मोबाइल
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पुष्पा मोबाइल हमारे जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।परंतु हम भारतीय उसे अति होने तक इस्तेमाल करते हैं।जिसके कारण वह हमारे जीवन के लिए दुखदाई भी बन गया है।पुष्पा ने कहा मोबाइल हमारे जीवन के लिए वरदान है। मोबाइल गागर में सागर है। उसके बावजूद बच्चा बूढ़ा या जवान मोबाइल को इस प्रकार इस्तेमाल करता है। जिससे आजकल के रिश्ते समाप्त होते जा रहे हैं।आज की तारीख में कौन किसकी डोरबेल बजाता है।आजकल कौन किसके पास कितना जाता है।आज व्यक्ति के पास समय होने के बावजूद उसके पास बिल्कुल भी समय नहीं है। जैसे अभी मौके पर एक बात याद आ गई। आंटी को घर के अंदर आकर बात करने का बिल्कुल समय नहीं है। परंतु वह घर के दरवाजे पर 1 घंटे से अम्मा से बातें कर रही है।अब आप समझ रहे होंगे समय होने के बावजूद आज एक दूसरे से मिलने का समय किसी के पास नहीं है।
पुष्पा ने कहा हमारे हरिद्वार में एक परिवार था।वह आज भी है उनकी दो बेटियां थी लता और गीता दोनों पढ़ने में बेहतरीन प्रदर्शन कर रही थी। उनके पिताजी संतोष कुमार साइकिल की पंचर लगाने वाली दुकान चलाते थे।उनकी दोनों बेटियां पढ़ने में होशियार थी।लता उनकी बड़ी बेटी थी जबकि गीता उनकी छोटी बेटी थी।दोनों में बहुत प्यार था वे दोनों जब भी घर से बाहर जाती।अपने पापा से मिले बना नहीं जाती थी।जैसे कि पहले बताया गया वे दोनों ही अपनी-अपनी कक्षाओं में अव्वल आती थी।जबकि लता घर में अपनी छोटी बहन गीता की मदद करती थी।वह अक्सर गीता को पढ़ाई में मदद करती थी।एक दिन जब पापा ने उनके परीक्षा परिणाम देखें। तो इनकी खुशी का ठिकाना ना रहा। जिसके फलस्वरूप उनके पिताजी ने लता को मोबाइल दिया।जब से लता के हाथ में मोबाइल आया। तब से उसने अपनी छोटी बहन गीता को पढ़ाना छोड़ दिया। अब लता का धीरे धीरे पढ़ाई से मन हट रहा था। वह अब गीता के पूछने पर भी उसे कुछ भी बताने को तैयार नहीं थी।
अब गीता को पढ़ाने में लता रुचि नहीं ले रही थी।जब गीता लता से कुछ पूछती वह बिना बोले ही गीता की पुस्तक को वहां से हटा देती।मोबाइल आने के पश्चात लता के व्यवहार में परिवर्तन हो रहे थे। जिसकी कल्पना ना उसकी छोटी बहन गीता ने की थी। ना ही उसके पिताजी ने।गीता महसूस कर रही थी जब से मोबाइल आया है।तब से लता दीदी अपने मोबाइल को सब कुछ मानती हैं।जिसके कारण आज लता और गीता दोनों बहनों में बातचीत भी लंबे अरसे से बंद हो गई है।लता अक्सर अपने पापा से प्रतिदिन रात को देर रात तक जागने के लिए डांट भी खाती है। उसके पश्चात भी लता चिकना घड़ा बनी हुई थी। कहने का तात्पर्य लता की रूचि पढ़ाई में दिन प्रतिदिन कम होती जा रही थी।उसका पूरा ध्यान मोबाइल पर ही लगा रहता था।जहां लता मोबाइल आने से पहले अपने पिताजी से विद्यालय जाते समय विद्यालय से वापस आते समय स्नेह पूर्वक मिलती थी।जिसके कारण पिताजी की दिन भर की थकान मिट जाती थी। जिसके फलस्वरुप पिताजी भी यह देखकर खुश होते थे।उनकी दोनों बेटियां कितनी होनहार हैं। दोनों बेटियां मिलनसार है। दोनों बेटियां घर परिवार में मिल जुलकर रहती है।सबसे बड़ी बात वह प्रतिदिन आते और जाते समय अपने पिताजी से मिलकर उन्हे जो सुकून देती है। उससे उनके पिताजी की छाती भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की तरह 56 इंच की हो जाती है।परंतु जब से पिताजी ने लता को मोबाइल दिया है।
