Raj K Kange

Tragedy Others

2.6  

Raj K Kange

Tragedy Others

वास्तविक स्वतंत्रता

वास्तविक स्वतंत्रता

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हाल ही में हमने हमारे देश की स्वतंत्रता की ७४ वी वर्षगांठ मनाई है। देखते ही देखते हमारी आज़ादी अब बूढ़ी होने लगी है। लेकिन क्या हम वास्तव में स्वतंत्र है? क्या देश में स्वतंत्रता का लाभ सबको समान रूप से मिल पाया है ? क्या महिलायें अपने आप को पूर्णतः स्वतंत्र महसूस कर सकती हैं ? क्या आज हमारे देश के लोग ऊंच नीच और जात पात की बेड़ियों से स्वतंत्र हो चुके है ? सभी प्रश्नो का केवल एक ही उत्तर है , "नहीं " . हमारे देश में आज भी महिलाएं स्वतंत्र रूप से बिना किसी डर, भय और आशंका के घर से बाहर नहीं निकल सकतीं। कहने को तो हमारे देश की महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में बहुत आगे बढ़ चुकीं हैं और दुनिया के सामने अपनी काबिलियत का लोहा भी मनवा चुकी हैं परन्तु पुरुष वादी मानसिकता अभी भी उनके प्रति नहीं बदली है जो आज भी कहीं न कहीं महिलाओ को कमज़ोर और उपभोग की वस्तु ही सिद्ध करने में लगी रहती है। छोटी छोटी बच्चियों के साथ आये दिन घटने वाली बलात्कार की घटनाओ से यह स्पष्ट हो जाता है कि नवरात्री में बालिकाओ को देवी के रूप में पूजा जाना सिर्फ एक दिखावे के अलावा अब कुछ नहीं रह गया है। सिर्फ एक दिन देवी के रूप में पूजी जाने वाली बच्चियां कब किसी राक्षस प्रवृति के पुरुष की वासना की भेंट चढ़ जाएंगी ये कोई नहीं जनता। हर पांच में से तीन बच्चियां कहीं न कहीं बलात्कार का शिकार हो जाती हैं ऊपर से हमारे समाज का एक दोहरा चरित्र यह भी देखने को मिलता है कि वह पीड़ित को ही दोषी बना देता है और अपराधी बिना किसी डर के बेख़ौफ़ घूमता है। दूसरी तरफ हमारे देश की कानून और न्याय व्यवस्था इतनी लचर है कि न्याय की रह देखते देखते कई बार पीड़ित दुनिया से ही चले जाते हैं।

सन २०१२ के बहुचर्चित निर्भया मामले में भी कुछ लोगों के द्वारा यह कहा जा रहा था कि ग़लती उस लड़की की थी क्योंकि वह रात को घर से बाहर घूम रही थी। लेकिन क्या वास्तव में उस लड़की के साथ घटी घटना का कारण यही था ? क्या ऐसा कहने वालो की नज़रों में उन अपराधियों की कोई गलती नहीं थी ? क्या किसी लड़की को स्वतंत्र रूप से किसी भी समय अपनी मर्जी से घूमने फिरने का अधिकार नहीं हैं? बलात्कार की घटनाये तो दिन या रात देख कर नहीं घटती। इनके पीछे का असली कारण तो कुछ अमानवीय चरित्र वाले लोग है जो इंसान के रूप में घूमते भेड़िये है जो घात लगा कर बैठे रहते हैं किसी न किसी मासूम बच्ची या महिला को अपना शिकार बनाने के लिए। लेकिन फिर भी दोष महिलाओ को ही दिया जाता है उन्हें ही दुनिया भर की नसीहतें दी जाती है.ऐसे माहौल में यह कैसे कहा जा सकता है की सभी को समान रूप से स्वतंत्रता प्राप्त हो चुकी है। साथ ही हमारे देश में पिछड़े तबके के लोगों के साथ जिस प्रकार का व्यवहार होता आया है और जो आज भी हो रहा है वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। कभी छुआछूत के नाम पर कभी गौ रक्षा के नाम पर आये दिन अमानवीय घटनायें घटतीं ही रहती है। जो अन्याय सदियों पहले उनके साथ होता था अगर वह आज के आधुनकि युग में भी हो रहा है तो क्या वे कह सकते हैं. कि वे स्वतंत्र हो चुके हैं। हालाँकि समय के साथ परिस्थितियों में काफी कुछ सुधार भी हो चुका है लेकिन आज भी कहीं न कहीं कुछ लोगों की ओछी मानसिकता का शिकार पिछड़े तबके के लोगों को होना पड़ता है। आदिवासियों की भी कमोबेश यही स्थिति है। उन्हें आज धीरे धीरे उनकी परंपरा संस्कृति से दूर किया जा रहा है। सदियों से जंगलों में शांति पूर्ण तरीके से बसे आदिवासियों को कभी जानवरो के संरक्षण के नाम पर , कभी किसी सरकारी या निजी परियोजनाओं के नाम पर उनके गांवो से हटने को मजबूर किया जाता है। आखिर क्या देश की स्वतंत्रता आंदोलन में उनका सहयोग नहीं था। इतिहास गवाह है की देश की स्वतंत्रता की लड़ाई की सर्व प्रथम चिंगारी आदिवासियों द्वारा ही भड़काई गई थी जो धीरे धीरे पूरे देश में फ़ैल गई। लेकिन उन्हें क्या पता था की जो संघर्ष वे उस समय कर रहे थे उस से भी कहीं ज्यादा संघर्ष उन्हें भविष्य में करना पड़ेगा। क्या वे लोग यह कह सकते है कि वे पूर्णतः स्वतंत्र है अपनी सदियों की धरोहर को सहेज कर रखने के लिए , प्रकृति के बीच अपनी परम्परा रीती रिवाजों के साथ बिना किसी हस्तछेप के शांति पूर्ण जीवन जीने के लिए ? आज भी स्वतंत्रता का लाभ सभी लोगो को सामान रूप से नहीं मिल पाया है। जिन शोषण और अत्याचारों से स्वतंत्रता मिलनी चाहिए थी वह अभी भी मौजूद है फर्क सिर्फ इतना ही है कि पहले शोषणकर्ता विदेशी थे अब अपने ही देश के हैं। जिस दिन हमारे देश की महिलाएं सुनसान सड़क में भी स्वयं को सुरक्षित महसूस करने लगेंगी, अपने जीवन के फैसले स्वयं ले सकेंगी , जिस दिन बेटी के माता पिता को उसके दहेज़ की चिंता नहीं करनी पड़ेगी , जिस दिन समाज के वंचित तबके के लोगो के साथ, आदिवासियों के साथ, अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार होने बंद हो जायेंगे , जिस दिन हमारे देश में धर्म के नाम पर दंगे होने बंद हो जायेंगे उस दिन हम कह सकेंगे कि अब हम पूर्णतः स्वतंत्र हो चुके है क्योंकि स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ केवल भौगौलिक स्वतंत्रता ही नहीं बल्कि आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक , सांस्कृतिक और धार्मिक स्वतंत्रता भी है।



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