि कलाम साहब अपने बचपन में अखबार बांटा करते थे । उसको समझ में आ गया था कि जीवन का नाम ही संघर्ष है और धैर्य ही सफलता की कुंजी है ।

अब वह रोज नियम से अपने मन की भावनाओँ को डायरी में शब्दों के माध्यम से व्यक्त करती, उससे उसके मन को शांति मिलती ।

पापा अपने अच्छे व्यवहार के कारण जेल से जल्दी छूट कर आ गये थे । वह एक साल तक सुधार गृह में रह कर आये थे । उन्होंने शराब पीनी छोड़ दी थी । अब वह बहुत शांत और बदले बदले से दिख रहे थे । वह उनसे लिपट कर फूट फूट कर रो पड़ी थी । उन्होंने उसे प्यार से गले लगाया था ।

“मेरी लाडो, मुझे माफ कर दो- मेरी वजह से तुम्हें बहुत कष्ट और यंत्रणा झेलनी पड़ी ।वह थे कि उनकी तरह ही उनकी बेटी के मन में गुस्सा कूट कूट कर भरा हुआ है ।

उन्होंने बचपन में उसे अपने भाइयों पर उसे मुक्का चलाते हुये देखा था । वह बड़े भाइयों को मुक्का मार मार कर उन्हें बेहाल कर देती थी । इसलिये वह अच्छी तरह जानते थे कि उसके मुक्के में बहुत ताकत है ।

वह स्वयं पेशेवर मुक्केबाज बनना चाहते थे । उन्होंने बचपन से ही यह चाहा था लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ऐसी थी कि उनका सपना , सपना ही बना रह गया था । उनकी बेटी अमृता पेशेवर मुक्केबाज बन सकती थी , यह उन्हें अच्छी तरह समझ में आ रहा था , परंतु बेटी का चेहरा विकृत हो सकता था, इस बात को सोच कर वह मन ही मन घबरा कर पीछे हट जाते थे । एक दिन वह स्कूल से बहुत गुस्से में लौट कर आई और आते ही मसनद पर मुक्के जोर जोर मारने लगी तो उसके मुक्के की स्टाइल देख वह अपने को नहीं रोक पाये थे। उसी समय उन्होंने निश्चय कर कवह उसे मुक्केबाज बना कर रहेंगें ।

अगली सुबह ही वह उसे अपनी साइकिल के डंडे पर बिठा कर बॉक्सिंग क्लब लेकर गये , क्लब उसके घर से 20 किलोमीटर दूर था । वहां बॉक्सरों को रिंग में प्रैक्टिस करते देख वह भी उत्तेजित हो उठी थी । उसकी मुट्ठी स्वतः ही भिंच गई थी । वह वहां आकर बहुत रोमांचित अनुभव कर रही थी । वहां कोच ने उसका टेस्ट लिया तो उसके ऐक्शन और डेडीकेशन देख वह बोले कि आपकी बेटी में कुशल मुक्के बाज बनने के गुण हैं। कोच की बात सुनकर पापा खुश तो हुये थे परंतु फिर तुरंत घबरा कर बोले ,’’नहीं ..नहीं...इस खेल में इसके चेहरे पर चोट लग सकती है । चेहरा खराब हो सकता है ....यह खेल लड़कियों के लिये नहीं है , वरन् लड़कों के लिये है । मैं अपनी प्यारी बच्ची को घायल होते नहीं देख सकता । इसके दिमाग पर चोट लग सकती है । नहीं.....यह मुक्केबाजी इसके भविष्य के लिये सही नहीं है । वहीं पर वह खड़ी होकर महान् बॉक्सर

मोहम्मद अली का आदमकद चित्र देख कर मन ही मन वहां पर अपने चित्र की कल्पना कर रही थी । उसने उसी क्षण दृढ़ निश्चय कर लिया कि उसे पेशेवर मुक्केबाज ही बनना है । परंतु मुश्किल यह थी कि पापा किसी तरह से राजी नहीं हो रहे थे । वह दादी के सामने अपनी फरियाद लेकर पहुंची थी । वह उसकी लगन और प्रतिभा के साथ साथ उसके मुक्के की ताकत को पहचानती थीं । इसलिये पापा को मजबूर होकर उसका एडमिशन बॉक्सिंग एकेडमी में करवाना पड़ा । अब तो उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया कि बेटी को उच्च श्रेणी का बॉक्सर बनाना ही है ।उस दिन से उसके खान पान और फिटनेस पर पूरा ध्यान दिया जाने लगा था । परंतु कठिनाइयां तो उसके जीवन के साथ ही जुड़ी हुई थीं । साइकिल के डंडे पर बैठ कर 20 किलोमीटर रोज आना जाना बहुत बड़ी समस्या थी । दादी का ऐक्सीडेंट हो गया , उनकी पैर में फ्रैक्चर हो गया था , वह बेड पर थीं, इसलिये घर में भी कोई रहने को चाहिये था । दुःख और परेशानी के कारण पापा के कदम फिर से डगमगाये थे । लेकिन दादी ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी एक सहेली , जो एकेडमी के पास ही रहतीं थी , उनके घर में ही रहने को भेज दिया । कुछ दिनों तो ठीक रहा फिर उन्हें उसका रहना अच्छा नहीं लगा तो वह अपनी एकेडमी की फ्रेंड के पास रहने लगी । यहां वहां रहने के कारण उसकी ट्रेनिंग और खाने पीने की भी समस्या खड़ी हो जाती थी । परंतु अपनी लगन और निष्ठा से वह अपने अभ्यास में दिन रात लगी रही थी ।

