मुझको है तुझसे राब्ता

मुझको है तुझसे राब्ता

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रजनी का पति सूरज किसी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में बड़े पद पर था। सूरज ने एकाएक बताया कि उसका प्रमोशन हुआ है और वह अपनी ही कंपनी के दूसरी ब्रांच हैदराबाद में जा रहा है।

रजनी 15 दिन बाद की फ्लाइट है और हम हैदराबाद शिफ्ट हो रहे हैं, सूरज ने बहुत खुशी के साथ रजनी को बाँँहों में भरते ही कहा।

"कितना अच्छा होगा नया शहर, नए लोग, नयी कंपनी का माहौल।"

रजनी बहुत खुशमिजाज थी, सबका मन लगाये रखती थी।

रजनी का मन उदासी से भरा था, उसे लग रहा था- आज मैं, दिल्ली और सब, मेरे मम्मी-पापा, सब परिवार ससुराल, रिश्तेदार, सब यहाँ है। हैदराबाद में हमारा कौन है ? वहाँ कैसे मन लगेगा ? नहीं सूरज इतनी दूर ....!

सूरज बोला- तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि मेरा प्रमोशन हुआ है।

रजनी ने कहा, "मैं खुश हूँ, सूरज कौन पत्नी नहीं चाहेगी पति की तरक्की पर आंध्र प्रदेश, हैदराबाद उधर साइड में हम कभी नहीं गए। कोई नहीं आएगा वहाँँ। जल्दी से हम नहीं आएंगे यहाँ। कोई हमारे से मिलने नहीं आएगा। कैसे रहेंगे ? पता नहीं कैसे लोग होंगे ?

सारी दुनिया रहती है रजनी, हर जगह मिनी इंडिया बन जाता है, सब को अपना बनाने में आपका व्यवहार ही काम आता है, जहाँ चार पैसे मिलेंगे वहां तो जाना ही होगा।

यह कहकर सूरज ऑफिस के लिए निकल गया।

रजनी अपने सास-ससुर के साथ दिल्ली में रहती थी। अभी शादी को 1 साल ही हुआ था। सूरज की जाने के बाद रजनी ने अपनी सास को यह बात बताई। वे चिन्ता में बैठे थे। उन्हें सूरज ने पहले ही बता दिया था।

हाँ बेटा हमें अभी भी सूरज ने बताया। कैसे मन लगेगा तुम्हारा वहाँ ? हम कैसे यहाँ पर रहेंगे ?

नहीं मम्मी, आप भी हम लोगों के साथ चलना।

नहीं..बेटा वहाँ नई जगह, नया माहौल, पहले तुम लोग जाओ। हम बाद में, हम आते-जाते रहेंगे।

थोड़ी उदासी के साथ सूरज के मम्मी, पापा बात कह गए पर अंदर अंदर उनको बहुत दुख हो रहा था। अकेले कभी रहे नहीं फिर सूरज के बिना।

15 दिन के बाद सूरज हैदराबाद शिफ्ट हो गया। रजनी और सूरज फ्लाइट से आ गए थे। सामान कुछ दिन के बाद आना था। सूरज ने पहले ही जाकर एक सोसाइटी में अपार्टमेंट में एक घर देख लिया था। रजनी को बहुत अटपटा सा लग रहा था,अपार्टमेंट में जाते ही। घर बहुत सुंदर था। वहखुश हो गई। खुला हवादार घर टू बीएचके का घर।

रजनी ने दरवाजा खोल कर देखा, सामने दो घर थे दोनों के दरवाजे बंद थे। रजनी अपने सामान को सेट करने में लग गई। 5 दिन तो पता ही नहीं चला। सूरज ने उसे खाना नहीं बनाने दिया।

जब तक किचन सेट नहीं होती हम लोग बाहर खा लेंगे और कुछ घूम भी लेंगे। इस बहाने अभी मेरी 5 दिन की छुट्टी है। घर सेट करने के लिए मैंने एक हफ्ते की छुट्टी ली है।

रजनी खुश थी क्योंकि सूरज के साथ उसको टाइम बिताना अच्छा लग रहा था। शादी के काफी समय बाद वो अकेले थे। दोनों सुबह ही निकलते और नाश्ता बाहर कर के कुछ घूमते वापस शाम को आते। सामान भी आ गया था। रजनी और सूरज अपना घर सेट करने में लगे थे।

