मन की बात साझा करें
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बहुत रो रही थी निशा उस रात को.. सब कुछ बिल्कुल ठीक था.. उसका और गौरव का रिश्ता भी.. दोनों की शादी को सात साल हो गए थे.. बहुत चाहते थे दोनों एक दूसरे को.. निशा और गौरव का एक बेटा भी था पांच साल का.. सबकुछ था दोनों के रिश्ते में प्यार, विश्वास, स्नेह, त्याग, समर्पित.. फिर भी जैसे घर मे चार बर्तन हो तो टकराते हैं.. वैसे ही दोनों की भी कभी कभी तू-तू मैं - मैं हो जाती थी.. निशा मन में कोई बात नही रख पाती थी और गौरव हर छोटी बात पर भड़क जाता था.. तकरीबन बीस दिन पहले भी ऐसा ही कुछ हुआ.. गौरव ने निशा को कुछ काम कहा पर उनका बेटा बार बार निशा से उसे सुलाने का कह रहा था.. तो निशा वो भूल के पहले उनके बेटे को सुलाने लगी.. बस फिर क्या था गौरव ने उस दिन थोड़ी पी रखी थी.. यू गौरव बहुत कम पीता था.. निशा ये बात जानती थी.. पर जो गौरव ने उस दिन किया वो निशा ने कभी सोचा भी नहीं था.. गौरव ने पहले निशा को कहा कि "उसका काम क्यू नहीं किया?". निशा बोली "कौन सा काम..?" बस गौरव भड़क गया.. कहने लगा "सारे घर का काम याद रहता है तुझे बस मेरा ही नहीं.." निशा ने कहा "क्या बदतमीजी है ये.. कैसे बात कर रहे हो.?". तो गौरव कहने लगा "तू मुझे तमीज सिखाएगी..?' और उसने निशा को गाली दी.. तो निशा ने भी कहा "मैं पलट के गाली दूँगी तो क्या इज्जत रह जाएगी तुम्हारी.". बस इतना गौरव को सहन नहीं हुआ कहने लगा "आज तुझे तेरी औकात बताता हूँ.." और उसने निशा को खूब मारा.. हाथ से बेल्ट से.. उसका मुंह सूजा डाला.. उस रात निशा ने भी इतनी मार खाने के बाद गौरव को कहा कि मुझे तलाक चाहिए नहीं रहना तुम्हारे साथ.. पर जब अगले दिन गौरव का नशा उतरा तो बड़ो के समझाने पर दोनों ने सुलह कर ली.. आठ दस दिनों में दोनों वो बात भूल भी गए थे.. पर एक कसक थी जो निशा को सताती.. अगर गौरव ने दुबारा ऐसा किया तो. जब जब निशा की चोट दर्द की टीस मारती.. उसका दिल भी दुखता.. की गौरव ने इस कदर कैसे मारा उसे.. वो जानती थी कि गौरव उसे बेइंतहा प्यार करता है फिर प्यार दिखाने का यह तरीका कौनसा था.. कई बार सोचती गौरव से पूछे वो क्या गौरव ने सही किया लाख निशा ने गुस्से में कुछ कहा हो पर ऐसे हाथ उठाकर क्या सही किया उसने.. जिन हाथों से सात वचन की कसमें खायी सात फेरे लिए.. उन्ही हाथो से उसे जानवरो की तरह मारने में उसका कलेजा नहीं पसीजा फिर सोचती बात बढेगी.. उसे गौरव से कोई शिकायत नहीं थी.. ख़ुद से थी कि उसकी कहा कमी रह गयी.. बस ये बात जरूर सताती थी कि उस बात के लिए गौरव ने दिल से कभी माफी नहीं मांगी.. तो उसे लगता गलती निशा की ही थी.. वर्ना तो गौरव कब का माफी मांग चुका होता.. आज वही चोट का दर्द उठा तो निशा के सामने वो पल फिर से घूमने लगे और आंसू बहने लगे.. यही सोचते सोचते उसने दूसरी ओर करवट ली तो गौरव जागा हुआ था.. उसके आँख में आँसू देख बोला.. "क्या हुआ तबियत ठीक नहीं है क्या.. सर दुख रहा हे क्या.. निशा क्या हुआ.." निशा ने कस कर गौरव को गले लगा लिया और कहने लगी "अब दुबारा तो ऐसे नहीं मारोगे ना.." गौरव बहुत शर्मिंदा था आँख में आँसू थे उसके भी.. पलके चुकाए निशा से बोला "बहुत शर्मिंदा हूं उस रात से बस माफी किस मुह से मांगता यह समझ नहीं पाया.. मुझे लगा मेरी निशा ने मुझे हमेशा संभाला है.. थोड़ा सा गुमराह हो गया था उस रात तो वो समझ गयी होगी.. मुझे माफ करना निशा जो गलती उस रात हुई वो कभी नहीं होगी.." निशा बोली "मुझे भी माफ करना गौरव मैं भी ज्यादा ही बोल गयी थी.. अब आगे से नहीं होगा ऐसा.." दोनों एक दूसरे के आंसू पोंछते हुए फिर अपनी मोहब्बत का इजहार करते हुए सो जाते हैं..तो दोस्तों मन मे बातें रखने से उलझने, गलतफहमी बढ़ती है.. बात करने से सुलझती हे.. तो अपने हमसफर से अपने दिल की हर खुशी परेशानी बांटे.. तो ये जीवन का मधुबन सुंदर बहुत सुन्दर हो जाएगा..

