मेरी संगिनी [1जून]
मेरी संगिनी [1जून]
कुछ दिनों पहले तक डायरी को नितांत निजी वस्तु माना जाता था, क्योंकि इसमें जो विचार हम साझा करते हैं, वह हमारे व्यक्तिगत जीवन से जुड़े होते हैं, परंतु अब इसका स्वरूप थोड़ा बदल गया है, कोशिश करती हूँ इसको, इसके बदले स्वरूप के साथ लिखने की,,
तुम्हें पता है संगिनी, तुम्हारा और मेरा साथ बहुत पुराना है, तुम्हारे साथ मैं, अपना बहुत वक्त, बिताती थी कुछ सालों पहले तक, फिर परिवार और जिम्मेदारियों के बीच कुछ ऐसी उलझी, कि तुमसे मेरा नाता टूट सा गया, चलो अच्छा हुआ, आज फिर से, तुम से जुड़ने का एक मौका मिला है मुझे,,,,,
तुम बुरा मत मानना संगिनी, जैसे मेरा साथ पहले देती थी, वैसे ही आज भी देना, जानती हो संगिनी, इस लॉकडाउन में, सभी की ज़िंदगी उथल-पुथल हो गई है, पहले जैसा अब कुछ भी नहीं रहा,,
बरसों पहले, जैसे साफ सफाई का ध्यान रखा जाता था, बाहर से आने पर कपड़े बदलना, हाथ पैर धोना, खाने की चीजों को हाथ लगाने से पहले, हाथों को अच्छी तरह धोना, वैसे ही अब, फिर से सब कुछ पहले जैसा हो गया है,,
कुछ बातें अच्छी हुई हैं, तो कुछ बातें तकलीफदेह भी है, जैसे बाहर निकलने पर मास्क पहनना, गर्मियों में बहुत घुटन होती है, इसको पहनने पर, श्वास लेने में भी तकलीफ होती है, मगर क्या करें, मजबूरी है, पहनना ही पड़ता है,,
अब एक महीने तक तुमसे प्रतिदिन मिलना होगा, बहुत सारी बातें हैं, तुम्हें बताने के लिए, क्योंकि काफी अंतराल के बाद, हम लोग मिले हैं, एक एक करके, तुमसे सब बातें साझा करूँगी, जाते जाते आज का जीवन दर्शन,,,
जीवन में कभी पराजय का सामना करना पड़े, तो मायूस ना होना मेरे दोस्तों, क्योंकि कभी-कभी एक बेहतरीन खिलाड़ी भी शून्य पर आउट हो जाता है,,,,
आज के लिए बस इतना ही मिलते हैं कल फिर से "मेरी संगिनी"।
