मेरी रागिनी (कुछ वक्त पीछे)
मेरी रागिनी (कुछ वक्त पीछे)
साजन मेरे हाथ थामे ही चलना....
रस्ता नया हर कदम पे सम्भलना...
"वाह,,, क्या गीत है.. और क्या गाया गया है... ऐसा लग रहा था,,, जो गा रहीं हैं,,, वो गा नहीं रहीं,, बल्कि अपने दिल की बात किसी दिल तक पहुंचा रहीं हैं.." आंखे बंद किए मैं उस आवाज और अंदाज में खोया हुआ था कि,,, एक जोरदार दहाड़ सुनाई दी..
"अजी सुनते हो,,,या बस मोबाइल के गीतों को ही सुनकर दिन गुजारना है.. "
" जी,, जी,,, मैंने करीब हकलाने वाले अंदाज में उन्हें देखा.. जेडजी कहिये न क्या बात है... " अनुनय-विनय वाला अंदाज था मेरा....।
साक्षात चंडी बनी हुई थीं मेरी अर्धांगिनी.. पर कमाल था... इस अवतार में भी चांद का टुकड़ा लग रहीं थीं.. " कब से आपको आवाज दे रहीं हूं.. कभी कभी मुझे भी सुन लिया करिए.. जब देखो ये हेड फोन लगाए रहते हो.. " कभी तो मुझे आप पर शक होता है.!"
"कैसा शक प्रिये.." चाशनी में तरबतर मेरे शब्द थे!
" यही की गाने सुनने के लिए ही ये हेड फोन लगाते हो या मेरी आवाज़ से बचने के लिए इसे सिर पे चढ़ाए रहते हो.. ?"
"ऐसा क्यों कह रही हो यार... !"
"तो और क्या कहूँ.. लॉक डाउन का पूरा पूरा उपयोग आप ही कर रहे हो.. सवेरे से लेकर रात को नींद आने तक ये आपके सिर में विराजमान होता है.. जरा याद करके बता दीजिए की रात को छोड़ दिया जाए तो सारे दिन भर में आप मुझसे कितनी और क्या बातें कर लेते हैं!"
"अरे सारा दिन तो आपके आगे पीछे घूमते रहते हैं यार कभी चाय के लिए कभी नाश्ते के लिए कभी खाने के लिए कभी,,,,,,"
"बस बस.. ज्यादा चापलूसी न करें.. ओके"
"एक बात तो बताइए???? "
"दो पूछिये. "
"ये आप सारा दिन इस हेड फोन को अपने सिर में धारण किए रहते हैं.... क्या इतना अच्छा गाते हैं लोग..!"
"अब अच्छा और बुरा का क्या कहें.. कुछ अच्छा गाते हैं कुछ बहुत अच्छा गाते हैं.."
"आज मैं भी सुनु जरा."
"जी बिल्कुल. लीजिए ये हेड फोन आज धन्य हो गया आपके शीर्ष पर विराजमान होकर.. "
"आप किसे सुन रहे थे, जरा दिखाएं.. आंख बंद करके खोए थे उस आवाज में...मैं भी तो सुनु उन्हें.. "
मैंने ने मोबाइल उनके हाथ में दे दिया.. और दिखा दिया कि किसे सुन रहे थे.. "ओह,,, मीना नाम है... पर इसने तो सिनेतारिका की फोटो लगा रखी है.. इसकी खुद की पहचान ही सही नहीं तो गाती क्या खाक होगी.. और आपको तो ये घपला बाजी पसन्द नहीं की दिखाए कुछ निकले कुछ.. फिर इतनी तन्मयता से सुनने की क्या सूझी... "
"उफ्फ... कभी कभी तो मेरी बोलती बंद कर देती हैं... "
"अरे यार मुझे क्या करना है वो कोई भी हो.. कोई रिश्ता निभाना है क्या जो पूछते फिरें की भई अपनी फोटो क्यों नहीं रखी.. मुझे आवाज से मतलब...
"ओके ओके,,, सुनते हैं.."
