मेरी मुट्ठी में पूरा आसमान है

मेरी मुट्ठी में पूरा आसमान है

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"ऐ ये कभी नहीं सुधरेगा रे। ये महिपाल कभी नहीं सुधरेगा। इतनी बड़ी ककड़ी लगी थी। साला चोर ले गया। मर जाये तू। मत खा पाये तू ककड़ी को कभी। कुकुर साला।" 

गाँव की एक महिला चिल्ला-चिल्लाकर गाली दे रही थी। 

                     

सुबह के आठ बजे रहे थे। सुदूर पहाड़ी की ओट से सूरज मुस्कुराता हुआ आ रहा था। आसमान नीला और साफ दिखाई दे रहा था। पंछियों की चहचहाहट और बैलों की घंटियों की ध्वनि चारों ओर सुनाई दे रही थी। किसान हल लेकर खेतों की ओर जाने लगे थे। ग्वाले गाय-बकरियों को जंगल की ओर ले जाने लगे थे।

इस गाँव का नाम था रामपुर। गाँव में यद्यपि ब्राह्मण, ठाकुर और अनुसूचित जाति तीनों जातियों के लोग रहते थे, किंतु फिर भी ठाकुर परिवारों की बहुलता थी। गाँव के सभी लोग खेतीबाड़ी करके अपना जीवन यापन कर रहे थे। इसी गाँव में ठाकुर रघुवीर सिंह का परिवार भी रहता था। इन्हीं रघुवीर सिंह का छोटा बेटा था महिपाल। महिपाल, जिसे प्यार से उसके माता-पिता माही भी कहा करते थे। महिपाल पढ़ाई में एकदम फिसड्डी था, जबकि उसका बड़ा भाई किसन पढ़ाई में ठीक था, इसीलिए जब किसन इंटरमीडिएट में पढ़ रहा था, तभी उसका चयन भारतीय सेना में हो गया था। वर्तमान में वह लद्दाख बौर्डर में तैनात था। 

 रघुवीर सिंह का छोटा लड़का महिपाल पढ़ाई-लिखाई में तो सबसे पीछे रहता था, लेकिन लड़ाई- झगड़े और उछल कूद में अव्वल नंबर पर था। यद्यपि वह अभी सातवीं कक्षा में ही पढ़ता था, लेकिन उसके कारनामों के चर्चे पड़ोसी गाँव में भी हुआ करते थे।

एक दिन की बात है पूरा गाँव हर्षोल्लास से दीपावली का पर्व मना रहा था। शाम ढल चुकी थी। लोग अपने घरों में दीये जलाने लगे थे। बच्चे पटाखे, अनार, फुलझड़ियां और रॉकेट छोड़ने लगे थे। भट-भट, भटाम-भटाम, भड़-भड़-भड़ और साईं सुईं सूंऊऊऊऊ की आवाज़ से वातावरण गुंजायमान हो रहा था।महिपाल भी उस समय अपने पड़ोसी नितिन के साथ पटाखे फोड़ रहा था। उसने नितिन से कहा कि "अगर तू लक्ष्मी बम को हाथ में फोड़ देगा तो तुझे दस रूपये दूँगा।" उसने बकायदा बम हाथ में फोड़ने का तरीका भी बताया। उसने खुद एक मुर्गा छाप पटाखा पकड़ा और उसकी बत्ती जलाकर उसे पीछे की ओर कर हाथ में ही फोड़ दिया।

नितिन ने भी दस रूपये के लालच में आकर उसी तरीके से बम हाथ में पकड़ा और उसकी बत्ती जलाकर उसे पीछे की ओर कर दिया। बड़ाम की आवाज़ आई। नितिन को एकबारगी लगा कि शायद उसका हाथ उसके शरीर से अलग जा गिरा है और उसे कुछ सुनाई भी नहीं दे रहा है। उसे दुनिया गोल घूमती नजर आ रही थी। वह वहीं बैठकर रोने लगा। महिपाल तब तक उसकी माता जी को बुला लाया- "ताई, नितिन ने अपने हाथ में लक्ष्मी बम फोड़ दिया।"

