मज़हबी कश्मकश
मज़हबी कश्मकश
घरवालों की ज़िद को लेकर आज सरफ़राज़ के दिल में एक बवंडर उठा था मन ही मन आहत होते सोच रहा था अल्लाह नेक बंदों का इम्तहान क्यूँ लेता है।
निकाह के पाँच साल बाद भी निखत की गोद खाली थी अम्मी अबू के दिल का हाल समझ सकता हूँ, पोते पोतियों का मुँह देखने की उम्मीद में मेरी दूसरी शादी कराने की ज़िद लिए बैठे है। पर निखत से भी बेइंतेहाँ प्यार करता हूँ, और शबनम को हमेशा छोटी बहन माना कभी साली तक नहीं माना कैसे ये गुनाह कर लूँ शबनम से दूसरा निकाह सोच भी नहीं सकता, निखत ने मेरी ज़िंदगी प्यार से भर दी है हर सुख दुःख में चट्टान की तरह मेरे साथ खड़ी रही, और एक पढ़ा लिखा इंसान हूँ तो इतना तो समझता हूँ एक औरत हर दुःख सह सकती है अपना सबकुछ बाँट सकती है पर अपना शौहर नहीं।
चाहे कुछ भी हो जाए निखत का दिल दुखाने का गुनाह कभी नहीं करूँगा जैसी अल्लाह की मर्ज़ी अगर बच्चे का सुख लकीरों में नहीं तो ना सही।
आज निखत सुबह से ही रुंआसी हो गई थी तो सरफ़राज़ ने कहा चलो निखत कहीं घूमने चलते है समुन्दर किनारे टहलकर आते है, निखत को आज कुछ अच्छा नहीं लग रहा था तो झट से तैयार हो गई दोनों चुप-चाप अपने-अपने दिमाग के तूफ़ान को संभाले चल रहे थे थोड़ा ही दूर पहुँचे होंगे की एक चट्टान के पीछे से किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी तो दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा, और बिना कुछ बोले दोनों के कदम उस आवाज़ की ओर चल पड़े।
चट्टान के पीछे जाकर देखा तो एक बच्चा नन्हे हाथ पैर हिलाते चद्दर में लपेटे पड़ा था शायद भूख के मारे रो रहा था, दोनों ने आस-पास देखा पर कोई नज़र नहीं आ रहा था, मतलब दोनों समझ गए की कोई अपने नाजायज़ बच्चे को यहाँ छोड़कर चला गया था निखत ने आस भरी नज़रों से सरफ़राज़ की तरफ़ देखा, सरफ़राज़ निखत के अंदर छुपी ममता को समझ गया, आँखों के इशारे से हामी भर दी की निखत ने झट से बच्चे को गोद में उठा लिया और सालों से दिल में दबी ममता बच्चे पर लूटाती रही और बोली मालिक तू बड़ा रहम दिल है आज ढेर सारी ख़ुशियों से मेरा दामन भर दिया। सरफ़राज़ ने एक बार चाहा की बच्चे को पुलिस स्टेशन या किसी अनाथालय छोड़ दे पर निखत की ममता के आगे चुप रहा और सोचा क्या पता शायद इसी बच्चे के लिए मालिक ने हमें आज तक बेऔलाद रखा हो।
दोनों खुश होते हुए घर आए घरवाले को सारी बात बताई पर सब असमंजस में थे क्या बोले कुछ समझ नहीं आ रहा था, सबने अच्छे से बच्चे को देखा लड़का था पर ये क्या गले में काले धागे में ओम लिखा पैंडेन्ट दिखा तो सरफ़राज़ की अम्मी बोली ओह तो मतलब किसी हिन्दू की औलाद है.! अभी के अभी इसे पुलिस थाने दे आ या किसी यतीम खाने पता नहीं कहाँ से उठा लाए हो।
पर अबू ने अम्मी को बीच में ही टोका चुप कर ये क्या मज़हबी बकवास लिए बैठ गई ज़रा निखत की खुशी के बारे में सोच और ख़ुशनसीब बंदों को अल्लाह चुनता है ऐसी बातों के लिए किसी के ठुकराए हुए को अपनाना पाक काम है। और अबू ने मोहर लगा दी सहमति की तो सरफ़राज़ और निखत के चेहरे खिल उठे अबू के मुँह से एक नाम निकला "कबीर" और अबू बोले आज से कबीर इस घर का हिस्सा और इस घर का वारिसदार है सरफ़राज़ और निखत ने मक्का मदीना की तस्वीर के आगे बच्चे को सुलाया और कसम खाई की इस बच्चे को एक हिन्दू रीति रिवाज़ से पाल पोस कर बड़ा करेंगे और वो सारे संस्कार देंगे जो एक हिन्दू परिवार में अपने बच्चों को दिए जाते है, घर में कुछ हिन्दू रिवाजों का भी पालन करने लगे, पर आसान नहीं था बिरादरी का सामना करना किसी ने कुछ बोला तो किसी ने कुछ, पर सरफ़राज़ और निखत अपने इरादों में अडिग रहे।
बड़े लाड़ और जतन से दोनों कबीर को पाल रहें थे देखते ही देखते कबीर दस साल का हो गया, आज कबीर का यज्ञोपवीत संस्कार करने जा रहे है, धीरे-धीरे सारी बिरादरी ने अपना लिया था तो सबको दावत देकर बुलाया गया था।
सारी विधि और दावत के बाद मौलवी साहब ने सरफ़राज़ और निखत का सम्मान किया और कहा इन दोनों ने अपने अपने नाम को गौरवान्वित किया है निखत ने मज़हब को बचाया है ओर सरफ़राज़ ने उसे गौरव बख़्शा है मज़हब हमें ये सिखाता है।
किसी भी धार्मिक ग्रंथ में कहीं भी ये नहीं लिखा की धर्म के नाम पर लड़ो, खून बहाओ हर ग्रंथ अमन और शांति का संदेश देता है, भाईचारे की भावना जगाता है सरफ़राज़ और निखत ने समाज में एक उदाहरण बिठाया है इसी नक़्श ए कदम पर चलकर ही हम समाज में अमन ओर भाईचारे से साथ मिलकर देश को उपर उठा सकते है।
और सबने तालियाँ बजाकर सरफ़राज़ और निखत को बधाई दी ओर मौलवी साहब की बात को कान पकड़ कर सर माथे पर चढ़ाया।।
