Ashish Kumar Trivedi

Drama

2.7  

Ashish Kumar Trivedi

Drama

मर्द का दर्द

मर्द का दर्द

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पवन और मंजरी फैमिली कोर्ट में उपस्थित थे। आज उनके तलाक के केस की सुनवाई थी। यह केस दोनों ने आपसी रज़ामंदी से फाइल किया था। 


अभी दोनों के विवाह की पहली सालगिरह गुज़रे कुछ ही दिन हुए थे। दोनों तलाक लेने के लिए कोर्ट में बैठे थे। पवन ने मंजरी की तरफ देखा। वह अपने बालों को पीछे की तरफ क्लचर से बांध रही थी। पवन के दिल में एक दर्द सा उठा। काश जो उसने सोंचा था वही हुआ होता।

वह मंजरी से अपनी पहली मुलाकात के बारे में सोंचने लगा। अतीत की घटनाएं उसकी नज़रों के सामने से गुज़रने लगीं।


पवन रेस्टोरेंट के बाहर कुछ क्षणों तक खड़ा रहा। पर वह बहुत नर्वस था। पहली बार वह किसी लड़की से मिलने जा रहा था। जब वह रेस्टोरेंट में दाखिल हुआ तो उसे कार्नर टेबल पर बैठी मंजरी दिखाई पड़ी। वह मंजरी के पास जाकर बोला।


"हैलो, मैं पवन हूँ...."


"हैलो...."


मंजरी ने मुस्कुराते हुए उसका स्वागत किया। उसने उसे बैठने का इशारा किया। मंजरी उसके सामने थी पर पवन समझ नहीं पा रहा था कि बात कैसे शुरू करे। पर उसकी समस्या का समाधान मंजरी ने कर दिया।


"आप मुझसे शादी के सिलसिले में मिलने आए हैं ?"


"जी, आप और हम एक दूसरे को जान लेंगे तो फैसला लेना आसान होगा।"


मंजरी कुछ देर चुप रही। फिर गंभीरता से बोली। 


"आई एम सॉरी.....पर मैं किसी से शादी नहीं करना चाहती हूँ।"


मंजरी के मुंह से एकदम से आई एम सॉरी सुनकर पवन को बहुत बुरा लगा। मंजरी उसकी हालत पर ध्यान दिए बिना आगे बोली।


"मैं जानती हूँ कि मेरा सीधे सीधे मना करना आपको पसंद नहीं आया होगा। पर मैं बेवजह अपना और आपका वक्त बर्बाद नहीं करना चाहती थी।"


उसकी ये बात पवन को और बुरी लगी। उसने जवाब देते हुए कहा।


"तो अच्छा तो यही था कि आप मुझसे मिलने ही ना आतीं। पहले ही मना कर देतीं।"


"आप ठीक कह रहे हैं। पर मैं क्या करूँ, मेरे घर वाले पीछे पड़े थे। मैं यहाँ ना आती तो मेरा जीना मुश्किल कर देते।"


"वो तो जब आप घर जाकर मुझसे शादी करने से मना करेंगी तो भी होगा।"


मंजरी कुछ रुकी। फिर बोली।


"देखिए, मुझे गलत मत समझिए। पर घरवाले मेरे फैसले को समझ नहीं रहे हैं। ये सही है कि इससे आपका कोई संबंध नहीं है। मैंने आपको बेवजह तकलीफ दी। पर आपसे एक बार मिलना आवश्यक था।"


"अच्छा वो क्यों ?"


मंजरी कुछ देर तक सोंचती रही। वह समझ नहीं पा रही थी कि अपनी बात कैसे कहे ? उसने इधर उधर देखा। फिर धीरे से बोली। 


"मुझे ‌आपकी मदद चाहिए थी ?"


"कैसी मदद ?"


"देखिए मेरी प्रार्थना है कि पूरी बात ध्यान से सुनिएगा। फिर अपनी प्रतिक्रिया दीजिएगा।"


पवन ने सर हिला कर हामी भरी। मंजरी ने अपनी बात कहना आरंभ किया।


"आपका कज़िन सौरभ और मेरा भाई दोस्त हैं। सौरभ ने मेरे भाई को आपके बारे में बताया। आपकी शादी की बात कहीं नहीं बन पा रही है। परिवार वाले इस बारे में बात करते हैं। मैं शादी नहीं करना चाहती। ये मेरे परिवार में बात का विषय है। सबका कहना है कि बिना शादी के कैसे रहोगी ? दोनों एक दूसरे की मदद कर लोगों को चुप करा सकते हैं।"


मंजरी ने रुक कर पवन की तरफ देखा। पवन उसकी बात समझने की कोशिश कर रहा था। उसने मंजरी से अपनी बात पूरी करने को कहा।


"मेरी एक सहेली का पति वकील है। मैंने उससे बात की तो पता चला कि शादी के एक साल बाद आपसी सहमति से तलाक मांगा जा सकता है।"


