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Neha yadav

Abstract

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Neha yadav

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बेवाफ़ से वफ़ा भी मोहब्बत हे

बेवाफ़ से वफ़ा भी मोहब्बत हे

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बड़ी चहल पहल थी आज हमारे घर के आंगन में। हमारी बिटिया खुश्बू की सगाई जो होने जा रहीं थी आज। रौनक भी अपनी दीदी की सगाई की तैयारी में एक सप्ताह से लगा हुआ था। बस शाम के सात बजने वाले थे और लड़के वाले भी आने वाले थे। सारी व्यवस्थाओं पर निगाह मरते हुए मैं भी तैयार होने अपने कमरे में गयी। वहा देखा तो खुश्बू और रौनक के पापा कुर्सी पर गहरी चिंता में बैठे थे। मैंने कहा क्या हुआ क्या सोच रहे हो आज बस सगाई ही हैं लाडो की बिदाई नहीं। तो बोले सुधा।

मैं सोच रहा हूँ अगर तुम ना होती तो आज मैं ये दिन कभी ना देख पाता अपनी खुश्बू की सगाई। रौनक को ऐसे बड़ा होते हुए। बहुत आभारी हूँ सुधा तुम्हारा जो समय रहते तुमने हमारा रिश्ता बचाया और हमारे बच्चो का भविष्य। मैंने कहा क्या खुश्बू के पापा आप भी किन बातों को लेकर बैठ गए। वो बाते कब की मैं भूल चुकी हूँ। छोड़ो सब और तैयार हो जाओ लड़के वाले आते ही होंगे। बड़े अच्छे से सगाई का कार्यक्रम निपट गया समय के साथ सब काम सही से हो जाए तो कितना अच्छा होता है।

सब अपने अपने कमरे मे सोने जा चुके थे मेहमान भी तकरीबन सब चले गए थे बस कुछ लोग थे जो रुके वो भी हाल में सो गए थे। मैं भी काफी थक गयी थी आज। बस जाकर लेटी और सोचा आज सात आठ दिन बाद चैन की नींद सोऊगी। दो घंटे की सगाई के लिए पूरे सात आठ दिन से लगे थे सब। पर लेटते ही नींद छू हो गयी जैसे। खुशबू के पापा की शाम की बात घूम रही थी दिमाग मे। मुझे आज भी याद है वो रात जब मेरी खुश्बू आठ बरस की थी और रौनक पांच बरस का। बच्चो को खाना खिलाकर मैं सुला चुकी थी खुश्बू के पापा नीचे टीवी देख रहे थे उन्हे आवाज लगा रही थी बार बार के आ जाइए तो हम भी खाना खाए। वो उनके पसंद का कुछ प्रोग्राम देख रहे थे। शादी को तब 10 साल हो गए थे। पर हम सदा शाम का खाना साथ खाते थे। बड़ा प्यार करते थे राकेश मुझसे।कभी कुछ नहीं छुपाते थे। पलकों पर रखते थे।

सारी सुख सुविधा थी घर में। माँ बाउजी सब साथ ही रहते थे। दो बार खाना गरम कर चुकी थी। तभी राकेश के फोन की घंटी बजी मैंने उठाया तो सामने कोई लड़की थी बोली राकेश मैंने जैसे ही हैलो कहा आवाज सुन फ़ोन काट दिया। रात के तकरीबन 11.15 बजे थे। सन् 2006 की बात है तब मोबाइल नए नए आए थे हमारे घर में सिर्फ़ राकेश के पास ही था मोबाइल। 11.30 बजे राकेश ऊपर आए और खाना खाया हम दोनों ने। उस रात तो मैंने राकेश को कुछ ना कहा। सोचा मैं ऐसा क्यू सोच रही हूँ मुझे इतना प्यार तो करते हैं राकेश। पर पता नहीं क्यू तब से एक अजीब सी दूरी लगने लगी राकेश से। एक रात 3 बजे जब मैंने करवट बदली तो राकेश पलंग पर नहीं थे।

