Raj K Kange

Romance Tragedy

4.1  

Raj K Kange

Romance Tragedy

मोगरे की खुशबू

मोगरे की खुशबू

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उसकी हंसी बहुत ही प्यारी थी, वो हमेशा खिलखिलाती रहती थी। उसे मोंगरे के फूल बहुत पसंद थे। अक्सर वह मोंगरे के फूलो का गजरा अपने बालो में लगाया करती थी। वह जहाँ भी जाती थी मोंगरे के फूलों की भीनी भीनी खुशबू बिखर जाया करती थी। मुझे उसकी हर बात पसंद थी, उसका बोलना, उसका हंसना, बालों में मोंगरे के फूलों का गजरा लगाना। मैं उस से अपने दिल की बात कहना चाहता था, अपने मन की भावनाएं उसके सामने व्यक्त करना चाहता था। पर कभी हिम्मत ही नही हुई। डर लगता था कि कहीं नाराज़ न हो जाये। उस दिन तो जैसे मेरे जीवन का अंत ही हो गया था जब मुझे यह पता चला था कि उसकी शादी तय हो गई है। मेरे सपनों का संसार बसने से पहले ही उजड़ चुका था। 

श्रुति मेरी मित्र थी और मुझे कभी उसकी बातों से ये नहीं लगा कि वो मुझे दोस्त ज्यादा कुछ समझती होगी। मेरा प्रेम एकतरफा था इसलिए मेरी कभी हिम्मत नहीं हुई अपने प्रेम को उसके सामने ज़ाहिर करने की। गांव में हम लोगों का घर अगल बगल में ही था। अक्सर एक दूसरे के घर आना जाना लगा ही रहता था। ढेर सारी बातें, हंसी ठिठोली भी हुआ करती थी। दोनों के परिवारों के बीच भी बहुत अच्छे सम्बन्ध थे।

बचपन से हम साथ थे। एक साथ बड़े हुए थे लेकिन मुझे कभी पता ही नहीं चला कि कब मेरे मन में उसके प्रति प्रेम की भावना विकसित हो गयी। पर मेरे विचार से मैं उसके लिए शायद मित्र से अधिक कुछ नहीं था। इस लिए मैंने कभी अपने मन की बात उसे नहीं बताई थी। लेकिन जिस दिन से उसका विवाह तय हुआ था उस दिन से पता नहीं क्यों वह थोड़ी उदास उदास सी रहने लगी थी। मैंने उस से पूछा भी कि क्या हुआ है उसे पर उसने कुछ नहीं बताया। उल्टा वह मुझ से ही पूछने लगी कि क्या मैं किसी से प्रेम करता हूँ, अगर करता हूँ तो उसे बता दूँ वरना जब वह शादी के बाद विदा हो जाएगी तो मेरी कोई मदद नहीं कर पायेगी। उसकी बातें सुन के मैं घबरा गया था।

मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था। मन कर रहा था कि चीख चीख कर बोल दूँ कि हाँ मैं तुमसे प्यार करता हूँ, बहुत ज्यादा प्यार करता हूँ और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। लेकिन यह सोच कर मैंने अपनी भावनाओं को काबू कर लिया था कि अब तो इसकी शादी तय हो चुकी है और अगर मेरे कारण इसने शादी से मना कर दिया तो मैं सबकी नज़रों में गिर जाऊंगा और दोनों परिवारों की इज्जत भी ख़राब होगी और सम्बन्ध भी।

मैंने उस से झूठ मूठ कह दिया कि मेरे जीवन का उद्देश्य कुछ और ही है। प्यार व्यार के चक्कर में पड़ कर मैं अपना भविष्य बर्बाद नहीं कर सकता। उसको विश्वास दिलाने के लिए मुझे झूठी हंसी भी अपने चेहरे पर लानी पड़ी। फिर कुछ दिन बाद उसकी शादी हो गयी। विदाई के वक्त गाड़ी में बैठते समय उसने मुझे आंसू भरी आँखों से आखिरी बार पलट कर देखा, मेरे दिल को कुछ अजीब सा महसूस हुआ। मैं अपने आंसू नहीं रोक पा रहा था इसलिए तुरंत वहां से चला गया। मैंने खुद को समझा लिया कि सब किस्मत का खेल हैं जो जिसको मिलना होता हैं उसे मिल ही जाता हैं और अगर किस्मत में न हो तो चाहे कोई कुछ भी कर ले कुछ नहीं होता।

