मनीप्लांट
मनीप्लांट
राजा मुँह लटकाए स्कूल से लौटा था। अभी अपने घर के अंदर जाने ही वाला था कि देखा माली दीनू काका कोई बेल लगा रहे थे।
"ये आप क्या लगा रहे हैं काका?" उसने पास जाकर पूछा।
"ये मनीप्लांट की बेल है बिटवा, इसे मैं यहाँ लगा दे रहा हूँ। तुमने कहा था न तुम्हें अपना एक पौधा चाहिए तो देखो मैं ले आया पर अब ये तुम्हारी जिम्मेदारी... तुम अच्छे से इसका ख्याल रखना समय पर पानी और खाद देते रहना। बड़ी मुश्किल से चुरा कर लाया हूँ मिश्रा जी के बगीचे से।" दीनू काका पौधे को लगाते हुए बोले।
"चुरा कर क्यूँ? वो अंकल तो बहुत अच्छे हैं आप मांगते तो वो कभी मना नहीं करते। काका क्या आपको मालूम नहीं चोरी करनी बुरी बात होती है।"
"अरे सब मालूम है बिटवा पर शायद तुम्हें ये मालूम नहीं कि मनीप्लांट चोरी का हो तो वो और अधिक काम करता है।"
"ये क्या काम करता है काका?" राजा की जिज्ञासा बढ़ गयी थी।
"बेटा लोग इसे इसलिए लगाते हैं और इसका ख्याल रखते हैं ताकि उनके घरों में पैसे की कभी कोई कमी न हो।" अब तू जा कपड़े बदल के खाना खा ले अभी-अभी स्कूल से आया है न?"
राजा फिर उदास हो गया। उसे याद हो आया कि उसे घर जाना है।किसी तरह मुँह लटकाए अभी भीतर आया ही था कि मम्मी की आवाज आई
"राजा आ गया बेटा... आज रिपोर्ट कार्ड मिलनी थी न, कहाँ है जल्दी दिखाओ?"
"जी मम्मी...।" कहकर उसने बैग से रिपोर्ट कार्ड निकाली और मम्मी की ओर बढ़ा दिया।
"ये क्या है राजा, मैथ्स में सिर्फ नाइंटीसेवन और बाकी के तीन नम्बर कहाँ गए।" वो गुस्से से बोली।
"एक् क्वेश्चन गलत हो गया था मम्मी पर देखो मैंने हिंदी में पूरे नम्बर लाये हैं टीचर ने वैरी गुड भी कहा।"
"ये हिंदी में पूरे मार्क्स लाकर खुश होने की इतनी जरूरत नहीं है मुझे साइंस और मैथ्स में हमेशा तुम्हारे पूरे नंबर चाहिए समझे! मैं देख रही हूँ आजकल पढ़ाई में तुम्हारा मन ही नहीं लगता अच्छा.. क्लास में तुम ही टॉप किए हो ना?"
"मम्मी...मम्मी इस बार भी वो बंटी फर्स्ट आ गया।"
"वो उस मास्टरनी का बेटा...! जाने आजकल तुम्हें क्या होता जा रहा। धीरे-धीरे तुम सबसे पीछे जा रहे हो। सीखो उस बच्चे से कुछ ! माँ-बाप किसी के पास वक़्त नहीं उसे पढ़ाने के लिए लेकिन फिर भी वो बच्चा खुद मेहनत करता रहता है और एक तुम हो जिसके पीछे मैं सुबह से शाम तक लगी रहती हूँ फिर भी तुम्हरा ये हाल है ! अगर मैं छोड़ दूँ तो तुम तो पास भी नहीं कर पाओगे।"
कहकर वो गुस्से से चली गयी। कुछ देर बाद वो कपड़े बदल कर उसके पास पहुँचा।
"मम्मी भूख लगी है?"