सोमवार से सूरज का ऑफिस खुल गया था। जाना था उसको।

घर के सामने ही एक बेंगलुरु से फैमिली थी और उनके बराबर में ही कोई गुजराती फैमिली थी। थोड़ी-थोड़ी बातें हो जाती थी क्योंकि सामने गुजराती फैमिली में सास-ससुर और उनके बेटे-बहू रहते थे।

बहू का नाम सौम्या था। थोड़ी सी स्माइल हो जाती थी और हाय हेलो जाती थी। पत्नी अपने काम में बिजी रहती तो इतनी बातें नहीं हो पाती थी। गुजराती फैमिली मे सब को हिंदी आती थी। बराबर में बेंगलुरु के लोग कुछ टूटी-फूटी हिंदी बोल लेते थे पर इंग्लिश ही ज्यादा बोलते थे। रजनी अपने ससुर, मम्मी, पापा को फ्री होने पर फोन कर लेती थी और इधर उधर हैदराबाद सब उनकी बातें कहाँ घूमने गए ? क्या किया ? सुना लेती थी। सुबह-शाम उसका काम में निकल जाता था, थोडी देर सो जाती थी उसका टाइम कट जाता था।

एक दिन सूरज ने बताया 1 महीने के लिए यू.एस.ए. जा रहा है ऑफिस के काम से। रजनी को दिल्ली भेज देगा ,थोड़े दिन के लिए।

रजनी खुश थी चलो इस बहाने मायके और ससुराल में 15-15 दिन रह लेगी। रजनी का 1 महीना बहुत खुशी से बीत गया। सूरज के फोन आ जाते थे और वह दिन भर की सब सुना देती और उसका मन खुश हो जाता। 15 दिन ससुराल, 15 दिन मायके रहकर वह वापस हैदराबाद आ गई। सूरज भी लौट आया था। अब यह सिलसिला लगातार हो गया था क्योंकि सूरज की जिम्मेदारियां बढ़ गई थी और उसे महीने 2 महीने में बाहर जाना पड़ रहा था।

रजनी भी कब तक बार-बार अपने मायके से ससुराल जाती इसलिए उसने सास-ससुर को हैदराबाद बुला लिया। बस सास ससुर का ध्यान रखने में और सुबह-शाम काम में उसका टाइम निकल जाता था। सूरज अब ज्यादातर बाहर ही रहता। रजनी का मन उचटने लगा था। सासू-माँ हमेशा समझाती कि अब एक नन्हा मेहमान घर में आ जाना चाहिये। उसका ध्यान रखने में ही तुम्हारा समय बीत जाएगा। जहाँ रजनी अपनी सासू-माँ के साथ बाजार चली जाया करती थी पर उसका मन बड़ा उदास सूरज के दूर रहने से हमेशा रहता था।

धीरे धीरे एक उदासी में दिन निकलने लगा वह अपना काम में लगी रहती। न तैयार रहती और बस उसका सासू माँ और ससुर जी को खाना बनाना खिलाना।

उसी में उसका समय निकल जाता था। आज सामने सौम्या की बेटी का जन्मदिन था। सास-ससुर और रजनी तीनों को बुलाया था। ससुर की तबीयत ठीक ना होने की वजह से उन्होंने रजनी को ही कह दिया कि तुम थोड़ी देर हो आना। रजनी ने अपने बालों पर सही किये और जो साधारण सा सूट पहन कर सामने एक गिफ्ट देने के लिए वह चली गई। वहाँ सौम्या की काफी सहेलियाँ आई हुई थी।

सब आपस में बातें कर रही थी- कैसी है, पति तो अच्छी पोस्ट पर लगते हैं, पर ऐसा लगता है जैसे उठ कर ही चली आई हो। पार्टी में रजनी गिफ्ट देकर वापस लौट गई।

रजनी को एहसास भी नहीं था कि उसके ना तैयार होना मैं उसके लिए कितनी बातें बना देंगे। रजनी के मन में कोई उत्साह नहीं था। किसके लिये तैयार हो ? बच्चे की चाहत बढ़ती जा रही थी। उदासी से उसका मन नहीं करता था तैयार होने का।