उसकी शादी केअगले ही दिन मैं दिल्ली चला गया। एक अच्छी कंपनी का जॉब ऑफर था एक हफ्ते बाद इंटरव्यू था लेकिन मैं उस माहौल से जल्दी ही कहीं दूर भाग जाना चाहता था ताकि श्रुति की यादों से जल्द बाहर निकले सकूँ इसलिए उसकी शादी के अगले दिन ही चला गया। दिल्ली में मेरी नौकरी लग चुकी थी। काम की व्यस्तता में श्रुति की यादें भी कुछ धुँधली पड़ने लगी थीं। लेकिन अक्सर अकेले में उसकी याद आ ही जाती थी। मुझे दिल्ली में आये हुए लगभग दो महीने हो चुके थे। इस बीच मैं कभी अपने गांव नहीं जा पाया जिसकी वजह से मेरी माँ मुझ पर गुस्सा भी करती थी। उनका गुस्सा दूर करने के लिए मैंने उन्हें ही अपने पास कुछ दिनों के लिए दिल्ली बुला लिया। वैसे भी खुद के हाथों का बना खाना खा खा कर मैं ऊब चूका था इसी बहाने माँ के हाथों का बना स्वादिस्ट खाना भी खाने को मिल रहा था।

एक दिन मैं अपने ऑफिस से थोड़ा जल्दी घर आ गया था। मैं जैसे ही अपने घर में घुसा वही भीनी भीनी मोंगरे की खुशबू मेरी नाक में पड़ी। मैंने सोचा शायद माँ ने पूजा करते वक़्त अगरबत्ती जलाई होगी मोंगरे वाली उसी की खुशबू होगी। मैंने माँ को आवाज़ लगायी। मुझे प्यास लग रही थी तो मैं माँ का इंतज़ार किये बिना ही खुद ही रसोई घर की तरफ पीने का पानी लेने चला गया। माँ रसोई घर में भी नहीं थी। तभी मोंगरे की खुशबू तेज़ होने लगी मुझे लगा जैसे श्रुति वही आस पास मौजूद हैं। मैं माँ को देखने उनके कमरे की तरफ गया।

मैंने जैसे ही कमरे का दरवाज़ा खोला मैं हैरान रह गया। श्रुति माँ के कमरे में बैठी थी और पहले की तरह ही बेहद खूबसूरत लग रही थी। मोंगरे के फूलों का गजरा अब भी उसके बालों में सजा हुआ था। उसे देख कर मुझे ख़ुशी भी हुई और हैरानी भी। मैंने उसे से पूछा कि अचानक वह दिल्ली में कैसे, तो उसने बताया कि एक हफ्ते पहले ही उसके पति का ट्रांसफर दिल्ली हो गया है। जब मैंने उस से पूछा कि दिल्ली में मेरे घर का पता किसने बताया, तो उसने कहा कि मेरी बहन को फ़ोन करके मेरे घर का पता पूछ लिया था मैंने उस से चाय के लिए पूछा तो वह बोली कि माँ चाय नाश्ता करा चुकीं हैं और पास के किराना स्टोर से कुछ जरूरी सामान खरीदने गयी हैं। माँ उसे हिदायत दे कर गयी थी कि मेरे से मिले बगैर न जाये इसलिए वह मेरा इंतज़ार कर रही थी। कुछ देर हमने इधर उधर की बातें की फिर वह जाने के लिए खड़ी हो गयी। मैंने उस से कहा कि माँ को आ जाने दो फिर चली जाना तो वह बोली कि उसे काफी देर हो चुकी हैं और उसके पति उसका इंतज़ार कर रहे होंगे। मैंने फिर उसे रोकने की कोश्शि नहीं की, आखिर रोकता भी तो किस हक़ से।

