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Dr Priyank Prakhar

Abstract

4.0  

Dr Priyank Prakhar

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मुआवजा

मुआवजा

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राजीव को यहां आए करीबन पांच साल हो गए थे। वह यहां के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अस्पताल में फार्मासिस्ट के पद पर तैनात था। राजीव यूं तो लखनऊ का रहने वाला था इसलिए जब वह यहां आया तो उसे यहां की जिंदगी खास रास नहीं आई। कहां लखनऊ की तड़क-भड़क भरी तेज जिंदगी और कहां यह राजापुर जैसे एक छोटे कस्बे की शांत, सुस्त और धीमी जिंदगी। शुरुआत में जब वो यहां आया था, तब उसने यहां से ट्रांसफर की भी बहुत कोशिश की थी पर हर जगह ट्रांसफर के लिए पैसे की मांग होती थी और उससे ट्रांसफर कराने के लिए उससे भी ज्यादा जरूरी थी, सही पहुंच, जो उसके वश में नहीं थी। इसलिए थक हार कर अंत में उसने अपने भाग्य से समझौता कर लिया था और यही रुक गया था। धीरे धीरे उसे भी यहां की धीमी जिंदगी में मजा आने लगा था या यों कहें कि उसे भी इस जिंदगी की आदत पड़ गई थी। 


राजापुर कहने को एक छोटा सा कस्बा था पर आसपास काफी सारे गांव के होने की वजह से उसका विकास ठीक-ठाक हो गया था। गांव के लोग भी धीरे-धीरे आ कर के वहीं बस गए थे जिसकी वजह से वहां की आबादी काफी बढ़ गई थी और इसी बढ़ी आबादी के कारण कस्बे को कुछ वर्ष पहले ही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अस्पताल की सौगात मिली थी। कहने को अस्पताल में कई सारे विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती थी पर आमतौर पर वह सारे पद डॉक्टरों के ना मिलने से खाली पड़े रहते थे। 


बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण अधिकतर डॉक्टर तैनाती मिलने के बावजूद भी वहां ज्वाइन नहीं करना चाहते थे, केवल एक डॉक्टर सुशील ही थे, जो यहां पर राजीव के साथ ही आए थे और यहीं के होकर रह गए थे। उनके साथ एक और डॉक्टर यहां तैनात थे पर वह पास के शहर से अप डाउन करते थे। डॉ सुशील और राजीव की इस वजह से आपस में अच्छी बनती थी। डॉक्टर सुशील वैसे तो जनरल सर्जन थे पर इस अस्पताल में वह सीनियर मेडिकल ऑफिसर के पद पर कार्यरत थे और लगभग सारे रोगों के मरीजों को देखते थे। यहीं रहने और लोगों से परिचय होने की वजह से उन पर काम का और लोगों की अपेक्षाओं का दबाव भी काफी होता था, ऐसे में राजीव उनके लिए मददगार साबित होता था। साथ में रहने की वजह से राजीव ने भी काफी सारा काम सीख लिया था। 


इस स्वास्थ्य केंद्र में अगर वरिष्ठता क्रम की बात करें तो देशराज सबसे वरिष्ठ व्यक्ति था, वह डॉक्टर नहीं था पर डॉक्टर से कम भी नहीं था। देशराज वार्ड बॉय था और इस अस्पताल के पहले दिन से यहीं पर कार्यरत था। इससे पहले वह कस्बे में ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में काम करता था, उसको इस पद पर कार्य करते हुए करीबन पैंतीस साल हो चुके थे और उसका परिवार भी इसी कस्बे में स्थाई रूप से रहने लग गया था। उसकी वरिष्ठता, कस्बे के लोगों के साथ उसकी घनिष्ठता और काम के प्रति लगन और ईमानदारी ने उसका एक अलग ही कद बना रखा था पर वह थोड़ा बड़बोला था और अधिकतर अपने इस पैंतीस साल के अनुभव की डींगें हांका करता था। जिस पर राजीव और डॉ सुशील कभी-कभी उससे चुहल करते रहते थे और इस तरह उस कस्बे की नीरस जिंदगी में भी अपनी जिंदगी की उमंग को बनाए रखते हुए हंसी खुशी कार्य कर रहे थे। 


