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Neha yadav

Romance Tragedy

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Neha yadav

Romance Tragedy

धरा में ठंडक सा धीरज

धरा में ठंडक सा धीरज

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उस नीली शर्ट का वो टूटा सफ़ेद बटन आज भी उस शर्ट की जेब में ही रखा था। फ़िर उसे छूकर धीरज को धरा के स्पर्श का एहसास हुआ ओर नम आंखों से उसने फ़िर उसे अलमारी मे रख दिया। चाय का कप लिए बालकनी में जा बैठा। चाय हल्की गरम थी तो उसे ठन्डा होने रख आंख बन्द कर ली।

मन्जरी आँखें सुनहरे रन्ग के बाल गुलाबी गालों जैसे रंग के सूट में कोई हूर से कम नहीं लग रही थी ये लड़की धरा चतुर्वेदी।

लाॅ कॉलेज का वो पहला दिन आज भी याद हे धीरज को। शर्मीला सा दिखने वाला धीरज, बहुत कम बोलने वाला धीरज, पहली ही झलक में अपना दिल हार बैठा था उस धरा चतुर्वेदी पर जितना सरल धीरज था, धरा बिल्कुल उसकी उल्टी। धीरज शीतल चन्द्र्मा जैसा तो धरा तेज सूरज जैसी।

पढाई में दोनों बहुत होशियार थे। धरा की चन्चलता धीरज को उसकी तरफ़ ओर ढकेल देती। एक बार फ़्रेन्डशीप डे के दिन धीरज ने धरा से कहा क्या आप मेरी फ़्रेन्ड बनेगी। पहली बार में तो वो बोली - "ये नहीं हो सकता ना" धरा ने कहा तुम तो एकदम ठन्डी चाय हो तुमसे दोस्ती। घाटे का सौदा ना हो। तुम तो किसी से ज्यादा बोलते भी नहींं हो। ना ही कही घुमने जाते हो दोस्तों के साथ ओर तो ओर पूरे कॉलेज की लड़कियों में ये धरा चतुर्वेदी ही मिली तुम्हें दोस्ती के लिए।

खैर आज दिन अच्छा है खुश हो जाओ मुझे ये दोस्ती मन्जूर हे। फ़िर क्या रोज लाईब्रेरी में दोनों साथ पढ़ते।

अब धीरज भी धरा के रन्ग में ढलने लगा था जोर जोर से बोलना केन्टीन में दोस्तों के साथ मस्ती करना धरा भी ये सब देख कर खुश होती थी। धीरज पर तो मोहब्बत का रंग था पर धरा वो तो बस ये सोच कर ही खुश थी कि ये ठन्डी चाय अब गरम होने लगी है।

दोनों की वकालत कम्पलीट हो गई खुश थे दोनों काफ़ी। पन्द्रह दिन बाद कॉलेज से डीग्री मिलना थी। वो दिन भी आ गया। सुबह सुबह धीरज के फोन की घंटी बजी हेलो। हाय ठन्डी चाय।ना ना अब तो गरम हो गई हे। ईधर धीरज बोला धरा की बच्ची। बोलो क्या हुआ। अरे यार, वो मेरी गाड़ी की चाबी गुम गई।

मुझे डीग्री लेने साथ ले चलना कॉलेज। ओके मेडम आप दस बजे तैयार रहना ये चाय आ जायेगी। धरा ने कहा दस बजे क्यूँ कॉलेज तो एक बजे जाना हे। तो धीरज बोला कुछ बात करना है तुमसे।

वो बोली- ओके, अब मैं रेडी होती हूँ बाय।

आज तो धीरज उड़ रहा था। आज वो अपने मन की बात धरा को जो कहना थी जो वो पिछले तीन साल से कभी कह ना पाया। फ़टाफ़ट वो भी आज उसकी पसन्द की नीली शर्ट पहन के रेडी हो गया। उसने धरा को उसके घर से लिया ओर फ़िर एक केफ़े पहुँचे दोनों। दोनों ने कॉफ़ी पी फ़िर धरा बोली बोलो क्या बात करना थी। तो धीरज ने अपनी जेब से अंगूठी निकाली ओर धरा के आगे सर झुका कर कहा धरा "विल यू मैरी मी।

"आय लव यू सो मच। धरा की आन्खे खुली की खुली रह गई।वो बोली धीरज मैंने तुंम्हे कभी ऐसी नजरों से देखा नहीं यार।