सभी को लगा कि ग़लती नितिन की है, लेकिन जब एक घंटे बाद नितिन पूर्वावस्था में आया तो उसने सारी कहानी बता डाली। सबने महिपाल को खरी-खोटी सुनाई। पिता ने तो यहाँ तक कहा कि अगर आइंदा से ऐसी ग़लती की तो घर से निकाल दिया जायेगा। 

                    

 इस घटना के बाद महिपाल कुछ दिनों तक शांत रहा, लेकिन कुछ दिनों बाद फिर वह अपने ही रंग में लौट आया। उसने अपने जैसे तीन और शरारती दोस्तों के साथ मिलकर एक ग्रुप बनाया। इस ग्रुप का काम था, लोगों के खेतों में हुई ककड़ियों पर हाथ साफ करना। इसके लिए चारों सदस्यों को अलग-अलग काम बांटे गए थे। एक सदस्य का काम था, ककड़ी की खोज करने का, दूसरे सदस्य काम था ककड़ी चोरी करने के लिए उपयुक्त समय व माहौल तैयार करने का, सबसे महत्वपूर्ण काम था ककड़ी चोरी करने का, वह काम स्वयं महिपाल किया करता था, जबकि चौथा सदस्य ककड़ी चोरी करते समय निगरानी का काम करता था। इस ग्रुप ने गाँव में इतनी ककड़ियां चोरी कि लोगों ने इस ग्रुप का नाम 'ककड़ी चोर गिरोह' ही रख दिया। यह गिरोह गाँव में पिछले दो साल से सक्रिय था। हालांकि यह गिरोह सीजनल ही अपना काम कर पाता था। 

महिपाल सिंह के कारनामों से स्कूल भी अछूता नहीं रहा। उन दिनों स्कूल में खेल कूद प्रतियोगिताएँ आयोजित हो रही थीं। स्कूली स्तर पर आयोजित हो रहीं इन प्रतिस्पर्धाओं में महिपाल ने भी भाग लिया। जूनियर वर्ग की चार सौ मीटर रेस में जब वह पिछड़ने लगा तो उसने अपने प्रतिद्वंद्वी रेसर को पैर फंसा कर गिरा दिया। तब रेफरी ने महिपाल को रेस से बाहर कर दिया था। 

इसी तरह एक दिन जब महिपाल शाम को गाँव के लड़कों के साथ घुच्ची ( सिक्के गड्ढे में फंसाने वाला एक खेल ) खेल रहा था, तभी हुए मामूली से विवाद में उसने साथी खिलाड़ी की नाक में घूंसा दे मारा था। घूंसे से उसके नाक से खून बहने लगा था। खून बहता देखकर महिपाल वहाँ से रफूचक्कर हो गया था और पिताजी के डर से उस दिन वह घर गया ही नहीं और दूसरे दिन शाम को घर लौटा। घरवाले उसे खोजते-खोजते परेशान हो गये थे। पता नहीं उस रात वह कहाँ रहा ! कुछ लड़कों का कहना था कि उन्होंने उसे सुबह के समय काली चुड़ैल के खंडहर के पास से आते देखा था। 

 काली चुड़ैल के खंडहर का नाम सुनकर गाँव के बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े-बुजुर्ग भी भयभीत हो जाया करते थे। लोगों का मानना था कि यह खंडहर आज़ादी से पहले कमली नाम की औरत का निवास स्थान था। कमली का पति एक आंदोलन के दौरान अंग्रेज सिपाहियों के डंडों से चोटिल होने के कारण मारा गया, जिस कारण घर पर कमली अकेली रहती थी। यही कारण था कि गाँव के जमींदार की उस पर बुरी नियत लगी रहती थी। जमींदार ने उसका शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हर तरह से शोषण किया। आखिरकार तंग आकर उसने एक दिन घर के भीतर ही आत्महत्या कर ली। गाँव वालों का मानना था कि तभी से उसकी आत्मा वहाँ मंडराती रहती है। 