आज मंगलवार था और राजीव हनुमान जी के दर्शन के लिए अपने घर से मंदिर की ओर बाइक से निकल रहा था। उसके रास्ते में ही अस्पताल था, जहां से उसे डॉक्टर सुशील को भी साथ लेना था। राजीव जब अस्पताल पहुंचा तो उसे वहां लोगों की काफी भारी भीड़ दिखाई दी, जो आमतौर पर उस अस्पताल के लिए असामान्य थी। राजीव को थोड़ी चिंता हुई। उसने बाइक पार्किंग में खड़ी करी और तेजी से दौड़ते हुए अस्पताल के अंदर पहुंचा। अंदर पहुंच कर देखा तो वह हैरान रह गया, चारों तरफ मरीजों की भीड़ से अस्पताल के आपातकालीन विभाग के चारों कमरे पूरी तरह भरे हुए थे। तभी उसकी नजर डॉक्टर सुशील और देशराज पर पड़ी, वे दोनों बारी बारी से अलग-अलग मरीजों को देखते हुए और उन की जरूरी जांचें करते हुए इलाज का काम कर रहे थे।


राजीव को देखते ही डॉक्टर सुशील उससे बोले "अरे राजीव! तुम बहुत सही समय पर आए हो, मैं तुम्हें ही याद कर रहा था। मैं तो बस मंदिर जाने के लिए तैयार ही हो रहा था कि अचानक देशराज ने आकर बताया कि अस्पताल में मास कैजुअल्टी आने वाली है, शायद कोई ट्रैक्टर ट्रॉली पलट गई थी। मेडिकल भाषा में मास कैजुअल्टी एक निश्चित संख्या से ज्यादा आए मरीजों की घटना को बोला जाता है। राजीव ने कस्बे में मास कैजुअल्टी पिछले पांच साल में पहले भी दो तीन बार देख रखी थी और जानता था कि ऐसे समय में संसाधनों की कमी की वजह से मरीजों के इलाज में कई बार दिक्कत भी होती थी और मरीजों को भी अपेक्षाएं ज्यादा होने की वजह से कई बार हालात नाजुक हो जाते थे। दूसरे डॉक्टर के छुट्टी पर होने की वजह से डॉ सुशील अकेले ही थे, राजीव भी उनके साथ ही उनके निर्देशानुसार तुरंत मरीजों के इलाज में लग गया। उन तीनों ने एक-एक करके सारे मरीजों को करीबन दो से तीन घंटे में देख कर के उनका प्राथमिक उपचार कर दिया और सौभाग्य से उनमें से किसी की भी हालत नाजुक नहीं थी। सभी लगातार काम करने की वजह से काफी थक गए थे, बस आपातकालीन विभाग से निकलकर अपने कक्ष की ओर जाने के लिए बढ़ ही रहे थे कि तभी राजीव की नजर किनारे के एक बेड पर बेसुध लेटी हुई एक महिला मरीज पर टिक गई। 


राजीव डॉक्टर सुशील से बोला "सर! यह मरीज यहां पर अभी आई है क्या? पहले तो यह नहीं दिखाई दी।" 


"हो सकता है, हम बाकी मरीजों को देख रहे होंगे तो इसलिए हमारा ध्यान इस किनारे के बिस्तर पर ना गया हो क्योंकि यह बिस्तर बहुत सारे मरीजों के रिश्तेदारों से भी घिरा हुआ था और अब सारे मरीज शिफ्ट हुए इसलिए शायद हमारी नजर इस पर अभी गई।" कोई बात नहीं! चलो जल्दी से देख लेते हैं" डॉ सुशील बोले।


राजीव बीपी इंस्ट्रूमेंट और स्टैथोस्कोप लेकर के आगे बढ़ा, उसने मरीज को आवाज देकर हिलाने की कोशिश की। पर यह क्या, मरीज के शरीर में कोई हरकत ही नहीं थी, उसे एक बार लगा कि कहीं ये औरत मृत तो नहीं। तभी उसकी नजर मरीज के सीने पर गई जो सांसों के चलने की वजह से ऊपर नीचे हो रहा था। अगर यह जिंदा है तो यह बोल क्यों नहीं रही राजीव ने मन मैं सोचा और फिर थोड़ा अचकचा कर डॉक्टर सुशील से बोला "सर! आप एक बार इसको देखो ना! ये मरीज कुछ रेस्पांड नहीं कर रही है।"


डॉ सुशील ने तेजी से आगे बढ़कर मरीज की कलाई थामी और उसकी नब्ज देखने लगे और देशराज को उसके किसी संबंधी को बाहर से बुलाकर लाने को कहा। देशराज ने बाहर जाकर आवाज लगाई कि "अंदर जो औरत लेटी है, क्या कोई उसका संबंधी यहां पर है?" पर कोई जवाब नहीं मिलने पर वह वापस आ गया और डॉक्टर सुशील को बताया कि इस मरीज का कोई संबंधी बाहर नहीं है।