बॉक्सिंग एकेडमी ने जब उसे पहले मुकाबले के लिये रिंग में उतारा तो पहले तो वह बहुत घबराई हुई थी क्योंकि उसी दिन उसे खबर मिली थी कि उसकी मां का हार्टफेल तीन दिन पहले हो चुका है , मां को याद कर उसकी आंखों में आंसू आ गये थे । वह थोड़ी नर्वस भी हो रही थी परंतु रिंग मे अपने प्रतिद्वंदी को देखते ही सब कुछ भूल कर पंच मारने में जुट गई थी । उस दिन उसे जीतने में ज्यादा देर नहीं लगी थी ।वह मुकाबला जीत गई थी । उसे ईनाम में नकद रुपया मिला , यह उसके जीवन की पहली कमाई थी । अब वह छोटी मोटी प्रतियोगितायें जीतने लगी थी । उसका नाम लोगों की जुबान पर चढ़ने लगा था । उसे आमदनी होने लगी थी।वह अपनी कमाई को पापा या दादी को दे देती । वह जानती थी कि दादी और पापा ने उसकी डूबती नैय्या को मंझधार से निकाल कर किनारे लगाया था । उसके जीवन को एक लक्ष्य , उद्देश्य, दिशा मिली थी ।

बॉक्सिंग रिंग में उतर कर मुक्केबाजी करने में उसे बहुत मजा आता है । उसके अंदर एक विशेष स्फूर्ति और ताकत आ जाती , उसी के बलबूते वह अपने प्रतिद्वंदी को धूल चटा कर ही दम लिया करती । उसका नाम , उसकी ख्याति एकेडमी से शहर ,जिले से होती हुई राज्य से बाहर भी पहुंचने लगी थी । उसका नाम अखबारों की सुर्खियां में आने लगा था । वह देश की नामी मुक्केबाज के रूप में जानी जाने लगी थी ।

समय के साथ साथ उसके मन की कड़ुवाहट कम होने लगी थी । अब उसके कोच उसेओलम्पिक्स की तैयारी करवाने लगे थे । वह ओलम्पिक्स के नाम से ही रोमांचित हो उठी थी । उसकी लगन , परिश्रम और , रात दिन की जो मेहनत ,जुनून बन गया था । और उसका परिणाम यह हुआ कि उसने ओलम्पिक के लिये क्वालीफाइ कर लिया था , अब तो राघव सर ने अपनी जी जान लगा दिया था । कई बार वह घबरा कर रो पड़ती थी । लेकिन सर ने उस पर विश्वास बनाये रखा था और उसको प्रैक्टिस करवाते रहे थे । वह हर समय उससे अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिये उत्साहित करते । उन्होंने उसके मन में ओलम्पिक्स मेडल जीतने के लिये जुनून पैदा कर दिया था । परिणाम सामने है...उसे रियो ओलम्पिक्स में गोल्ड मेडॆल मिल गया था ।

उसके जीवन को नई राह मिल गई थी । उसके क्रोध, आक्रोश को रचनात्मक दिशा देने के लिये उसकी दादी फिर पापा को है , जिनकी वह आजीवन ऋणी रहेगी .... उनकी वजह से धन संपत्ति, यश, इज्जत , मान सम्मान क्या नहीं मिला? वह अपने अतीत में विचरण करती रही ओर कब सुबह हो गई , उसे पता ही नहीं लगा था .... चिड़ियों के चहचहाने के मधुर संगीत को तो वह भूल ही चुकी थी । वह दादी के प्यार भरे स्पर्श से अभिभूत हो उठी थी । वह उसका माथा चूमकर बोलीं , ‘’मेरी लाडो मैंने तो तुम्हारे अंदर की ताकत को पहचाना था , तुम्हारी मेहनत और तुम्हारे जुनून ने तुम्हें यहां तक पहुंचाया । मैं तो बातों में भूल ही गई जल्दी तैयार हो जाओ, इंटरव्यू के लिये टी.वी. वाले आ रहे होंगें ‘’.............................................,,,,,,,,।


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


 


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