मेरी रागिनी दूसरे की राग में खोई थी और मैं अपनी रागिनी की मुखमुद्रा का अवलोकन कर रहा था.. उनके चेहरे के हाव-भाव जो जता रहे थे वो बस शब्द बनकर अब फूल की तरह झड़ने ही वाले थे..
"ऊंह,,,, ये गा रही है कि रो रही है.. कुछ समझ ही नहीं आ रहा. न सुर का पता और ताल लापता... और आप इस आवाज में खोए थे.. "
मैंने बड़े धीमे से कहा.... "उतना बुरा भी नहीं है.. ठीक ठाक आवाज तो है..!"
"उतना इतना नहीं.. पूरी बेसुरी है" आंखे तरेर कर उन्होंने कहा..
"अच्छा,,, आपने भी इसके साथ कुछ गाया है क्या..????? "
मैं समझ गया ,,, अब मेरी क्लास शुरू,,,
" हाँ,,, गाया तो है.. "
"जरा बताएँ,, कौन सा गीत है... "
जो सामने था,,, वो निकाल कर दिखा दिया... आज ही गाया था मैंने
जैसे ही गाना शुरू हुआ,,, मेमसाब के चेहरे पर बड़ी कातिलाना मुस्कान तैर गई... वजह थी मेरी आवाज़. मैं लगातार उनके चेहरे की भावभंगिमा को देखते हुए अंदाज लगा रहा था कि उन्हें कहां,,, क्या पसन्द आ रहा है..
जैसे ही उनका चेहरा कठोर हुआ,,, मैं समझ गया कि ये मीना की आवाज सुन रहीं हैं.. और शायद दो लाइन ही सुनी होंगीं उन्होंने और हेड फोन निकाल दिया...
"क्या हुआ???? आवाज अच्छी नहीं लगी मेरी,,,,,"
" नहीं ये बात नहीं है.. "
" तो क्या हुआ??? "
"आपका उसके साथ सुर मिलाना अच्छा नहीं लगा.. "
" उफ्फ...." उनके चांद से चेहरे को जो कि कुछ उदास सा हो गया था.. मैंने हथेलियों में लेकर कहा..
"रागिनी,,,, जो मेरे साथ गा रही है या मैं जिसके साथ गा रहा हूं.. वो सब अजनबी हैं.. एक शौक है यार बस.. तुम इतना मत सोचो न..उन्हें नहीं पता कि मैं कौन हूं और मुझे नहीं पता वो कौन है..
मैंने गाने से आपको मना नहीं किया.. और यही वजह है कि मैं आपके गीत सुन नहीं पाती.. ये मेरी अपनी प्रॉब्लम है.. इस में आपको परेशान होने की जरूरत नहीं.. आप गाइए.... "
और एक बात... अचानक अपने पुराने अंदाज़ में लौटते हुए उन्होंने कहा.. मतलब रौद्र रूप में..
"सरकार ने ये लॉक डाउन सिर्फ आपके लिए ही लगाया है.. सारा दिन बस आराम फरमाते रहते हैं.. पर हम लोग क्या करें.. दुनिया में ऐसी कोई महामारी नहीं आ सकती जिसके चलते हम महिलाओं को भी अपने काम के लिए पूर्ण लॉक डाउन मिले..
इसलिए अब सुर बाद में छेड़ना चलिए मेरे साथ किचन में हाथ बँटा दीजिए.." घूरते हुए उन्होंने आदेश दिया. और जब तक आपका ऑफिस नहीं खुल जाता तब तक मेरे साथ बराबरी से काम करिए.. क्योंकि नौकर और नौकरानी तो हैं नहीं घर में.....
बात तो उन्होंने सही कही थी.. महिलाओं को कभी छुट्टी नहीं मिलती...
मैंने भी संगीत से कुछ देर का ब्रेक लिया.. भई,,, अपनी रागिनी के राग को बिगाड़ कर तो सारा संगीत नहीं बिगाड़ सकता... पलट कर मोबाइल की तरफ देखा... जैसे.. मन ही मन कह रहा था....
" आता हूं मीना..."
पर मुझे यकीन है,एक दिन मेरी प्रिया भी मेरे सुर में सुर जरूर मिलाएगी... काश वो दिन जल्दी आए..