उठकर तो कमरे मे ही नहीं थे।  नीचे जाने लगी तो हाल खड़े किसी से बात कर रहे थे मैंने बात तो नहीं सुनी पर हाव भाव से प्रतीत हो रहा था कोई लड़की ही हैं।  सुबह मैंने राकेश से कहा रात मे कहा बात कर रहे थे आप। वो बोले कही तो नहीं। मैंने राकेश झूठ मत बोलो ना। अगर मैंने अपनी आँखों से नहीं देखा होता तो तुम्हारी बात मान भी लेती। ऐसा कहा बस मैंने तो चिड गए। फिर कहने लगे बस यही बचा हे हमारे जीवन में अब तुम शक करोगी मुझपे। मैंने कहा राकेश अभी तक नहीं करती थी पर अब शक नहीं यकीन है मुझे। अगर तुम सच्चे होते तो मुझसे झूठ ना कहते कि किसी से बात नहीं कर रखा था। और अभी जैसे तुमने प्रतिक्रिया दी वैसी ना देते।

खेर तुम्हारी जिंदगी हैं बिगाड़ना थी सो बिगाड़ ली तुमने। कहकर मैं कमरे से बाहर आ गयी। वो भी आज बिना बोले दफ्तर चले गए। सारा दिन सोचती रही कि कहा कमी रही थी हमारे रिश्ते मे जिस रिश्ते पर मुझे गर्व था आज उसी रिश्ते के कारण मैं टूट गयी थी। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करू। अपनी पीड़ा किसे कहूं। किसे कहती अपने माँ बाप को तो शादी के 10 साल बाद ऐसी बात उन्हे कहकर उनके गिनती के दिन खराब नहीं करना चाहती थी। इनके माँ बाउजी को भी कैसे हिम्मत करके बताती क्यूंकि उन्होने मुझे कभी बहू नहीं माना सदा बेटी जैसा प्यार वही आज़ादी दी। राकेश पर भी बहुत गर्व था उन दोनों को दोनों में से किसी को छींक भी आती तो सारा घर सर पर उठा लेते थे राकेश। उनकी छवि गिरते हुए ना देख पाती। तो फिर सोचा मेरा दर्द है मुझे इसका स्वयं ही सामना कर के उभरना होगा।

पूरा दिन बहुत सर दुखा आज बच्चों को पढ़ा भी ना पायी। शाम को जब राकेश आए तो समझ तो गए थे कि मैं सुबह की बात भूली नहीं हूं। क्यूंकि पूरे परिवार के सामने मैं रोज जैसी थी बच्चे जागे तब तक राकेश के साथ भी वैसी ही थी पर सबके सोने के बाद और अकेले मैं राकेश से बिल्कुल कटी कटी। बच्चो को इस बात की भनक भी नहीं लगनी चाहिए इस बात से बहुत डरती थी। अब ये माहोल रोज का हो गया था बच्चे साथ हो तब हंसना मुस्कुराना खुशी के गीत सुनना और अकेले में दर्द भरे गाने खुद कम सुनना राकेश को सुनाना ज्यादा रहता था। तकरीबन एक महीना ऐसे ही गुजर गया राकेश ने बहुत कोशिश की मेरे चहरे पर पुरानी चमक लाने की पर ठेस लगे दिल को संभालना इतना आसान कहां था। फिर एक दिन राकेश ने मुझसे सीधे सीधे पूछा सुधा क्या चल रहा है तुम्हारे मन में क्या चाहती हो तुम।? मैंने कहा अभी मेरे चाहने ना चाहने से कुछ फरक पड़ता हे क्या। बोले सुधा मैं प्यार करता हूं तुमसे। मैंने कहा मुझसे या मुझसे भी। ?? बोले क्या बकवास है तुम क्यू ये शक का बीज लिए बैठी हो। मैंने कहा राकेश शक होता तो कब का भूल जाती। मेरा भरोसा टूटा है।

