मटका

मटका

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आज सुबह से घर के पास वाले मंदिर बड़ी भीड़ थी जब हम छोटे थे मां जल्दी से हम भाई बहनों को तैयार का मंदिर ले भक्ति जाती थी और मटके दान करते कुछ फल कुछ मिठाईयां और कपड़े दान करते थे मगर आजकल त्योहार कब आते है पता ही नही चलता मगर इस नए इलाके में कुछ तो खबर मिलती है क्योंकि घर के पास मंदिर है सोच रहा हूं आज एक मटका किसी को दान करूं वैसे भी इतनी गर्मी है कार में जाते एक मटका लेकर पानी भर दिया मंदिर के पास सभी के हाथ में मटके नजर आ रहे हैं ऑफिस के बाहर बैठे वॉचमैन को ही देता हूं बड़ी धूप में बैठा हैं उसने बड़ी खुशी से ले लिया

मगर वह सोचता है कि अभी कुछ दिन पहले ही मैंने मटका लिया है क्यों ना कामवाली जो सुबह झाड़ू लगाने आती उसे मटका दे दूं नई बाई को देता है खुशी से लेती है मगर वो सोचती है मेरे पास तो पहले ही पानी का ड्रम है और सारा दिन घर से बाहर रहती हूं जहां काम करती वहीं पानी पी लेती हूं फिर मटके को रखकर मैं क्या करूंगी क्यों नहीं से किसी गरीब को दान कर दूं मटका घर के पास रहने वाले गरीब भिखारी को दान करती है और दुआएं देता है बहुत खुश होता है मगर वह कुछ महीनों के लिए अपने गांव जाने वाला होता है इसलिए वह मटका घर के पास रहने वाले व्यक्ति को देता है और से इस गर्मी में इस्तेमाल करने के लिए देता है वह व्यक्ति मसान घाट की देखभाल करता है उसे लगता है कि उन्होंने मसान घाट में भरकर रख दूं और वह उस मटके को वही भरकर रख देता है कुछ दिनों बाद एक व्यक्ति की मृत्यु होने पर वहां चिता जलती है जिसमें उस बुजुर्ग व्यक्ति को चक्कर आ जाता है एक तरफ आग का तेज भीषण गर्मी.

वहां काम करने वाला व्यक्ति उसे देख कर समझ जाता है कि गर्मी से परेशान है और वह उस मटके से ठंडा पानी लाकर उसे देता है उसे राहत मिलती है हमारे करम घूम फिर कर हमारे पास ही आते हैं दान का ₹1 भी घूम फिर कर हजारों हाथों से आपके पास ही आ जाता है।


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