"हाँ वो तो लगेगी ही! पढ़ो या न पढ़ो खाना तो पसंद का मिल ही जाता है न।"
कहते हुए वो खाना निकालने लगी।
राजा को लग रहा था जैसे अब उसकी भूख ही मरती जा रही है पर जब थाली में अपने पसंद के मटर पनीर देखे तो वो फिर से खुश हो गया। अभी खाना शुरू ही किया था कि मम्मी फिर से शुरू हो गयी
"सोचा था फर्स्ट आएगा इसलिए सारे तुम्हारे पसंद के खाने बनाये थे ! हम चाहे जितना परवाह कर लें तुम्हारी पर तुम्हें तो हमारी बिल्कुल परवाह नहीं।" वो फिर से उदास हो गयी।
अपनी मम्मी की ये उदासी उसे बिल्कुल पसंद नहीं थी
"मम्मी मैं आगे से और मेहनत करूँगा।" वो धीरे से बोला पर माँ संतुष्ट नहीं दिखी पर अब चुप हो गयी थी।
अब मम्मी उसे और ध्यान देकर पढ़ाती थी। उसके टीवी देखने के वक़्त में से आधा घण्टा काट कर अब मैथ्स को दिया जाता था। उसने भी खूब मेहनत की मैथ्स के सारे चेप्टर की बहुत अच्छे से तैयारी की। ये उसका फर्स्ट टर्म था मम्मी को पूरी उम्मीद थी कि इस बार मेरे बेटे को कोई हरा नहीं सकता।
पर जब रिजल्ट आया तो सब चोंक गए। इस बार तो मैथ्स में पूरे पाँच नम्बर कम थे। मम्मी ने क्लास टीचर को फोन करके पूछा आखिर राजा ने गलती कहाँ की है और टीचर का उत्तर सुनकर उसका दिमाग खराब हो गया। ये वही सवाल थे जो उसने कई बार उसे समझाया था। वो गुस्से से भर उठी
"मैं समझ गयी तू बिल्कुल नालायक है, तेरे पीछे मैं अपना सिर भी फोड़ लूँ ना तब भी तू कुछ नहीं करने वाला। कहाँ तेरे फर्स्ट आने के सपने देखती थी अरे तू तो टॉप थ्री में भी नहीं है। मैं और तेरे पापा क्या-क्या सपने देखते हैं तेरे लिए... पर तुझे तो हमारी परवाह ही नहीं !" वो कहती जा रही थी पर अब राजा को उनकी ये बातें उतनी ही बुरी लगती थी जितने मैथ्स के फार्मूले। वो धीरे से वहाँ से निकल कर बाहर आ गया। देखा तो मनीप्लांट की बेल बदरंग लग रही थी उसके पत्ते पीले नजर आ रहे थे।
"काका ये मनीप्लांट बीमार कैसे हो गयी मैं तो सुबह-शाम इसे भर-भर कर पानी और खाद देता हूँ।" उसने आश्चर्यचकित होकर पूछा।
"ये इसलिए बेटा क्योंकि तुम इसे जरूरत से अधिक पानी और खाद दे देते हो इससे इसकी जड़ें कमजोर हो गयी है।"
"ऐसा भी होता है क्या? मैं तो सोचता था ज्यादा देने से ये जल्दी बड़ी और घनी हो जाएगी और हमारे घर में बहुत सारे पैसे आएँगे।"
"ऐसा नहीं होता है बिटवा अति किसी भी चीज की बुरी ही होती है। कल से इसे ध्यान से पानी देना और अभी कुछ दिनों तक खाद देने की आवश्यकता नहीं है।" कहकर काका अपने काम में लग गए।
शाम को मम्मी पापा को बता रही थी कैसे अब धीरे-धीरे राजा पढ़ायी में कमजोर होने लगा है अब तो वो आसान सवालों का जबाब भी गलत कर देता है। एक ही बेटा है अगर पढ़-लिख कर किसी अच्छे पोस्ट पर नहीं पहुँचा तो उनके बुढ़ापे का क्या होगा। पापा ने उसे प्यार से अपने पास बुलाया और बोले
"राजा तुम जानते हो तुम्हारी मम्मी आजकल कितना परेशान रहती है। तुम अच्छे से पढ़ाई क्यूँ नहीं करते बेटा?"
वो चुपचाप सिर झुकाए खड़ा रहा। तो मम्मी गुस्से से बोली"ऐसे चुप रहने से जिंदगी नहीं कटने वाली, ज़िंदगी जीने के लिए पैसे की जरूरत होती है समझे ! और ये पैसे यूँ ही नहीं आते इसके पीछे मेहनत करनी पड़ती है। क्या-क्या नहीं करते हम तुम्हारे लिए, और एक तुम हो...!"
"ज्यादा पैसे लाने के लिए मैं भी मेहनत करता था मम्मी रोज सुबह-शाम मनीप्लांट को भर-भरकर खाद और पानी दिया पर वो तो बीमार हो गयी।"
"हम यहाँ मनीप्लांट की नहीं तुम्हारी बात कर रहे हैं।" पापा बोले।
"पापा आपलोग भी मुझे इसलिए बड़ा कर रहे हैं न कि मैं बड़ा होकर बहुत सारे पैसे कमाऊं... आप भी मुझे कहीं से चुरा कर लाये थे क्या?"
" ये क्या बोल रहे हो बेटा...तुम नहीं जानते आज की दुनिया में पैसे हमारे लिए बहुत जरूरी हैं इसके बिना ज़िंदगी की कोई भी खुशी नहीं मिल सकती।" पापा ने समझाया।
"पापा हमें जिसके कारण ज्यादा पैसे मिलने वाले हैं उसे जरूरत से ज्यादा खाद और पानी नहीं देनी चाहिए इससे वो बीमार हो जाता है... अति किसी भी चीज की बुरी होती है।" वो मासूमियत से बोल कर चला गया।
"देखा, हम क्या बात कर रहे हैं और ये अब भी उसी मनीप्लांट के पीछे पड़ा है, न जाने किस मिट्टी का बना है ये !" मम्मी का गुस्सा अब और भी बढ़ चुका था।
"दोष मिट्टी का नहीं है सीमा... बस मनीप्लांट में खाद और पानी ज़्यादा हो जा रहा है। उतना ही दो जितने की जरूरत है नहीं तो जड़ें कमजोर हो जाएगी।" पापा ने कहा तो मम्मी हैरानी से उन्हें देखने लगी।