वह बाहर जाते जाते अचानक रुकी, और पलट कर मुझे देखने लगी, बिलकुल उसी अंदाज़ में जैसे अपनी विदाई के वक़्त देख रही थी। उसने मुझे सवालिया नज़रों से देखते हुए कहा,"मुझे तुमसे एक बात कहनी थी ". मैंने कहा, "हाँ हाँ कहो इसमें इतना सोचने की क्या बात हैं ". कुछ देर रुक कर वह बोली,"जब तुम मुझ से प्यार करते थे,तो कहा क्यों नहीं ?". मैं इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं था। मुझे बिलकुल भी अंदेशा नहीं था कि श्रुति मुझ से ये सवाल पूछेगी। मैं हड़बड़ा गया लेकिन फिर भी मैंने खुद को सँभालते हुए कहा, "यह तुम क्या कह रही हो श्रुति, जरूर तुम्हे कोई गलतफहमी हुई होगी" उसने अपने होटों पर व्यंगात्मक मुस्कान लाते हुए कहा," कम से कम आज तो सच बोल दो ", फिर उसने आगे कहा, " पता है, एक दिन मैं तुम्हारे घर गई थी तुमसे कुछ पूछने पर उस समय तुम अपने कमरे में नहीं थे। तुम्हारी स्टडी टेबल पर मेरी मनपसंद किताब रखी थी जो अक्सर मैं तुमसे मांग कर पढ़ा करती थी। मैंने जैसे ही उस किताब को उठाया उसके नीचे तुम्हारी पर्सनल डायरी पड़ी थी। मैंने सिर्फ कौतुहल वश उस डायरी को खोल कर देखा, उसके अंदर कुछ सूखे हुए मोंगरे के फूल पड़े थे। उन्हें देख कर मेरी जिज्ञासा बढ़ गई तो मैंने बांकि के पन्नो को पलटना शुरू किया।

आगे जो लिखा था उसे पढ़ कर मैं हैरान थी। उन पन्नों में हर वो बात लिखी थी जो तुम मुझ से कहना चाहते थे। मुझे पता चल चुका था कि तुम मुझ से बहुत प्यार करते हो। लेकिन सब कुछ पता होने के बाद भी मैंने तुमको इसलिए कुछ नहीं कहा क्योंकि मैं वो सब तुम्हारे मुँह से सुनना चाहती थी। मैं चाहती थी कि तुम मेरे सामने अपने प्यार का इजहार करो। मैं आखिर तक इंतज़ार करती रही कि तुम कभी तो अपने दिल की बात मुझ से कहोगे लेकिन तुमने नहीं कहा। जब मुझ से रहा नहीं गया तो मैंने अपनी शादी के कुछ दिन पहले तुमसे इशारे इशारे में खुद पूछा भी, कि अगर किसी से प्यार करते हो तो बता दो पर तुमने तब भी कुछ नहीं कहा। फिर मैं ये सोच कर पीछे हट गयी कि जब तुम्हारे अंदर मेरे अकेले के सामने अपने प्यार को स्वीकार करने की हिम्मत नहीं है,तो दुनिया के सामने कैसे स्वीकार करोगे।

आखिर में मेरी शादी हो गई। तुम्हे पता है आज मेरी शादी को दो महीने हो चुके हैं लेकिन मैं चैन से नहीं जी पा रही हूँ। मुझे अब भी यही लगता है कि काश ! तुम एक बार कह देते, तो मैं सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे पास चली आती । पर मुझे पता है कि अब यह असंभव है। इस जिंदगी में तो हम दोनों एक नहीं हो पाए पर अगले जन्म तक मैं तुम्हारा इंतज़ार करुँगी ". यह कह कर वह आँसू पोछते हुए तेज़ी के साथ बाहर निकल मुझे हैरान परेशान और ठगा सा महसूस करवा कर। मेरे पास अब पछताने के अलावा कोई चारा नहीं था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई बहुत बड़ा तूफ़ान आ कर चला गया अपने पीछे सब कुछ तहस नहस कर के। इस से पहले कि मैं इस सदमे से बाहर आ पाता अचानक मेरा मोबाईल बजने लगा। उसमे पड़ोस वाले प्रसाद अंकल के नंबर से फ़ोन आ रहा था। मैंने जैसे ही फ़ोन उठाया उधर से मेरी माँ की घबराई हुई सी आवाज़ आयी," हैलो प्रकाश, बेटा मैं गुरु तेग बहादुर हॉस्पिटल से बोल रही हूँ तू जल्दी से यहाँ आ जा, मैं पड़ोस वाले प्रसाद भाई साहब के साथ यहाँ आयी हूँ जल्दबाज़ी में तुझे फ़ोन करने का समय नहीं मिला ".

