मरा हुआ इंसान
मरा हुआ इंसान
दोपहर का समय और ढ़ोलक की ढ़म ढ़म आवाज से झल्ला गया सोमेश।
"रोमा" जोर से चिल्लाया "देखो तो कौन भरी दोपहर को शोर मचा रहा है। भगाओ जल्दी उसे मेरी नींद खराब हो रही है" रोमा जो स्कूल से आये बच्चों को खाना खिला रही थी झल्लाती हुई दरवाजे की तरफ बढ़ी। दरवाजा खोल कर देखा तो एक औरत ने अपने बच्चे को वक्ष पर बांधे सर पर कपड़ो की अस्त व्यस्त पोटली और पीठ पर एक झोला लिए हुए थी जिसमें कुछ सामान और दूध की बोतल थी पास ही जमीन पर बरतनों से भरी टोकरी रखे धूप में खड़ी थी। उस औरत को देख उसे समझते देर न लगी कि वो बरतन वाली है। इतनी कड़क धूप में उस औरत और बच्चे को देख रोमा को बहुत दया आयी तो उसने आवाज लगाई "ओ बरतन वाली इधर आ"। रोमा की आवाज़ सुन उस औरत ने ढोलक बजाना बंद कर दिया और उसके घर की तरफ बढ़ गयी।
तब तक सोमेश भी बाहर आ चुका था और उस बरतन बेचने वाली पर नजर पड़ते ही उसके होश उड़ गये , "चलो, चलो तुम भी किसी को भी बुला लेती हो" कहता रोमा को घर के अन्दर लगभग ढ़केलने लगा जिससे रोमा थोड़ी क्रोधित होती बोली, "अरे अन्दर नहीं बुला रही बस सोचा बेचारी को पानी पिला दूं और बच्चे के लिए कुछ दे दूं"
दोनों के बीच की बहस बरतन वाली जो अब तक सुन रही थी बोली "मेमसाहब रहने दीजिये, साहब ठीक ही कह रहे है। किसी को भी अपने घर और जिन्दगी में नहीं घुसने देना चाहिए क्योंकि लोगों का क्या भरोसा"
"देखिए न मैंने भी किसी पर विश्वास कर अपना तन मन समर्पित कर दिया था। मेरे जिस्म के साथ खेल मुझे गर्भवती बना लौटने का वादा कर वो चला गया पर आया नहीं। बस उसी की तलाश में भटक रही थी, अब तक। पर अब नहीं भटकूंगी मेमसाहब क्योंकि आज मेरी तलाश खत्म हो गयी है और समझ आ गया कि मरे हुए लोगों को तलाशा नहीं अंतिम संस्कार किया जाता है"
कहती बरतन वाली जाने लगी रोमा के मन में लाखों सवाल छोड़कर और सोमेश को मरा हुआ इंसान बता कर।