तब से उसके स्वभाव में इतना बदलाव आ गया है। वह अब पिताजी को विद्यालय जाते समय और घर वापस आकर भी नजर अंदाज कर देती है। मोबाइल वास्तव में घर परिवार के संबंध में दरार डाल रहा है।परंतु इसका मीठा जहर रूपी इस्तेमाल इसका पता भी नहीं चलने दे रहा है। मोबाइल हालांकि परिवार में दरार ही नहीं डाल रहा। अपितु वह बहुत से विद्यार्थियों के भविष्य को भी अंधकार की चादर में समेट रहा है।जैसे लता के हाथों में जब से मोबाइल आया है। तब से उसका पढ़ाई में ध्यान कम ही लग रहा है। तब से वह अपनी छोटी बहन गीता से भी दूर हो गई है। परंतु पता नहीं कब और कैसे लता को कुछ समय पश्चात यह एहसास होने लगा।मोबाइल के कारण वह दिन गवा रही है।मोबाइल के कारण वह अपने ही कमरे में स्वयं से नजर बंद हो गई है।मोबाइल के कारण ही अपने पापा से उसकी दूरियां बनती चली जा रही हैं।मोबाइल के कारण ही आज वह अलग-थलग पड़ गई है।अब उसे अपनी भूल का अहसास हो रहा है।कहते हैं जब जागो तब सवेरा इसी कहावत को लता चरितार्थ करते हुए।लता ने घर से विद्यालय जाते समय आज पिताजी को नजरअंदाज ना करके।
उनमें फिर से खुशी का संचार भर दिया है। उसने मोबाइल अपने पिताजी के हाथों में थमा दिया। जिसके कारण लता और पिताजी की आंखों में एक नई ऊर्जा भर गई। एक नई चमक पैदा हो गई। एक नई उमंग भर गई।आज लता ने वह बेड़ियां काट डाली। जो मोबाइल के द्वारा उसे लग गई थी।आज उसने अंबुजा सीमेंट की वह दीवार भी तोड़ दी।जो कहते थे यह अंबुजा सीमेंट की दीवार है टूटेगी नहींपरंतु लता के द्वारा पिताजी को मोबाइल वापस देने पर वह संबंधों में खड़ी अंबुजा सीमेंट की दीवार भी ढह गई।यह मोबाइल से दूर जाने का ही परिणाम है कि लता ने ना सिर्फ पिताजी की बल्कि अपनी छोटी बहन गीता से भी गले मिलना बातचीत करना और हाथ में हाथ डालकर विद्यालय जाने की जो खुशी दोबारा प्राप्त की है। वह मोबाइल से कहीं बढ़कर है। पुष्पा ने कहा यदि अपना भविष्य बनाना चाहते हो।तो मोबाइल को एक सीमित समय तक इस्तेमाल करें। मोबाइल वास्तव में वरदान है। यदि उससे आप सबको सीखने को मिल रहा है।
यदि 24 * 7 मोबाइल की आदत आपको पड़ चुकी है। तो यह समझ ले मोबाइल आपके भविष्य के लिए हानिकारक है। मोबाइल की लत आपके सुनहरे भविष्य को बर्बाद कर देगी।कहते हैं अति का भला न बोलना अति की भली न चूप अति का भला न बरसना अति की भली न धूप।इस रंग बदलती दुनिया में कुछ ऐसा असर होने लगा है।इंसान पागल और मोबाइल स्मार्ट होने लगा है।अपने मोबाइल से न दूर रहिए ना ही उससे प्रेम कीजिए।मोबाइल का इतना ही इस्तेमाल कीजिए।जिससे घर के पेड़ पौधे मुरझा ना जाएं। घर के रिश्ते टूटने ना लगे। आप उसके आदि ना होने लगे। मोबाइल जहां वरदान है वहां अभिशाप भी है।इसका इस्तेमाल एक सीमित समय और बहुत ही सोच समझ कर करें।