मंजरी कुछ ठहर कर बोली।


"हम शादी कर लेते हैं। एक साल तक समय बिताने के बाद तलाक लेकर अलग हो जाएंगे। फिर हमारी शादी को लेकर लोग बात करना बंद कर देंगे।"


मंजरी चुप हो गई। पवन कुछ पल चुप रहने के बाद बोला।


"आपको ये क्यों लगा कि मैं आपके इस प्लान का हिस्सा बनने को तैयार हो जाऊँगा। मेरी शादी नहीं हो रही यह मेरी समस्या है। उससे मैं निपट लूँगा।"


कह कर पवन उठा और रेस्टोरेंट से बाहर निकल गया। 


घर पहुँच कर वह बहुत देर तक मंजरी की बात पर विचार करता रहा। उस समय तो उसे मंजरी की बात चुभ गई थी। पर अब जब उसका दिमाग शांत हुआ तो उसे उसकी बात में कुछ दम लग रहा था।


अभी पिछले हफ्ते ही उसने बत्तीस साल पूरे किए थे। पर अभी तक उसके जीवन में किसी ने भी दस्तक नहीं दी थी। इस बात का उसे मलाल था। 


वह इसका कारण नहीं समझ पा रहा था। वह अच्छी नौकरी पर था। अपना घर था। देखने में भले ही वह फिल्मी हीरो की तरह नहीं था। पर ठीक ठाक दिखता था। अपनी भावी पत्नी को लेकर उसने कोई बहुत बड़े मानदंड भी स्थापित नहीं किए थे। वह तो बस एक पढ़ी लिखी अपने पैरों पर खड़ी लड़की चाहता था।

 

परिवार में उसे भइया कह कर बुलाने वाले सारे कज़िंस पिता बन चुके थे। पर अब तक उसकी शादी तो छोड़िए कोई अफेयर भी नहीं हुआ था। वह इस बात से बहुत दुखी था। पर अपने मन की व्यथा किसी से कह नहीं पाता था। 


ऐसा भी नहीं था कि वह बहुत शर्मीला था और लड़कियों से बात नहीं कर पाता था। अपने ऑफिस की पार्टी में वह खूब रंग जमाता था। उसकी महिला कुलीग्स जिनमें कई कुंवारियां थीं ताली बजा कर उसकी तारीफ भी करती थीं। पर बात उसके आगे नहीं बढ़ पाती थी। 


सौरभ ने फोन कर उसे मंजरी से मिलने के लिए कहा था। मंजरी बैंक में क्लर्क थी। पवन को यह बात अच्छी लगी। वह उससे मिलने चला गया। 


पवन भी शादी करना चाहता था। पर अभी तक कुवांरे रहने पर उसे कोई हताशा नहीं थी। पर ये बात भी सच थी कि परिवार और मित्रों के ‌बीच इस विषय पर होने वाले तंज़ और मज़ाक उसे चुभते थे।


सौरभ ने उसे फोन करके पूँछा कि मंजरी से बातचीत कैसी रही। पवन ने जवाब दिया कि उन दोनों ने कुछ वक्त सोंचने के लिए लिया है। सौरभ ने फोन रखते हुए सलाह दी‌ कि इस बार कोशिश करो कि बात बन जाए। 


पवन अब मंजरी की बात पर ठंडे दिमाग से सोचने लगा। वह लोगों को और बात बनाने का मौका नहीं देना चाहता था। पर मंजरी की बात पर विचार करते हुए पवन के दिल में एक खयाल आया। हो सकता है कि शादी के बाद मंजरी अपना इरादा बदल दे। 


पवन ने तय किया कि वह मंजरी की बात मान कर शादी कर लेगा। इसके बाद उसे इतना अधिक प्यार व सम्मान देगा कि वह तलाक वाली बात भूल जाएगी।

 

मंजरी और पवन की शादी हो गई। पवन एकदम से खुद को उस पर थोपना नहीं चाहता था। इसलिए उसने बहुत धैर्य से काम लिया। धीरे धीरे वह मंजरी के लिए अपने प्यार का इज़हार करने लगा। पहले तो मंजरी ने सब नज़र अंदाज़ किया। पर बाद में पवन को संकेत दे दिया कि वह किसी तरह पिघलने वाली नहीं है। 


जैसा मंजरी ने सोंचा था उसने अपनी सहेली के वकील पति की मदद से तलाक का केस दाखिल कर दिया। 

पवन चाहता तो इंकार कर सकता था। पर वह भी समझ गया था कि जबरदस्ती से रिश्ता नहीं बन सकता है। 


आज वह कोर्ट परिसर में बैठा अपने केस के सुने जाने की प्रतीक्षा कर रहा था। उसके मन में एक तूफान था। दिल का दर्द आँखों से निकलने को बेचैन था। 


पर वह पूरी कोशिश से उस बाढ़ को रोक रहा था। 

मर्द का दर्द दूसरों के सामने नहीं आना चाहिए। यही तो समाज की रीति है।


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