ममता (एक अहसास)
ममता (एक अहसास)
"हाय री मीना, जरा सुनियो, किसी बच्चे की रोने की आवाज आ रही है। " चांदनी इधर उधर नजरें घुमाकर देखने लगी।
"लगा तो मुझे भी, लेकिन इस कूड़े के ढेर में थोड़ी ना कोई बच्चा होगा। कान बज रहे है हमारे। अब जल्दी पैर बड़ा, वरना बधाई कोई और ले जायेगा। मुये सब हमारे पेट पर लात मारने को तैयार बैठे है।" मीना तेज कदमों से आगे की तरफ बढ़ी, अपने बराबर में चांदनी को ना पाकर पीछे की तरफ मुड़ी, देखा वो उस कूड़े के ढेर में उस आवाज की तरफ बढ़ती चली जा रही थी। मीना भी भागकर उसके पीछे हो चली।
"अरी दैया, इस पेटी से ये आवाज आ रही है। देखना , ..."चांदनी ने उस पेटी को खोला तो उस नवजात बच्ची को देखकर ऐसा लगा, जैसे उस कीचड़ (कूड़े के ढेर)के बीच कोई कमल खिला है। चांदनी ने उस बच्ची को उस पेटी से निकाला, गोद में लेकर उसे निहारती है, एक अजीब सी कशिश थी उन टिमटिमाती हुई छोटी सी आंखों में।
"ऐ चांदनी, तू कुछ उल्टा सीधा मत सोच हां, हम किन्नर है, ऐसे अनाथ बच्चे पालना हमारा काम नहीं है। जब इसको इसके अपने कूड़े के ढेर में छोड़ गये तो हमारी क्या वकत? चल, वो सामने उस बस्ती में इसी पेटी में इसे चुपचाप छोड़ देते है, बाकी तो ऊपर वाला मालिक है इसका। चल...। "कहते हुये मीना ने पेटी उठा ली।
"मीना , क्या पता ऊपर वाले ने हमें ही चुना हो इसके लिये, तू देख ना कितनी खूबसूरत है ये, ऐसी बच्ची को कूड़े के ढेर में डालने वालों का दिल ना पसीजा होगा। देखना , कैसे मुट्ठी में मेरी उंगली दबाकर बैठी है। "कहते हुये चांदनी ने उसका माथा चूम लिया।
"क्या ? बावलों की तरह बात मत कर। हम इन सब चीजों के लिये नहीं है, तू भूल मत हमारे मां बाप भी हमें छोड़ गये थे, फिर भी हम जिंदा है ना। इसका भी कोई रास्ता इसे मिल जायेगा। अब जल्दी कर , किसी ने देख लिया तो हमें बच्चा चोर ना समझ लें। "मीना चांदनी को एक बार फिर समझाने लगी। चांदनी अपनी उंगली उस बच्ची के मुंह में देकर उसे निहार रही थी, उसकी आंखों में जैसे मातृत्व का अहसास आंसू बनकर छलकने लगा।
"नहीं , मीना मैं पालूंगी इसे, ईश्वर ने हमें किन्नर बनाकर भेजा तो क्या हुआ? जज़्बात तो हमारे अंदर भी हैं ना। आज भी बुरा लगता है ना ये सोचकर कि हम कुछ भी थे हमारे मां बाप के लिये तो हम उनकी औलाद थे, उन्होंने हमें क्यों छोड़ा दर दर भटकने को। हम तो लाचार थे , तो क्या उनकी भावनायें भी लाचार थी? हम अपना गुजरा वक्त तो ठीक नहीं कर सकते, लेकिन इस बच्ची के अच्छे वक्त की कहानी लिख सकते हैं। "कहते हुये वापस जाने के लिये मुड़ गयी, मीना ने फिर उसका हाथ पकड़ कर कहा "एक बार फिर सोच ले चांदनी। आसान नहीं है ये सब। "
"छोड़ ना मीना , हमारी जिंदगी कब आसान थी? लेकिन अपनी बच्ची की जिंदगी को मैं आसान बनाऊंगी। "कहते हुये चांदनी जैसे अपने जीने के मकसद को साथ लिये चल दी। यद्यपि मीना चांदनी के फैसले से नाखुश थी, लेकिन चांदनी की आंखों के मातृत्व ने उसे भी बांध लिया वो भी उसके पीछे चल दी।
दोस्तों, कहते है अहसास किसी भी बंदिश के मोहताज नहीं होते। मातृत्व का अहसास तो एक स्वतंत्र अहसास है जो, किसी सामाजिक भेद का मोहताज नहीं है। हमारे समाज में कई बार सामाजिक तौर पर सक्षम लोग ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं जो इंसानियत के अहसासों को शर्मिंदा कर दे। कई बार चांदनी जैसे लोग हमें उन अहसासों के समाज में जिंदा होने का अहसास दिलाते है। आपकी क्या राय है इस बारे में अवश्य बताइयेगा।