जितना तुम्हारे प्यार पे भरोसा था। उतना तुमने मुझे ये यकीन दिला दिया है कि तुम्हारी जिंदगी में मेरे अलावा और कोई भी हे। तो कहने लगे ऐसा नहीं है। मैंने कहा झूठ मत बोलो अपनी गलती अगर मान लोगे तो एक मौका दे सकती हूँ।तो कहने लगे मैं थोड़ा सा भटक गया था पर अब ऐसा नहीं है। मैने कहा तुम दूध पीते बच्चे हो जो भटक गए। दो बच्चों के बाप और 10 साल से एक शादीशुदा मर्द हो।. फिर कहने लगे मैं बदल गया हूँ सुधा।

मैंने कहा वाक़यी बदल गए राकेश जिस राकेश के संग मैं ब्याही थी वो झूठे नहीं थे। मुझे कुछ नहीं सुनना हे तुमसे। पर अगर सच में तुम सुधारना चाहते हो। तो सिर्फ खुश्बू, रौनक और तुम्हारे माँ बाउजी के खातिर एक मौका दे रही हूँ। मैं तुम्हें साल भर का समय देती हूँ अगर साल भर मैं तुमने साबित करा की तुम्हारा उस लड़की से कोई वास्ता नहीं है तुम अब भी मुझे चाहते हो। तुम्हें अपने बच्चो की बूढ़े माँ बाप की चिंता हे। ऐसा एहसास दिलाना होगा तुम्हें मुझे। और अगर मुझे लगा कि तुम नहीं बदले तो मैं तुम्हें तलाक दे दूंगी। फैसला तुम्हारे हाथ मे है। फिर धीरे धीरे राकेश मे पहले वाले बदलाव आने लगे वो समय से दफ्तर जाते शाम को भी कभी लेट ना होते।

बच्चों के साथ वही हसी मुस्कुराहट। हर 8-10 दिन मे मुझे बच्चो को कही बहार ले जाना। कभी कभी बच्चो के लिए तो कभी मेरे लिए उपहार लाना। मैं भी मन मे एक संतोष महसूस करने लगी थी एक दिन शाम के 7.30 बज गए पर राकेश नहीं आए थे अब तक घर रोज 6.15 तक आ जाते थे। दफ्तर फ़ोन किया तो पता लगा टाईम से ही निकले हैं। फिर अचानक 8.00 बजे फोन की घंटी बजी। मैंने फोन उठाया तो सिटी हॉस्पिटल से कॉल था। बोले राकेश जी के घर से बोल रहे हे।

आप तुरंत हॉस्पिटल आ जाइये। मैं तुरंत वहा पहुंची। देखा तो राकेश आई. सी. यू मे थे घर आते वक़्त एक ट्रक ने उनकी कार को टक्कर मारी और उनकी कार पलट गयी थी। जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे राकेश बहुत पछतावा हो रहा था मुझे की तलाक की बात क्यू कही मैने कही चिंता मैं तो गाड़ी नहीं चला रहे थे।सोचते सोचते हॉस्पिटल की बेंच पर ही सो गयी। सुबह राकेश को होश आया तो रो रोकर मुझसे माफी मांग रहे थे। कहने लगे सुधा मुझे माफ कर दो मैं भटक गया था। मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। तुम बहुत महान हो। तुम्हें सब पता होने के बाद भी किसी को तुमने कुछ ना कहा। तुमने कैसे एक बेवफ़ा से वफा करी हे। ?? आज जब मैं जिंदगी और मौत से लड़ रहा तब सिर्फ मेरा परिवार मेरे साथ है ना ही कोई बाहर वाला। मैंने कहा राकेश दिमाग पे जोर मत डालो। माफ करने का हक़ सिर्फ ऊपर वाले का हे।

और तुम सही सलामत हो यही उसकी माफी हे। अब चिंता मत करो आराम करो। वो पल आखिरी पल था जब हम दोनों ने उस मुद्दे पर बात करी। आज खुश्बू की बिदाई का सोच शायद राकेश पुरानी बातों मे खो गए हो। पर मैंने राकेश की कुछ समय की बेवफाई बड़ी वफा से निभाई और हमारा रिश्ता बच गया। मैं भी कहा पुरानी कड़वी यादो मे खो गयी। सुबह के छः बज गए और आज की रात सो ही ना पायीं।  


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