आखिरी मुलाकात
आखिरी मुलाकात
अंकल के घर में शादी थी। वे बहुत खुश थे। उनकी बिटिया अच्छे घर में ब्याही गई थी। जब भी उनसे मिलती थी तो कहते थे "बेटी तुम कब शादी करोगी?" जीवन में महत्वाकांक्षी होना चाहिए लेकिन घर बसाना भी जरूरी है। ऐसे अकेले जीवन नहीं गुजरता। भरा पूरा परिवार होना चाहिए। मेरे यहां देखो मेरे बेटे बेटियों की शादी हो गई सब अपने अपने जीवन में खुश है, तुम भी मेरी बेटी जैसी हो मैं तुम्हें भी खुश देखना चाहता हूं"। मुझे कभी-कभी कोफ्त होने लगती थी उनकी बातों से। मन करता था उनके मुंह पर बोल दूं कि, अंकल आप कौन होते हो यह फैसला करने वाले कि मैं जब शादी करूंगी तभी खुश रह सकती हूं वरना नहीं। पर मैं अंकल का बहुत सम्मान करती थी और मेरे संस्कार मुझे इस बात की इजाजत नहीं देते हैं कि मैं अपने से बड़ों को इस तरह से जवाब दूं। जब भी वे हमारे घर आते थे तो मैं हमेशा उनके सामने जाने से बचने की कोशिश करती थी इस डर से कि कहीं फिर से शादी पर उपदेश देना न शुरू कर दें। पर अंकल हमेशा कठिन घड़ी में हमारे परिवार के साथ खड़े रहते थे। अपने गांव परिवार से दूर मुंबई जैसे बड़े शहर में अगर हमारा अपना कहने को कोई था तो वह अंकल ही थे। अंकल एक सामाजिक संस्था से भी जुड़े थे मैं भी उसी संस्था जुड़ी थी। इस कारण अक्सर अंकल और मैं संस्था के काम के सिलसिले में बातचीत किया करते थे। अंकल काफी मिलनसार और परोपकारी व्यक्ति थे इस कारण वे लोगों में काफी लोकप्रिय थे। अंकल मेरे पापा के मित्र थे। पर रक्षाबंधन में मेरी मम्मी से राखी बंधवाने आते थे। और हमारे परिवार को अपने परिवार जैसा ही मानते थे। उस दिन अंकल हमारे घर आए थे । मेरी मम्मी से मेरे बारे में ही कुछ बात कर रहे थे। मुझे लगा कि फिर से मेरी शादी के बारे में ही बात कर रहे होंगे इस लिए मैं उनकी बातचीत को पूरी सुने बिना ही अंकल को सिर्फ नमस्ते करके वहां से जाने लगी। अंकल ने मुझे अपने पास बैठने को कहा पर मैं जरूरी काम का बहाना बना कर वहां से चल दी क्योंकि मैं फिर से शादी वाली बात सुनने के मूड में नहीं थी। उनके जाने के बाद मैं ने मम्मी से पूछा अंकल क्या बोल रहे थे। फिर मम्मी के जवाब की प्रतीक्षा किए बिना खुद ही बोल पड़ी , " और क्या बोलेंगे, जरूर मेरी शादी के ही पीछे पड़े होंगे। अंकल मुझे चैन से जीने क्यों नहीं देते।" मेरी आवाज़ में झुंझलाहट सी आ गई। मम्मी ने मुझे टोकते हुए कहा, " जब तुझे कुछ पता ही नहीं है तो पहले पहले क्यों बड़-बड़ कर रही है। वो यहां तेरी शादी की बात करने नहीं आए थे बल्कि यह बताने आए थे कि वे कुछ दिनों के लिए अपने गांव अपने भाई से मिलने जा रहे हैं । बता रहे थे कि उनके भाई की तबीयत खराब है इसलिए उनको देखने जा रहे हैं। बोल रहे थे कि महामारी का दौर चल रहा है इस लिए उनको तुम्हारी चिंता हो रही थी इसलिए जाने से पहले वो तुमसे मिलना चाहते थे क्योंकि वो तुमको अपनी बेटी जैसी ही मानते हैं। बोल रहे थे कि बहुत मेहनती बच्ची है। समाज सेवा के काम करने में जुटी रहती है।पर उसे इस महामारी के समय अपना ध्यान भी रखना पड़ेगा। मम्मी की बात सुनकर मुझे अपने आप पर थोड़ा गुस्सा आया कि मुझे अंकल से मिल लेना चाहिए था। फिर मैंने सोचा चलो कोई बात नहीं जब अपने गांव से वापस आ जाएंगे तब मिल लुंगी।