दो- तीन मिनट तक नब्ज देखने के बाद उन्होंने राजीव से बीपी इंस्ट्रूमेंट लेकर मरीज का ब्लड प्रेशर देखा और रेस्पिरेट्री रेट यानी कि सांसो की गति भी काउंट करने के बाद राजीव की ओर देख कर बोले "राजीव! इस मरीज के सारे वाइटल पैरामीटर तो ठीक लग रहे हैं, कहीं कोई बाहरी चोट भी नहीं दिख रही है, कहीं इसको हेड इंजरी तो नहीं है!" डॉक्टर सुशील मन में मरीज की स्थिति का आकलन कर रहे थे और उसके हिसाब से राजीव से अपने अनुमान बता रहे थे। डॉक्टर सुशील ने मरीज को आवाज दे करके पूछा "तुम्हारा नाम क्या है।" पर मरीज के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई। "अपनी आंखे खोलो।" उन्होंने फिर से बोला। मरीज ने फिर कोई जवाब नहीं दिया। वह यह सब करके हेड इंजरी के लिए उस मरीज का चेकअप कर रहे थे। आगे बढ़कर उन्होंने उसके हाथ में एक चिकोटी काटी तो उसने अपने हाथ को थोड़ा सा हिलाया और हल्की सी आंखें खोली पर फिर भी कुछ बोली नहीं। उनके परीक्षण के हिसाब से मरीज का जीसीएस स्कोर भी ठीक था, अचानक उनकी नजर मरीज के बेड के नीचे छुपे एक आदमी पर पड़ी, उसको देख कर उनको समझ में आ गया था की मरीज जानबूझकर नाटक कर रही है, पर वह क्यों कर रही है, यह उनकी समझ में नहीं आ रहा था।


तभी देशराज वार्ड बॉय जो उन दोनों को काफी देर से देख रहा था वह आगे आया और डॉक्टर सुशील से बोला "साहब! ये हेड इंजरी का केस नहीं है।


"पर यह बात तुम इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो, देशराज जी" डॉक्टर सुशील बोले।


"साहब! यह मैं नहीं मेरा पैंतीस साल का तजुर्बा बोल रहा है।" देशराज ने थोड़ा रोब से कहा।


डॉक्टर सुशील को लगा कि देशराज को उसके बड़बोलेपन का सबक सिखाने का यह सही मौका है। इसलिए उन्होंने उसकी बात पर ज्यादा ध्यान ना देते हुए राजीव से आगे बोला " राजीव! इस मरीज को हमें बड़े अस्पताल में रेफर करना चाहिए। तुम्हारा इस बारे में क्या कहना है?"


"आप ठीक कह रहे हैं सर!" राजीव बोला।


तभी देशराज फिर से बोला "साहब! आपकी बात ठीक है पर जब तक इसके ट्रांसफर का इंतजाम होता है, तब तक जो मैं कहता हूं वह एक बार कर के देख लो।" यह कहते हुए देशराज ने डॉक्टर सुशील के कान में कुछ फुसफुसा कर बोला।


डॉ सुशील ने देशराज को थोड़ा गुस्से से देखा और बोला "यह मजाक का समय नहीं है, देशराज जी।"


"साहब! मैं भी मजाक नहीं कर रहा हूं, मुझे भी मरीज की पूरी चिंता है पर एक बार जैसा मैं कहता हूं, वह आप कर के देख तो लो, मैं कुछ सोचकर ही बोल रहा हूं।" देशराज गंभीरता से बोला।


उसके चेहरे पर गंभीर भाव को देखकर डॉ सुशील ने संदिग्ध परिस्थितियों के साथ ट्रांसफर में लगने वाले समय के बारे में सोच कर देशराज से कहा "ठीक है देशराज जी! एक बार प्रयास करने में कोई हर्ज नहीं है और इसमें मरीज का कोई नुकसान भी नहीं है।" और फिर दोनों मरीज के बेड के पास पहुंच कर उल्टी दिशा में मुंह करके खड़े हो गए।


राजीव अचानक बदलती इन परिस्थितियों में कुछ भी समझ नहीं पा रहा था, वह कुछ पूछना ही चाह रहा था कि मरीज के बेड के पास खड़े देशराज ने तेज आवाज में डॉक्टर सुशील की तरफ देखते हुए कहा "अरे साहब! मुझे तो लगता है, यह हेड इंजरी का केस नहीं है बल्कि यह मरीज तो जिंदा ही नहीं है।"


