मन की शुद्धि
मन की शुद्धि
छंगानी जी पूजा-पाठ और हवन वगैरह बहुत किया करते हैं। अपने घर ही नहीं आस-पड़ोस और सार्वजनिक तौर पर भी बढचढकर हिस्सा लेते हैं। पैसे से इंजीनियर हैं। सादगी में ही रहते हैं उनकी पत्नी और बच्चे भी उसी संस्कार को पालन करते हैं। जहाँ भी जाते पूजा-पाठ के साथ-साथ कुछ प्रवचन भी देना उनके स्वभाव में है। जैसे- सादगीपूर्ण जीवन जीना चाहिए, भजन कीर्तन करने से मन का विकार दूर होता है वगैरह-वगैरह।
इसीप्रकार एक घर में पूजा हो रही थी छंगानी जी ही सर्वेसर्वा थे। यानी पूजा वही करवा रहे थे। महिला पुरुष सभी वहां मौजूद थे।
अब छंगानी जी का प्रवचन शुरू हो गया।
"देखो! सादगी ही सच्चा संस्कार है।"
सभी ने सहमति जताई "हूं।
"अब महिलाएं दुनिया भर का श्रृंगार करती हैं। इतना करने की क्या आवश्यकता है ?" महिलाओं की ओर नजर घुमाते हुए छंगानी जी बोले।
महिलाएं थोड़ी छेंप सी गईं।
बीच-बीच में मंत्र उच्चारण और तिलक चंदन भी देवी देवताओं को अर्पण किया जा रहा था।
"अब देवी जी को रोली,कुमकुम चढ़ाईये।"
चढायी गयी।
"अब माता जी को सभी श्रृंगार की सामग्री और चुनरी चढ़ाएं।"
तभी वहां बैठी एक 13 वर्ष की बच्ची ने कहा "अंकल जी ! सभी महिलाओं को आप देवी कहते हैं। है न ?"
"हाँ बेटा! सभी महिलाएं देवी समान हैं और आप भी।" छंगानी जी ने हामी भरते हुए जवाब दिया।
"अंकल जी ! यदि देवी माँ को श्रृंगार की सामग्री पसंद है तो महिलाओं को इससे दूर रहने की क्या आवश्यकता है ?" बच्ची की बात सुनते ही छंगानी जी बगलें झांकने लगे।
ये सुनते ही महिलाओं की आंखों में हर्ष की चमक आ गई। बच्ची ने सबकी आंखें जो खोल दी थी। बच्ची की बातों का समर्थन करते हुए महिलाएं आपस में खुसर-फुसर करने लगीं।
एक ने "पाखंडी है। केवल औरतों पर नजर घुमाता रहता है।"
दूसरे ने-"और नहीं तो क्या ? भजन-कीर्तन से अपने मन का विकार तो दूर किया नहीं दूसरे को प्रवचन देता है। ढोंगी कहीं का।"
तीसरी ने-"वही तो। मन यदि शुद्ध हो तो विकार प्रवेश ही नहीं करेगा।"