लोगों का मानना था कि कमली दिखने में काली थी। इसीलिए बच्चे उसे काली दी-काली दी कहकर पुकारा करते थे। इसीलिए अब लोग उसके जीर्ण-शीर्ण घर को काली चुड़ैल के खंडहर के नाम से पुकारते हैं। लड़कों की यह बात कि महिपाल सुबह-सुबह काली चुड़ैल के खंडहर के पास से गुजरता दिखा, सीधे-सीधे किसी को हजम नहीं हो रही थी, लेकिन सच महिपाल के सिवा कोई जानता भी नहीं था। वह इतना जिद्दी था कि घरवालों के द्वारा मार खाने के बाद भी उसने किसी को कुछ नहीं बताया। 

महिपाल के पिता महिपाल की हरकतों से कुछ ज्यादा ही तंग आ चुके थे। उनकी समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि वे इस लड़के के लिए करें तो आखिर क्या करें ! मात्र बारह साल की उम्र में इसने इतना ऊधम मचा के रखा है तो आने वाले समय में तो यह जीना हराम कर देगा !   

                 

इसी दौरान एक दिन गाँव के ही प्रकाश दाज्यू ने रघुवीर सिंह को बताया कि पड़ोसी गाँव में दस दिन पहले भगवती मंदिर के पास के पीपल के पेड़ के नीचे एक बाबा ने डेरा डाला है। वे आदमी की मुट्ठी देखकर उसका भूत, वर्तमान और भविष्य बता देते हैं। इसलिए गाँव में वे मुट्ठी बाबा के नाम से लोकप्रिय हो रहे हैं। धीरे-धीरे उनकी ख्याति दूर-दराज के गाँवों में भी फैल रही है। 

दाज्यू की बात सुनकर रघुवीर सिंह के मन में कौतूहल उत्पन्न हुआ- "क्यों न दाज्यू महिपाल को बाबाजी के पास ले जाया जाय और उसका भविष्य जाना जाया ?"

"हाँ, एकदम सही सोचा भाई साब आपने। क्या पता आज का बिगड़ैल छोकरा भविष्य का ज्ञानी पुरुष बने !" दाज्यू ने जवाब दिया। 

"सही कह रहे हो दाज्यू। मैं कल ही महिपाल को बाबाजी के पास ले चलता हूँ।" 

"जरूर। भाई साहब जरूर।"

 इसके बाद दोनों अपने-अपने घरों की ओर चल दिए। 

दूसरे दिन प्रातः ही रघुवीर सिंह महिपाल को लेकर बाबाजी के पास पहुंच गये। उन्होंने देखा कि बाबाजी चारों ओर से पुरूषों, महिलाओं और बच्चों से घिरे हुए थे। बाबाजी पहले व्यक्ति को दाएँ हाथ की मुट्ठी बंद करने को कहते, फिर कुछ मंत्र बुदबुदाते और फिर उसके बाद उससे मुट्ठी खोलने को कहते। फिर उसके बारे में सब-कुछ बताते जाते। रघुवीर सिंह का नंबर आया तो बाबाजी ने उनसे कहा- "बच्चा ! लगता है तू अपने बच्चे की फ़िक्र में घुला जा रहा है।" 

यह सुनकर रघुवीर सिंह बाबाजी के आगे नतमस्तक हो गये। बाबाजी तो अंतर्यामी हैं। उन्हें तो यह भी पता है कि मेरे मन में क्या चल रहा है। "बच्चा, तू फ़िक्र न कर मैं अभी तेरे बच्चे का भूत, वर्तमान और भविष्य सब बताता हूँ।" उन्होंने हाथ के इशारे से महिपाल को पास बुलाया और उसे बैठने को कहा। महिपाल बैठ गया। 