"क्या कह रहे हो, देशराज जी! क्या सच में? तो फिर क्या बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए भेजना पड़ेगा। अरे उसमें तो बहुत कागज पत्तर करने पड़ते हैं।" डॉ सुशील झुंझलाते हुए देशराज से बोले।


"साहब! अगर हम इस बॉडी को मेडिकल कॉलेज भिजवा दें तो उनके डिसेक्शन हॉल में बच्चों की पढ़ाई के काम आ जाएगा और परोपकार भी हो जाएगा।" देशराज थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला।


"सर! जहां तक मुझे याद है कि आप एक बार मृत व्यक्ति और अंगदान के बारे में भी कुछ बोल रहे थे।" देशराज फिर से बोला।


"क्या बात है देशराज जी! सच में आप के पैंतीस साल का तजुर्बा बहुत काम का है, आप जरूरी कार्रवाई करते हुए दोनों में से एक जगह की प्रक्रिया शुरू करा दीजिए।" यह कहकर डॉक्टर सुशील वहां से दूर आने लगे।


हां सर! आईडिया तो ठीक लगता है, बॉडी में कोई हरकत तो हो नहीं रही है तो शायद मर ही गई है, मैं शहर के अस्पताल में बात करके देखता हूं इन दोनों में से क्या विकल्प ज्यादा संभव है।" देशराज गंभीर होने की कोशिश करते हुए बोला और फिर दोनों मरीज के बेड से उलटी दिशा में मरीज से दूर जाने लगे।


इस सारे माहौल को राजीव हक्का-बक्का हो करके देख रहा था। अचानक उसकी नजर उस औरत मरीज पर पड़ी, जो डॉक्टर सुशील और देशराज की बात सुन घबराकर, वही पलंग के नीचे छुपे अपने पति को इशारे से कुछ कहना चाह रही थी, राजीव ने कुछ बोलना चाहा पर डॉ सुशील ने इशारे से उसे चुप करा दिया। 


अचानक अपने पीछे से उन्हें बिस्तर से उतर कर किसी के भागने की आवाज आई। पीछे पलट कर देखा तो बेड खाली था और वह औरत वहां से भाग चुकी थी और उसके पीछे-पीछे एक आदमी भी भाग रहा था, जो शायद उसका पति था।


दोनों की हंसी छूट गई, उनको हंसता देख राजीव भी हंसने लग गया।अस्पताल का माहौल थोड़ा हल्का हो गया था। पर राजीव के मन में बहुत सारे सवाल घूम रहे थे, जैसे ही डॉक्टर सुशील और देशराज उसके पास आए, उसने उनके सामने अपने सवालों की झड़ी लगा दी। डॉ सुशील राजीव की स्थिति समझ रहे थे और शायद राजीव क्या! कोई भी उसकी जगह होता उसकी भी यही हालत होती। 


'"सर! मुझे यह बात समझ में नहीं आई की देशराज को यह कैसे पता लगा कि उस मरीज को कोई हेड इंजरी नहीं है और वह बिल्कुल ठीक है।" राजीव ने डाॅ सुशील से पूछा। 


डॉ सुशील ने देशराज की ओर देखते हुए कहा "बताओ देशराज जी! तुम्हें कैसे पता लगा कि वह मरीज नाटक कर रही है।"


"साहब! यह सब मुआवजे का खेल है, मैं पिछले 35 साल से इस गांव में रह रहा हूं और यहां की नस-नस जानता हूं।"


"मुआवजे का खेल!" थोड़े आश्चर्य के साथ डॉ सुशील ने देशराज की ओर देखते हुए पूछा। उन्हें मरीज के परीक्षण से यह तो पता लग गया था कि मरीज नाटक कर रही है पर यह नहीं पता था कि वह ऐसा क्यों कर रही है? देशराज की बात से उनके मन में भी थोड़ा कौतूहल हुआ।


"हां साहब! मुआवजे का खेल, यह सारे लोग जो अभी यहां अपना इलाज करा कर गए हैं, यह सारे लोग और वो ट्रैक्टर वाला जो इनको अपने ट्रैक्टर में बैठा कर के यहां से गांव ले जा रहा था, यह सब एक ही गांव के हैं और एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं। जब कभी ट्रैक्टर वाले यहां से गांव के लिए लौटते हैं, तो काफी सारे लोग जो अपने काम धंधे के लिए गांव से कस्बे आए होते हैं, वह अपना पैसा बचाने के लिए, इन ट्रैक्टर वालों से विनती करके, उनकी ट्रॉलीयों में बैठ जाते हैं, और इस तरह फ्री में अपने गांव पहुंच जाते हैं। जब तक सकुशल गांव पहुंच गए तब तक सब ठीक रहता है पर अगर दुर्भाग्य से कभी कोई एक्सीडेंट हो गया तो वही सारी सवारियां स्वार्थ से वशीभूत होकर ट्रैक्टर वाले के ऊपर इलाज के मुआवजे और सरकारी मुआवजे के लिए पीछे पड़ जाती हैं।


