Sukant Kumar

Inspirational Thriller

4  

Sukant Kumar

Inspirational Thriller

मनचले

मनचले

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कान और कंधे के बीच फ़ोन चिपकाए, सुरेशवा अपना मोटरसाइकिल ४० के स्पीड पर बिना हेलमेट चला जा रहा था। अचानक एक टेम्पो वाला साइड काटा, काहे की एक ठो पैसेंजर चिलाया - “रोको बे! अब का अपने घर ले के जावेगा!” पीछे से सुरेशवा ठुकते-ठुकते बचा। फ़ोन नीचे गिर गया था। स्मार्ट फ़ोन था, सुरेशवा का कलेजा धक से रह गया। बाइक छोड़ फ़ोन पर लपका। 

उसके पीछे से दु ठो हवलदार जो अभी तक बतियाते हुए आ रहे थे। दौड़ कर घटना स्थल पर पहुँचे। सुरेशवा फ़ोन उठा कर देख रहा था कहीं स्क्रीन फुट तो नहीं गया? पुलिस देख कर सोचा बाइक उठाने आ रहे होंगे। मदद करेंगे। दुनों आये, बाइकवा उठाया। सुरेशवा के मन में विचार आया कि धन्यवाद ज्ञापन कर दे। सो, गया और बोला - “धन्यवाद!”

एक हवलदार बोला - “बबूवा थोड़ा हमको भी थैंक यु बोलने का मौक़ा दीजिए। निकालिए दक्षिणा के १००१ टका।”

सुरेशवा ताव में आया, पूछा - “काहे ?”

दुसरका हवलदार बोला - “५०० हेलमेट के और ५०० फ़ोन पर बतियाने के और एक टका सर्विस टैक्स।” और अपने मारे जोक पर एकदम रिंकिया के पापा जैसा हंस पड़ा।

दु-पाँच ठो लोग इधर उधर से उधार की ज़िंदगी जीने वाले घटनास्थल के चारों ओर गोला बनाने लगे थे। सुरेशवा के मुँह में भी ज़बान तो थी। सो, गिड़गिड़ाया - “हवलदार साहब हमारा घर तो यहीं दूसरी गली छोड़ कर है। बस निकले थे कुछ सामान लेने, इतने में माँ का कॉल आ गया। ऊपर से गिर भी गये देखिए घुटना छिल गया है। फ़ोन का स्क्रीन भी फुट गया है। जाने दीजिए सर!”

दुसरका को थोड़ी दया आयी, काहे की उसकी आखों में आँखें डाल कर बोल रहा था, सुरेशवा। पर पहलका पर कोई असर नय पड़ा। ऊ बोला - “देता है कि दें दु डंडा।” हवा में एक दु बार डंडा भांजा।

सुरेशवा अपनी सुर्ख़ आखों से दया-पात्र बनने हेतु पहलका की तरह मुड़ा। हाथ जोड़ा।

आस-पास के लोग भी सुरेशवा के तरफ़ से हुवा-हुवा करने लगे थे। लग रहा था मामला सस्ते में निपट जाएगा। इतने में एक ठो पुलिस वैन भीड़ के बीच अपने दो काबिल जाँबाज़ अफ़सर फँसे देख रुक गई। बढ़का साहेब उतरा। माजरा के तह तक जाँच पड़ताल हुआ। दूनों हवलदार बढ़-चढ़ कर सुरेवा का गुनाह गिनवा रहे थे। ई भी बोल दिये कि लड़का पर जवानी सवार है, अनबसनाब बकता है।

बड़का साहेब बड़ा खुश हुआ। सुरेशवा को पास बुलाया। बिना हेलमेट के सुरेशवा को बाइक पर चढ़वाया। फिर अपना मोबाइल चमकाया। सेल्फ़ी कैमरा निकाल कर सुरेशवा से बोला - “बेटाजी, स्माइल!”