मैंने घबरा कर पूछा," क्या हुआ माँ आप ठीक तो हो न, आप हॉस्पिटल क्यों गई हो, आपकी तबियत तो ठीक है न ? माँ ने जवाब दिया," अरे बेटा मुझे कुछ नहीं हुआ है, तू फ़ोन पर कुछ मत पूछ बस जल्दी से हॉस्पिटल आ जा ". माँ की बात सुन कर मैं बहुत घबरा गया था। मैं तुरंत हॉस्पिटल के लिए निकल गया। माँ और प्रसाद अंकल मुझे हॉस्पिटल के गेट पर ही मिल गए। मैंने माँ से पूछा की आखिर बात क्या है तो माँ ने कहा," बेटा वो गांव में हमारे पड़ोस में रहने वाली श्रुति हैं न उसके पति का ट्रांसफर एक हफ्ते पहले दिल्ली हुआ था। आज दोपहर में उसके पति आकाश का फ़ोन हमारे घर के नंबर पर आया था। शायद श्रुति ने अपने पति को बताया होगा तेरे बारे में कि उसके बचपन का दोस्त भी दिल्ली में ही रहता है। श्रुति ने छोटी को फ़ोन करके तेरा पता और फ़ोन नंबर। भी पूछ लिया था और नंबर को अपने मोबाईल में भी सेव करके रखा था। एक्सीडेंट के बाद जब इन लोगों को हॉस्पिटल लाया गया तब आकाश तो होश में था लेकिन श्रुति को बेहद ज्यादा चोट आई थी दिल्ली में कोई और जान पहचान न होने के कारण आकाश ने सीधे हमारे घर फ़ोन किया .

खबर मिलते ही मैं प्रसाद भाई साहब की मदद से सीधे यहाँ हॉस्पिटल आ गई. जल्दबाजी में मै तुझे फ़ोन करना भी भूल गई. बाद में ध्यान आया तो तुझे फ़ोन किया . बेटा बहुत बुरी खबर है. एक्सीडेंट में आकाश तो बच गया लेकिन डॉक्टर श्रुति को बचा नहीं पाए. यह सुन कर मेरा सर घूमने लगा मैं लड़खड़ा कर गिरने ही वाला था की पास खड़े हुए प्रसाद अंकल ने मुझे संभाल लिया मुझे बिलकुल भी विश्वास नही हो पा रहा था कि श्रुति मर चुकी है क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले ही तो मैं उस से मिला था मैंने बौखलाते हुए माँ से कहा,

"माँ तुम क्या बोल रही हो जरूर तुम्हे कोई ग़लतफ़हमी हुई होगी...अभी कुछ देर पहले ही तो..श्रुति.. माँ ने मेरी बात बीच में ही काट ते हुए कहा "नहीं बेटा मुझे कोई ग़लतफहमी नहीं हुई है मैं अपनी आँखों से श्रुति की लाश देख कर आयी हूँ . यह कहते कहते माँ रो पड़ी.मेरी आँखों के सामने अँधेरा सा छा रहा था . मैं सोच सोच के हैरान परेशान था की अगर श्रुति मर चुकी है तो अभी थोड़ी देर पहले मेरे से मिलने कैसे आ सकती है.मैं सदमे में था. उसका व्यंग से मुस्कुराता हुआ चेहरा मेरी आँखों के सामने घूम रहा था.तभी एक हवा का झोंका सा आया और मोंगरे की भीनी भीनी खुशबू मेरे आस पास बिखरने लगी कुछ दूरी पर श्रुति मुस्कुराती हुई खड़ी थी आँखों में आंसू लिए हुए. फिर वो मुझे देख कर अपने हाथ हिलाते हुए मेरी आँखों से ओझल हो गई जैसे कि मुझे फिर मिलने का वादा कर के विदा लेने आयी हो.मुझे समझ नही आ रहा था की ये हकीकत है या मैं कोई सपना देख रहा हूँ. मेरी आँखों से झर झर आंसू बह रहे थे मोगरे की भीनी भीनी खुशबू अब धीरे धीरे हल्की पड़ने लगी थी फिर अंत में बिलकुल ही गायब हो गई मेरे मन में ढेर सारे सवाल छोड़ कर।


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