अचानक उसी समय सूरज घर पहुँच गया था। सूरज का रजनी को देखकर मूड ऑफ हो गया। क्या हाल बना रखा है ? कैसे-कैसे पार्टी में गई, तुम तो ऐसे नहीं जाती थी। कपड़े ही बदल लेती, तैयार हो जाती, मेरी बेइज्जती करा दी। सूरज भी ना जाने क्या-क्या बोलने लगा था। रजनी भी चुपचाप किचन में आकर काम में लग गई। थोड़ी देर बाद सूरज शांत होने पर सब गुस्सा भूल कर के पास पहुँच गया।

अच्छा चलो छोड़ो अब कुछ और बातें करते हैं। चलो घूमने जाते हैं। सासू-माँ और सूरज की बच्चे की चाहत पूरी नहीं हो रही थी इसलिये डाक्टर को भी दिखाने लगे।

सभी टेस्ट सामान्य थे पर एक उदासी और डर की क्या मैं माँँ नहीं बन सकती ? रजनी उदास होने लगी और वो किसी से ज्यादा बातें नहीं करती थी। बस अपने और बच्चे के बारे में सोचती रहती। सास और ससुर उसकी चिंता मैं दुखी रहते। सासू माँ ने सामने सौम्या से इस बारे में बात की। रजनी को कैसे खुश रखें। एक दिन सौम्या, रजनी के पास आई।

रजनी चलो, कहीं घूम आते हैं। रजनी जाने को तैयार नहीं हुई।, सौम्या ने समझाते हुए कहा-

अपना ध्यान रखा करो। पार्लर हो आओ आप। अपने को खुश रखो कि जल्दी ही भगवान सुनेंगे। ऐसी बातें करके सौम्या भेजने की हिम्मत बढ़ाती रहती।

रजनी को इस बात का ज्यादा असर नहीं पड़ता कि कोई क्या समझा रहा है। 1 दिन सौम्या जबरदस्ती उसको अपने एन.जी.ओ ले जाने के लिए आई।

सासू माँ ने भी सौम्या को जाने को बोला। बहुत कहने के बाद रजनी तैयार हो गई। रास्ते में सौम्या, रजनी से जो बात बोलती रजनी बस उसका जवाब देती, सौम्या बहुत उदास थी। उसके समझ नहीं आ रहा था की रजनी को कैसे खुश रखा जाए ?

सौम्या, रजनी को कुछ बोलो।

रजनी ने कहा- मेरा कुछ मन नहीं करता और रास्ते में गाड़ी साइड में खड़ी और उसको समझाना शुरू किया। रजनी तुम्हारा दुख सबसे ज्यादा दुख नहीं है। तुम अपने आप को बहुत दुखी समझती हो। दुनिया में तुमसे भी ज्यादा दुखी लोग हैं। तुम्हारे साथ तुम्हारा पति, सास, ससुर जो कि माता पिता के समान है. तुम्हें कितना प्यार करते हैं और तुम अपने दुखी कारण पूरे घर को दुखी करके रखा है। चलो बैठो कार में।

उसका हाथ पकड़ कर कार की तरफ ले आई।

एनजीओ का नाम "मुस्कुराहट" था जैसे ही अंदर कदम रखा,

यह देखो रजनी, यह बुजुर्ग लोग हैं। इनमें से किसी के बच्चे नहीं हैं, कोई ध्यान रखने वाला नहीं है। किसी के बच्चे हैं पर वह माँ-बाप को बोझ समझ कर रखना नहीं चाहते। यह सामने देख रही हो इनका कुछ दिन पहले एक्सीडेंट में दोनों हाथ गँवा चुके हैं पर हिम्मत नहीं हारे हैं। पैरों से ही उन्होंने अपना काम करना शुरू किया है।

अब आगे चलो- दूसरे सेक्शन में छोटे-छोटे बच्चे थे।

यह वह बच्चे हैं जिनके माँ बाप नहीं। जो हमेशा एक रास्ते में निगाह लगाए रखते हैं कि काश कोई आएगा और माँ बाप बन कर उनको ले जाएगा।

सौम्या, रजनी को एनजीओ की सब बातों को सुना रही थी। तुम्हें अपना दुख बहुत लगता है ना !