सुरेशवा को साहेब के जोक पर एक दमे हंसी नय आया। ग़ुस्सा में दांत पीस कर रह गया। दांत पीसने की प्रक्रिया में उसकी बछें खिल गई। कैमरा बोला - “क्लिक”, और सुरेशवा की सुअर जैसी सकल पर बड़का बाबू खी-खी कर के हँस दिये। सुरेशवा को आया ग़ुस्सा। चाभी लगले था, सो सेल्फ-स्टार्ट मारा। भगने ही वाला था कि बढ़का साहेब चाभी नोच लिस, खिसियानी बिल्ली जैसन। बोला - “जाता कहाँ है? सरकार के नाम पर कुछ दे के जा रे बाबा।”

सुरेशवा को फिर आया ग़ुस्सा। पता नय पिछले पाँच-दस मिनट में कित्ते बार आ चुका था उसको ग़ुस्सा। दांत पिसते-पिसते छिला हुआ घुटना से ज़्यादा तो दाँते दर्द करने लगा था। मन एकदम झल्ला चुका था। बुद्धि ब्लास्ट होने के कगार पर थी। सो, जेब से १००० रुपया निकाल और दे दिया बढ़का साहेब को। साहेब ने बदले में स्माइल दिया और चल दिये जीप की ओर। सुरेशवा पीछे से बोला - “साहेब! रसीद?”

साहेब भौंचक। ई का माँग लिस बुड़बक? आज तक तो कौनो हिम्मत नय किस था। इसके पिछवाड़े में इतना मांस कहाँ से आ गया?

बोला - “बेटा! रसीद बनवाने के ६००० लगेंगे।”

सुरेशवा पूछा - “काहे?”

अब साहेब का बारी था दांत पीसने का। बताया - “काहे की सरकारी रेट यही है।”

सुरेशवा फिर पूछ दिस - “तो आपका हज़ारे का औक़ात है का?”

साहेब भांजा डंडा। पब्लिक ने बजायी ताली, एक ने मारी सिटी। साहेब की हो गई बेइज़्ज़ती। डंडा चलाने का वक़्त चल बसा था। अबकी डंडा दिखाया तो पब्लिक कूटेगी। समर्थन तो सुरेशवा जीतये चुका था, साहेब का औक़ात नाप के।

साहेब चिलाया - “ज़ुबान लड़ता है, इत्ता हिम्मत!”

सुरेशवा मुसकाया। उसका बस चलता तो टूटलका फ़ोन निकाल कर एक-दु ठो सेल्फ़ी वोहो निकालता। पर उसका था मोटरसाइकिल। साहेब का खून जल कर भाप हो गया। ऐसन लगा कान धूँया फेंक रहा हो।

सुरेशवा को मुस्काने में इत्ते आनंद आ रहा था कि दु मिनट तक मुसकाते रहा। फिर बोला - “साहेब! ज़बान कहाँ लड़ा रहे हैं। आप जो माँगे हम दिये, अब जो हमरा बनता है, दे दीजिए।”

साहेब को लगा झटका। बोले - “नय देंगे रसीद। का कर लेगा?”

सुरेशवा था भीतरघुन्ना। बोला - “एफ़.आई.आर. कर देंगे।”

पब्लिक से एक ठो कोई सिटी मार दिया। और बेज्जती साहेब से सही नहीं जा रही थी। पीछे से जाँबाज़ अफ़सर आये बचाव के ख़ातिर। साहेब के कान में फूस-फुसाये - “साहेब! निकाल लो। नय तो पब्लिक कूटेगी।”

साहेब को और बेइज़्ज़ती वाली फीलिंग आयी। बोले - “इसका गाड़ी जप्त कर लो। चढ़ाओ जीप पर। अब जा कर आर.टी.ओ. से छुड़वाना। रसीदवा भी वहीं से कटवा लेना।” सुरेशवा को धमकाए।

सुरेशवा को लगा ई तो दांव उल्टा पड़ गया। उसकी हवा टाइट हो गई। इत्ता में फ़ोन पर वीडियो निकालते हुए एक लड़का सामने आया, सुरेशवा को पास जा कर बोला - “भैया! मस्त बोले। पूरा रिकॉर्डिंग कर दिये हैं। डाल दीजिए सोशल मीडिया पर, बहुते लाइक मिलेगा।”

पहलका हवलदार सुन लिया। रॉकेट के स्पीड के पहुँचा साहेब के पास, और मामले की गंभीरता को गम्भीरतापूर्वक साहेब को बताया। दूसरका बोला - “जाने दो साहेब। बड़का बेइज़्ज़ती होगा अगर वायरल हो गया तो।”

साहेब का चेहरा सफ़ेद पड़ गया, जैसे साँप सूँघ गया हो। पब्लिक अब खी-खी करने लगी थी। सुरेशवा फिर मुसकाया। फिर घुटना से ज़्यादा जबड़ा दुखने लगा था।

साहेब का फ़ोन बजा - “जी सर। जी सर। अभी आया।” हज़ार रुपया जेब में दबाया और साहेब निकल लिया।


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