" तो अब मेरी समझ में आया कि वह औरत नाटक क्यों कर रही थी।" कहकर डॉ सुशील हंस दिए। 


उनकी बात सुनकर राजीव बोला "तो क्या आपको पता था? कि वह औरत नाटक कर रही थी, फिर भी देशराज के कहने पर आप वह सारा नाटक कर रहे थे।"


"हां राजीव! मुझे पहले ही पता लग गया था कि वह औरत नाटक कर रही थी। क्योंकि मेरे परीक्षण के दौरान उस मरीज का हेड इंजरी का स्कोर बिल्कुल ठीक आया था यानी कि उसे कोई हेड इंजरी नहीं थी। पर एक बात जो मुझे खटक रही थी वह यह कि ये नाटक वो क्यों कर रही थी, जो कि देशराज जी के मुआवजे वाली बात बोलने से आईने की तरह साफ हो गई। और रही नाटक करने की बात तो वह देशराज जी को सबक सिखाने के लिए किया था। जो हमेशा कहते रहते हैं, कि मुझे पैंतीस साल का तजुर्बा है, आप जैसे कितने डॉक्टर यहां आए और चले गए पर इनका तजुर्बा भी मानना पड़ेगा।


देशराज भी हंसते हुए बोला "वैसे साहब! एक बात बोलूं पैंतीस साल के तजुर्बे वाली बात तो मैंने थोड़ा अपना माहौल बनाने के लिए बोली थी। असल में उस मरीज को मैंने उसके पति के साथ ये सारी बातें करते सुन लिया था, इसलिए मुझे पक्का पता था कि वह नाटक कर रही थी।


"अच्छा तो आप दोनों नाटक कर रहे थे पर मैं बेचारा आप दोनों के नाटक में नाहक ही फंस गया। अब तो बेवजह मुझसे नाटक करवाने के लिए आप दोनों को भी मुझे मुआवजा देना पड़ेगा और उस औरत की तरह बिना मुआवजा लिए, मैं तो यहां से जाने वाला नहीं हूं।" यह कहते हुए राजीव वही कुर्सी पर बैठ गया। उसके चेहरे पर बनावटी गुस्सा देखकर देशराज और डॉक्टर सुशील दोनों ही हंसे बिना नहीं रह सके। 

डॉक्टर सुशील हंसते हुए देशराज से बोले "अरे भाई देशराज जी! उस औरत को तो मुआवजा नहीं मिला पर अभी राजीव को तो हमें मुआवजा देना ही पड़ेगा, चलो चाय-वाय मंगाओ और इसको मुआवजा देकर यहां से विदा करो।"


"पर राजीव भाई! मैंने उन दोनों की बातें सुन ली थीं, ये कहानी किसी और से मत कहना, यही बोलना कि देशराज जी का पैंतीस साल का तजुर्बा काम कर गया, अपनी थोड़ी इज्जत बनी रहेगी और मेरी तरफ से भी आप को मुआवजा पक्का।" यह कहकर देशराज भी हंसने लगा।


उन दोनों को हंसता देखकर राजीव अपनी हंसी ना रोक सका और तीनों मिलकर हंसने लगे। चाय पीकर राजीव जब अस्पताल के बाहर निकला तो सामने वह ट्रैक्टर और टूटी ट्राली खड़ी हुई थी और उसके आसपास कई सारे लोग खड़े थे। अचानक उसको जान पड़ा कि जैसे वो ट्रैक्टर ना हो करके रुपए-पैसों का कोई गठ्ठर हो और आसपास खड़े लोग उससे रुपए पैसे निकालने के लिए कोशिश कर रहे हों। सहसा उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ, उसने आंखों को मलकर एक बार फिर से वहां पर देखा तो ट्रैक्टर और ट्रॉली ही खड़ी हुई थी। उसकी हंसी छूट गई, वो सोच रहा था शायद अस्पताल में हुई मुआवजे की बात उसके दिमाग में कहीं बहुत अंदर तक असर कर गई थी इसलिए उसको ट्रैक्टर मुआवजे के पैसे की गठ्ठर के जैसा लगा। वह हंसते हुए एक बार फिर ट्रैक्टर की ओर देखते हुए मंदिर की ओर निकल गया।



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