कुछ दिन बाद मेरे पास अंकल की बेटी का फोन आया," पापा नहीं रहे, गांव में ताऊ जी से मिलने गए थे वहीं उनकी भी तबीयत खराब हो गई थी। कोरोना पाज़िटिव हो गए थे। ताऊ जी तो ठीक हो गये है पर पापा... बोलते बोलते अंकल की बेटी फफक फफक कर रोने लगी...मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं, उसको चुप कराऊं या अपने मन को समझाऊँ कि जो भी वह बोल रही है वह सच नहीं हो सकता। अकंल का चेहरा मेरी आंखों के सामने घूम रहा था। अभी कुछ दिन पहले ही तो हमारे घर आए थे। अच्छे खासे लग रहे थे । फिर ऐसे कैसे हो सकता है.. मुझे हल्का सा चक्कर आ गया.. मुझे याद नहीं कि अंकल कि बेटी ने और क्या-क्या कहा और कब उसने फोन काटा। उसका पहला वाक्य ही मेरे दिमाग में घूम रहा था.."पापा नहीं रहे"..जिसको मेरा मन स्वीकार करने को ही तैयार नहीं था। अभी तो अंकल से मिलना उनसे बात करना बाकी था। उनसे बहुत कुछ सीखना बाकी था। उस दिन अंकल से मिली क्यों नहीं मैं.. उनकी बात क्यों नहीं सुनी मैं ने .. वो मुझे अपने पास बैठने के लिए बुलाते ही रह गए....मैं क्यों नहीं बैठी उनके पास.. आखिर वो मुझसे क्या कहना चाहते थे...अगर थोड़ी देर उनके पास बैठ जाती तो क्या हो जाता .. मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था। मेरे आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। लग रहा था जैसे अंकल कह रहे हैं कि तुम मुझ से दूर भाग रही थी न अब देखो मैं खुद तुमसे कितनी दूर चला गया। बाद में पता चला कि अंकल के अंतिम संस्कार में उनके बच्चे भी नहीं जा पाए थे। क्योंकि अंकल की मृत्यु हास्पिटल में इलाज के दौरान हो गई थी और हास्पिटल वालों ने परिजनों को शव ले जाने की अनुमति नहीं दी। कैसी विडम्बना थी अंकल के साथ। सारी जिंदगी परोपकार करते रहे और अंत में एक सम्मान जनक अंतिम विदाई भी ईश्वर ने उनके नसीब में नहीं लिखी। जिंदगी भर उनके आस पास लोगों का जमघट लगा रहा पर आखिरी समय में कोई उनकी अरथी को कंधा देने तक न जा सका। आखिर भगवान ने उनके साथ ऐसा क्यों किया। मैं खुद भी उन्हें आखिरी मुलाकात तक न दे सकी। मुझे निजी तौर पर ऐसा महसूस हो रहा था जैसे अंकल ने मेरा गुस्सा सब पर उतार दिया कि यह लड़की मुझ से नहीं मिली तो जाओ अब मैं आखिरी तक किसी से नहीं मिलूंगा ।ऐसा लग रहा था अचानक सर से एक ऐसा सुरक्षा कवच हटा लिया गया है जिसकी अहमियत मुझे पहले समझ नहीं आ रही थी। मैंने मन में निश्चय किया कि अब आगे से मैं ऐसा नहीं करूंगी। अपनी परवाह करने वाले लोगों को अनसुना नहीं करूंगी उनको अनदेखा नहीं करूंगी। जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है कब किस से कौन सी मुलाकात आखिरी हो।