रजनी का ध्यान अचानक एक बच्चे की तरफ गया। घुंघराले बालों वाला गोरा सा 3 साल का बच्चा लगभग हुआ होगा। वह बच्चा रजनी को बार-बार देख रहा था और बार-बार नीचे नजर मिलते ही बार बार नीची नज़र कर लेता था।

रजनी सौम्या की बातों को नजरअंदाज करते हुए उस बच्चे के पास गई-

क्या नाम है तुम्हारा ? कान्हा... उसमें बड़ी मासूमियत से जवाब दिया।

तुम टॉफी लोगे अपने पर्स को टटोलने लगी। शायद कोई टाफी हो। दुकानदार चेंज के बदले दे देते थे। शायद कोई बची रखी हो...कान्हा ने मासुमियत से कहा- नहीं-नहीं मेरे दांत टूट जाएंगे.. टॉफी नहीं खाते। आप भी मत खाना आपके भी दाँत टूट जाएंगे।

इस बात पर रजनी खूब हँसने लगी। उसको कान्हा की बातें बहुत प्यारी लग रही थी। सौम्या अपने कामों में व्यस्त हो गई और रजनी कान्हा से बातें करती रही। वह आज बहुत खुशी महसूस कर रही थी। उसको कान्हा को छोड़ने का मन नहीं कर रहा और अगले दिन का वादा करके कान्हा से मिलकर घर आ गई। अगले दिन उसकी कान्हा वाली बातें रजनी को याद आ रही थी।

वह सासु माँ और ससुर को कान्हा की बातें सुनाती रही ।

सूरज का फोन आने पर उसने कान्हा की बातें ही बताती...कान्हा ऐसा है कान्हा वैसा है, सब खुश थे चलो रजनी खुश है। अगले दिन सौम्या को उसने पहले ही कह दिया कि मैं तुम्हारे साथ चलूंगी और वह सौम्या के तैयार होने से पहले जल्दी-जल्दी अपने घर का काम खत्म करके ससुर जी और सासू माँ को खाना खिला कर, सौम्या के पास आ गई। उस बच्चे के लिए उसने कपड़े लिए और वहाँ जाकर कान्हा को कपड़े पहनाये और कान्हा खुश हो गया।

ऐसे ही रोज़ रजनी का मन कान्हा के साथ लगने लगा और कान्हा भी रजनी को अपना मान कर रोज इंतजार करता सूरज और घरवाले खुश। चलो रजनी खुश है और घर का दायित्व भी अच्छे से पूरा कर रही थी। एक दिन सूरज ने आकर कि वो अब वापस दिल्ली शिफ्ट होने वाले हैं यह सुनकर रजनी के पैरों तले जमीन खिसक गई। अब उसे कान्हा की आदत हो गयी थी और कान्हा को उसकी। एक साल हो गया था दोनों को।

नहीं... नहीं सूरज ..।

मैं कैसे कान्हा के बिना रहूँगी ? सूरज ने रजनी को समझाया-

यह प्राइवेट नौकरी में आना जाना तो लगा रहता है। लगाव हो जाता है पर हम एक जगह नहीं रुक सकते। थोड़े दिन के बाद कान्हा तुम्हें भूल जाएगा और हम भी और इलाज कराएँगे और हमारा एक छोटा सा कान्हा हमारे घर में होगा।

रजनी को उस दिन से नींद नहीं आ रही थी रोज कान्हा से मिलने जाती और उसे गले लगा कर समझाती की थोड़े दिन के लिए वह अब नहीं आ पाएगी, कान्हा के मासूम सवालों का उसके पास जवाब नहीं था क्यों नहीं आओगी ? कहाँ चली जाओगी ? मैं किसकी गोद में बैठूंगा ? तुम सौम्या आंटी की गोद में बैठना... रजनी ने रोते हुए कहा।

नहीं कान्हा मासूमियत से बोला-

सौम्या आंटी की गोदी इतनी अच्छी नहीं, मुझे आपकी गोद में ही बैठना है, आपके साथ ही खेलना है।

रजनी सौम्या को कई बार बता चुकी थी की कान्हा का ध्यान रखना मजबूरी में वहां से जा रही है पर उसकी खबर उसे देती रहना। रजनी को कान्हा की याद बहुत आती थी।

सूरज के साथ वह दिल्ली वापस आ गई पर उसके दिमाग से कान्हा नहीं जा रहा था। वो रात-रात को उठ के बैठ जाती। कभी रात को ही सौम्या को फोन कर देती, कान्हा ठीक है ना !

