मेरी सिया
मेरी सिया
"अरे दीदी आप नहा भी लीं...पर अभी तो 5:30 ही बजा है ?" मेरी भाभी ने अपने कमरे से बाहर निकलते हुए मुझसे पूछा।
" मेरी तो आदत है जल्दी उठने की सिया, तुम लोगों की तरह देर तक ऑफिस के काम में वयस्त नहीं रहती ना, तो जल्दी सो जाती हूँ तभी सुबह उठ कर तैयार...बस", हालांकि मेरे ऐसे उत्तर से शायद सिया को कुछ चुभा हो, लेकिन ना जाने मैं किस आवेश में ये सब बोल गई।
सिया पानी का जग लेकर और राजू को मेरा पर्याप्त ध्यान रखने का निर्देश दे कर ऊँघती हुई फिर कमरे में चली गई।
मैं अपने छोटे भाई की मेहनत के फल के रूप में ढले उसके बंगले को निहार रही थी। सोच रही थी कि, दोनों लोगों के कमाने से बात तो अलग होती ही है।
यकायक उस दिन की स्मृति हो आई, जिस दिन पहली बार अपने सात महीने के बच्चे को घर पर आया के भरोसे छोड़ कर गई थी, और ऑफिस में एक काम में भी मन नही लग पाया था। दो महीनों के भीतर ही नौकरी करने का फितूर उतर गया, और मैं बच्चे में पूरी तरह रम कर बस दूसरों को सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए मन ही मन कुढ़ती चली गई।
शायद इस कुढ़न और पीछे ना रह जाने के डर ने मुझे मेरे पहले फितूर लेखन से जोड़ दिया। धीरे धीरे कलम ने साहित्य जगत के साथ साथ आम लोगों के बीच भी पहचान दिला दी, अब शायद मैं कुछ ठीक थी, लेकिन मन फिर भी दूसरों के ठाठ बाट देख कर मचल ही जाता था।
यूँ ही सोच के भंवर में फंसती जा रही थी कि तभी छोटे भाई के हाथ में चाय का कप आखों के सामने था।
" दीदी...किसी नई कहानी का प्लाट सोच रही हो?, मेरे घर आई हो, यहाँ अपने विचारों को थोड़ा आराम दो और कुछ चैन के पल बिताओ सारे झमेलों से मन को दूर कर लो। तुम जब भी पास होती हो तो माँ पापा के पास होने का एहसास होता है", भाई के आखों से टपका नीर मेरी कलाई पर था। मेरे लिये वो, और उसके लिये मेरे सिवा बचा ही कौन था माँ पापा के बाद।
" दीदी, आइए नाश्ता तैयार है आपके पसन्द की पावभाजी बनवाई है राजू से, ये पावभाजी का एक्सपर्ट है घर में", सिया ने भावुक होते भाई बहन को सम्भाल लिया।
" हम्म, वाह भई पावभाजी तो बहुत बढ़िया बना लेते हो", मैंने राजू की तारीफ करते हुए कहा।
" दीदी मैंने आपकी बहुत सी कहानियां पढ़ी हैं... आपकी लेखिनी में सच में लोगों को बांधने की क्षमता है। मैं तो आपकी फैन हो गई हूँ। मेरी सहेलियां और उनके परिवार वालों को भी आपका लेखन बहुत प्रभावित करता है। दीदी मैंने आपकी अनुमति के बिना ही आपकी कहानियां संग्रह कर एक लोकप्रिय प्रकाशक को दिखाई थीं, जो उन्हें अपने ब्रांड तले नि:शुल्क छापने को तैयार हैं। आप शाम को 6 बजे तैयार रहिएगा, मेरे आफिस से आते ही हम उनके पब्लिकेशन हाउस चलेंगें, वो आपसे मिल कर बहुत खुश होंगे", सिया ने कहा।
सिया मुझसे छोटी ज़रूर है, पर मेरे मनोभावों को पारखी नज़रों से भांप लिया होगा।
मेरे भीतर जो एक दीवार थी आज शायद वो चकनाचूर हो गयी थी, और मैंने सिया को गले से लगा लिया।