"चल बच्चा, अपना दायाँ हाथ आगे कर।" बाबाजी ने महिपाल से कहा। 

महिपाल ने चुपचाप बायाँ हाथ आगे कर दिया। 

"बच्चा मैं कह रहा हूँ अपना दायाँ हाथ आगे कर। इतना बड़ा होकर दायाँ हाथ नहीं पहचानता ?" बाबाजी ने फटकार लगाई। 

"कर रहा हूँ बाबाजी।" ऐसा कहकर महिपाल ने दायाँ हाथ आगे किया। 

"चल मुट्ठी बंद कर अब।" बाबाजी ने आदेश दिया। 

 महिपाल ने मुट्ठी बंद कर दी। बाबाजी मंत्र बुदबुदाने लगे। मंत्र बुदबुदाने के बाद बाबाजी ने महिपाल से मुट्ठी खोलने के लिए कहा। महिपाल के मुट्ठी खोलते ही बाबाजी उसका हाथ पकड़कर गौर से देखने लगे, तब उन्होंने रघुवीर सिंह की ओर देखकर कहा- "देख बच्चा ! तेरा पुत्र अतीत में भी शरारती था और वर्तमान में भी शरारती है। इसने अपनी हरकतों से सारे गाँव वालों को परेशान किया है। किया है कि नहीं बच्चा बोल ?"

"जी बाबाजी !" रघुवीर सिंह ने बाबाजी के आगे नतमस्तक होकर कहा। 

"देख बच्चा, इसका भविष्य मुझे अंधकारमय दिखाई दे रहा है। इसकी मुट्ठी में चुटकी भर ज़मीन तक नहीं है। यह लड़का अपनी जिंदगी में एक-एक पैसे के लिए तरस जायेगा। बुरा न मान बच्चा, ये लड़का भविष्य में तेरा नाम डुबोयेगा। यही सच है बच्चा !" 

बाबाजी के ऐसा कहते ही उनके सामने बैठे दो-चार भक्तों ने नारे लगा दिए- "बोलो, मुट्ठी बाबा की !"

"जै !"

                  

बाबाजी की बात से रघुवीर सिंह को काफी दुख पहुंचा। उन्हें अब महिपाल से कोई उम्मीद नहीं थी। उन्होंने मान लिया कि बेटे ने अगर दुख देना ही है तो फिर चिंता किस बात की ! जो होगा देखा जायेगा ! वैसे भी नियति के आगे किसका वश चला है। यही सोचकर उन्होंने अब महिपाल की ओर ध्यान देना भी छोड़ दिया। 

रघुवीर सिंह ने तो बेटे की ओर से हाथ खड़े कर दिए, किंतु इधर महिपाल में कुछ दिनों से काफी बदलाव नजर आ रहा था। बाबाजी के शब्दों ने उसके बाल मन पर गहरा प्रभाव छोड़ा था। "इसकी मुट्ठी में चुटकी भर ज़मीन तक नहीं है। यह लड़का अपनी जिंदगी में एक-एक पैसे के लिए तरस जायेगा। ये लड़का भविष्य में तेरा नाम डुबोयेगा", बाबाजी के ये शब्द रह-रहकर उसके कान में गूँज रहे थे। क्या मुझे चुटकी भर ज़मीन भी नसीब नहीं होगी ? क्या मैं अपने जीवन में एक-एक पैसे के लिए तरस जाऊंगा ? क्या मैं अपने पिता का नाम डुबाने के लिए ही पैदा हुआ हूँ ? नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूँगा। 

इसी तरह की उधेड़बुन में रहने के कारण माही कई रात ठीक से सो नहीं पाया। आखिर एक दिन उसने दृढ़ निश्चय कर ही लिया- "मैं मेहनत करूँगा। पढ़-लिखकर आगे बढूंगा। मेरी मुट्ठी में चुटकी भर ज़मीन नहीं, बल्कि पूरा आसमान होगा। मैं अपने कार्यों से माता-पिता का नाम रौशन करूँगा। मैं मेहनत करूँगा... मैं जी तोड़ मेहनत करूँगा... जब किसन दा मेहनत कर सकते हैं, तो क्या मैं नहीं कर सकता ! मैं भी कर सकता हूँ और मैं करूँगा..।"