सौम्या को कान्हा और उसके प्यार उसका लगा मालूम था। इसलिए वह सौम्या को अच्छे से समझा देती पर रजनी मानसिक तनाव में आ गई थी, डिप्रेशन होने लगा था।

कान्हा उसकी रग-रग में समा गया था उसकी मासूमियत की बातों को भूल नहीं पा रही थी उसको डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि वह प्रेग्नेंट है। एक नन्हा मेहमान आने की खुशी पूरे घर में छा गई थी मायके वाले भी खुशी में शामिल होने आए पर एक अनजानी सी उलझन रजनी को अंदर से खुश होकर भी खुश नहीं कर रही थी। रजनी कमजोर होने लगी। वजन नहीं बढ़ने से डाक्टर घरवाले चिन्ता मे आ गये। रजनी बेड रेस्ट हो गया।रजनी अपने बच्चे को सही देखना चाहती थी। वो खाना खाती पर उसका शरीर कमजोर होता जा रहा था।

एक दिन सौम्या का फोन आया सूरज के पास।

,सूरज ने रजनी की तबियत के बारे मे बताया।

सौम्या ने कहा जब समय मिले आये शायद रजनी का इलाज है उसके पास...सूरज कुछ दिन मे हैदराबाद आ गया। सौम्या ने उसे हास्पिटल आने को कहा.. अनगिनत सवाल लिये सूरज हास्पिटल पहुँचा। वहाँ कान्हा को देखा। सौम्या ने बताया कि जब से रजनी गयी है, कान्हा गुमसुम रहने लगा। बोलना बंद कर दिया और कमजोर हो गया। तब से हास्पिटल में है। शायद यही दोनों का इलाज है , आप इस लायक है की कान्हा की जिम्मेदारी उठा सकें। सूरज रजनी की चिन्ता मे सब करने को तैयार था।

सूरज कान्हा को गोद लेने का आवेदन देकर वापस आ गया। उसने इसे सरपराइज ही रखना चाहा। घर आकर उसने सौम्या से विडियो काल से रजनी की कान्हा से बात कराई। रजनी को देखते ही कान्हा आंटी आ जाओ बोला। रजनी ने खूब बातें की। रजनी की रोज सौम्या कान्हा से बात कराती।

रजनी का भी वजन बढ़ने लगा। अब वो पहले की तरह घर के काम करने लगी। कान्हा भी एन.जी.ओ सही होकर आ गया था। दिन बीतने लगे और नये मेहमान को लाने के लिये रजनी और सब मायके वाले हास्पिटल आ गये और और बेटी हुई है डाक्टर ने प्यारी सी परी को सूरज को देते हुये कहा।

रजनी खुशी से अपनी बेटी को देखे जा रही थी। सूरज ने बेटी को रजनी के पास लिटाते हुये कहा ..रजनी आज हम एक नहीं दो बच्चों के मम्मी-पापा बने हैं,

ये कहते हुये सौम्या और उसका परिवार कान्हा को गोद मे उठाये हुये थे। सब परिवार चौंक गया। कान्हा को देखकर। सूरज ने कहा जिसकी वजह से रजनी की ममता जागी और हमारे जीवन मे से बेटी आई। तो कान्हा को आना ही था। सूरज ने रजनी को गले लगा लिया और कान्हा को उसकी गोद मे दे दिया। रजनी ने परी को भी कान्हा के साथ गले लगा लिया और रोते रोते सूरज को लव यू सूरज, थैंक यू सूरज बोले जा रही थी। सौम्या ने सारी बातें रजनी को बतायी। रजनी ने सौम्या को गले लगा लिया।

तुम मेरी सबसे प्यारी सहेली हो। ये एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगी। कान्हा को देखकर उसके मन मे ये गाना गूँज रहा था ...मुझको है तुझसे राब्ता.....


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