मजदूरनी
मजदूरनी
कपूर साहब ने गार्ड को हिदायत दी, ’देखते रहना मज़दूर लोग काम कर रहे हैं।’जाते समय सबके थैलेअच्छी तरह देख लेना।जी सर!गार्ड ने कहा।कपूर साहब दिवाली के लिए रंग रोगन करवा रहे थे।अंदर बाहरचमकाया जा रहा था।
दिवाली में बाँटने के लिए मिठाइयाँ पैक करवाया जा रहा था।मजदूरनी का तीन साल का बेटा आँगन सेलड्डुओं को डब्बे में पैक होते देख रहा था।काम से विराम के वक्त मजदूरनी बेटे को टिफ़िन से रोटी अचारखिला रही थी। माँ, को देख बच्चा मचलने लगा लड्डू के लिए।शीशे की दिवार और ख़ुशबू भी लुभाए बिनारोक नहीं पा रहे थे।कपूर साहब की पत्नी के देख रेख में डब्बे तैयार हो रहे थे, बड़े -बड़े लोगों के घर बाँटनाथा ;शायद उनके यहाँ जिन्हें मीठा खाना मना था।बच्चे को रोते देख कपूर साहब की पत्नी ने बुरे नज़रों सेदेखा और पर्दा खींच दिया।
थोड़ी देर बाद मजदूरनी ने दरवाजा खटखटाया घर का नौकर बाहर आया तो पूछा, क्या है?
मजदूरनी-मैडम जी को बुला दिजीए।
नौकर -मैडम आपको मजदूरनी बुला रही है।
आई होगी लड्डू लेने थोड़े से लड्डुओं का चूरा अख़बार में रखकर स्वयं गई पुण्य कमाने।
ये ले...।
मजदूरनी ने उस तरफ ध्यान ही नहीं दिया और बोली -मैडम, जी साहब के गाड़ी के नीचे ये मोबाइल गिराहुआ था।
कपूर साहब की पत्नी कभी मजदूरनी के पीठ पर बाँधे बच्चे को देख रही थी और कभी वह साठ हज़ार केमोबाइल को।