महापुरुष की संगत
महापुरुष की संगत
एक बार महात्मा गाँधी जी के आश्रम में एक चोर कुछ चुराने के इरादे से घुसा ।वह कुछ चुराने का अभी संकल्प कर ही रहा था कि महात्मा गाँधी ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ आश्रम में प्रवेश किया ।चोर घबराकर वहीं दीवार से लगकर खड़ा हो गया ।गाँधी जी सहयोगियों के साथ विचार विमर्श कर रहे थे और वह चोर कुछ भय बस और कुछ उत्सुकता बस वहां से बाहर ना जा सका। बातों बातों में गांधीजी की दृष्टि उस चोर पर पड़ी और उन्होंने उसे कुछ काम कर लाने को कहा।
पहले तो वह चोर थोड़ा घबराया पर जल्दी ही वह गांधीजी जी के बताए काम को करने निकल पड़ा । थोड़ी देर बाद जब वह लौटा तो गांधीजी ने उसे एक दूसरा कार्य सौंप दिया इस तरह वह पूरे दिन भर किसी ना किसी कार्य में व्यस्त रहा और जिस कार्य के लिए वह आश्रम में आया था उसे उसकी स्मृति भी ना रही। शाम को जब गांधीजी ने उसे बुलाया तो उसका ह्रदय पूरी तरह परिवर्तित हो चुका था वह गांधी जी के चरणों में प्रणिपात हो गया और उनसे आश्रम में अपने आने की वास्तविकता बताई और प्रायश्चित करने लगा गांधी जी ने उसे क्षमा कर दिया और उसे आश्रम का कार्यकर्ता नियुक्त किया।
इससे यह सिद्ध होता है कि थोड़ी देर की ही महापुरुष की संगत ने विपरीत भाव के एक व्यक्ति में कितना आमूलचूल परिवर्तन ला कर रख दिया वास्तव में अच्छी संगत की यही महत्ता है।
इससे हमारे महान ग्रंथ रामचरितमानस के रचयिता श्री तुलसीदास जी के शब्दों में कि यदि स्वर्ग और मोक्ष के सब सुखों को तराजू के एक पलड़े में रखा जाए तो भी वे सारे सुख मिलकर भी दूसरे पलड़े में रखे हुए उसके बराबर नहीं हो सकते जो एक क्षण के अच्छी संगत से होता है।