खैर सोचते है अभी कॉलेज चलो देर हो रही हे। इधर धरा की खामोशी से धीरज का दिल बैठा जा रहा था के बाईक का बेलेन्स बिगडा ओर एक कार ने उन्हें ठोक दिया। धीरज को तो मामूली चोट थी पर धरा के पाँव से बहुत खून बह चुका था धीरज ने धरा को उठाया ओर ऑटो के लिए धरा को गोद में लिए सड़क पर भटकता।

अस्पताल के बेड पर लेटाते हुए धरा के बाल धीरज की शर्ट के बटन मे उलझ गए थे। धरा तो बेहोश थी पर फ़िर भी बाल खींचने से उसे दर्द ना हो तो धीरज ने बटन तोड़ जेब में डाल दिया। इलाज के बाद जब धरा को होश आया तो वो अस्पताल मे सब सामान फ़ेंकने लगी गुस्से में थी। काफ़ी पूछने पर बोली ये सब धीरज के कारण आज अगर उसके पास कार होती तो ऐसा ना होता।

धीरज को उसका जवाब मिल गया था। आज सात साल बाद जब धरा वर्मा का तलाक का केस उसके पास आया था तो फ़िर वो जख्म हरा हुआ था। उसने केस लड़ने ना लड़ने का जवाब अभी नहीं दिया था। आंख मसली ओर देखा तो दो घंटे बीत गए बैठे बैठे ओर चाय ठन्डी जरा ज्यदा ही हो गई थी। मैंने ऑफ़िस जाकर केस के लिए हाँ भर दी ओर दिन में धरा को बुलवाया।

आओ धरा ये सब क्यूँ कैसे धीरज। वो दरअसल (ये क्या ये आवाज इतनी भुझी सी खामोश सी क्यूँ हो गई। खुद को सम्भाला मैंने ) गुड़िया के पापा (गुड़िया धरा की 6 साल की बेटी) से मुझे तलाक चाहिए। मुझे जैसा लड़का चाहिए था शादी के लिए मेरे माँ पापा ने बिल्कुल वैसा ही ढूंढा था राजीव को मेरे लिये घर में आधा दर्जन कार एक दर्जन नौकर। सारे ऐशो आराम बोले तो रानी वाला राज। पर वो राजीव वो तो एक अय्याश। आवारा जानवर निकला धोकेबाज निकला उसने मुझे सिर्फ़ एक सजावट का सामान समझा ओर कुछ नहीं। भावनाओं का रिश्ता कभी नहीं बना हमारा हाँ शारिरीक बनता था जब वो चाहता मेरी तो चाहत पहली रात को ही खत्म हो गई थी जब मैने राजीव को कहा अभी मैं तैयार नहींं हूँ हम एक दुजे को समझे फ़िर।

कुछ हो तो उसने मेरे साथ जबर्दस्ती की ओर फ़िर बार बार की। मेरी हँसी खुशी कुछ मायने नहीं थी उसके लिए। सिर्फ़ अपना स्टेट्स हाई प्रोफ़ाईल पार्टी, मीटीन्ग्स, कलाईन्ट ये सब मायने रखता था। हद तो तब हुई जब एक रात कोई फ़ोरेन क्लाईन्ट घर मीटीन्ग करने आये। ओर मुझे देख डील के बदले उन्होने मुझे माँगा ओर राजीव ने हामी भर दी।

बस वो बातें सुन मैंने घर छोड़ा ओर तलाक लेने का सोचा।

ये कहते हुए धरा की अश्रुधारा भी बह चुकी थी। धरा बोली धीरज मुझे तलाक तो मिल जायेगा ना। फ़ीस कितनी लोगे तुम। मैंने कहा क्या यार धरा।फ़ीस वीस बाद मे। पहले ये ठंडी चाय के हाथ की बनी गर्म चाय पीओ। धरा का केस काफ़ी मजबूत था उसे तलाक मिल ग्या। केस की आखिर सुनवाई ओर कागजी खानापुर्ती के लिए कोर्ट गया। धरा मुझे बार बार हाथ जोडे धन्यवाद दे रही थी ओर मैने कहा नहीं मेड़म धन्यवाद नहीं। फ़ीस चाहिए बोलने लगी बोलो धीरज कितनी फ़ीस हुई। मैंने कहा आज भी वही सवाल हे धरा। विल यू मैरी मी। वो बोली क्या। तुमने शदी नहीं की क्या अब तक। पर क्यू।लेकिन्व उसे याद आ गया था की सात साल पहले भी उससे धीरज ने यही पूछा था। पर वो।गुडिया के साथ। वो तुम्हारी फ़ेमीली। मैंने कहा हाँ या ना तो बोली हाँ पर कार नहीं हो तो चलेगा पर मुझे चाय आज भी गरम ही पसन्द है। 


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