 उस रात मन में यही संकल्प लेकर माही सो गया। दूसरे दिन जब वह उठा तो वह उसके लिए एकदम नई सुबह थी। 


 महिपाल अब सुबह नित्य समय पर उठता। उठने के पश्चात नित्य कर्म करके वह एक घंटा पढ़ाई करता और फिर प्रसन्न होकर स्कूल जाता। शाम को स्कूल से घर आने के बाद वह कपड़े बदलता। फिर हाथ-मुंह धोकर गृहकार्य करने बैठता। गृहकार्य करने के बाद कुछ देर वह पढ़ाई करता और फिर शाम को एक घंटा दोस्तों के साथ खेलने निकल जाता। वापिस आने के बाद फिर वह शौच आदि से निवृत्त होकर अध्ययन करने लगता। बेटे में अचानक आये इन बदलावों को देखकर माता-पिता हैरान थे। माता-पिता ही नहीं बल्कि उसके स्कूल के शिक्षक भी हैरान थे कि आखिर उसमें इतना बदलाव आ कैसे गया ! 

पहले महिपाल महीने में दो-तीन दिन स्कूल पहुंचने से पहले ही रास्ते से ग़ायब हो जाता था। कई दिन वह स्कूल में इंटरवल के बाद से ग़ायब रहा। इस चक्कर में उसने अध्यापकों के हाथ मार भी खाई, लेकिन अब उसने यह सब करना बिल्कुल बंद कर दिया था। एक दिन उसके दोस्तों ने उससे कहा-

"यार, माही आज सही मौका है, इंटरवल में गोल मारने का। आज गणित वाले मासाब भी नहीं आये हैं। जाकर मजे से घुच्ची खेलेंगे।"

माही ने जवाब दिया- "नहीं यार, अब मैं गोल नहीं मार सकता।"

"क्यों बे माही ?" दीपू ने पूछा। 

"क्योंकि अब मैंने सोच लिया है कि मुझे पढ़-लिखकर कुछ बनना है।" माही ने उत्तर दिया। 

"अरे... लगता है अपना माही अब सुधर गया रे। देखो...!" जग्गू ने चुटकी ली। 

"हा हा हा।" सब हँसने लगे। 

माही ने उनसे कुछ नहीं कहा, क्योंकि इस सबके लिए वह पहले से तैयार था। 

                 

वर्षा ऋतु का समय आया। लौकी, कद्दू, ककड़ी, तुरई आदि की बेलें गाँव में जहाँ- तहाँ फैली नजर आने लगीं। बेलों पर झूलती हुई लौकियां और ककड़ियां बरबस ही राहगीरों का ध्यान अपनी ओर खींच लेती थीं। लोग आश्चर्य में थे कि आखिर ककड़ियों का जानी दुश्मन कहा जाने वाला ककड़ी चोर गिरोह आखिर इस बार शांत क्यों है ! यहाँ तक कि कुछ महीनों तक खेतों की फसल को चौपट करने वाले बंदर भी अब नहीं दिखाई दे रहे थे। गाँव के बड़े-बुजुर्गों का कहना था कि यह सब कृषि देवता के आशीर्वाद से संभव हुआ है। 

                    

महिपाल ने अब गाँव के जूनियर हाईस्कूल से आठवीं की परीक्षा पास कर ली थी और चौंकाने वाली बात यह थी कि उसने अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। आठवीं पास करने के बाद महिपाल को आगे की पढ़ाई के लिए गाँव के अन्य सहपाठियों के साथ सुदूरवर्ती नंदगाँव में स्थित इंटर कॉलेज में जाना पड़ा। 

यह इंटर कॉलेज रामपुर गाँव से सात किलोमीटर की दूरी पर था और इसका नाम था- 'राजकीय इंटर कॉलेज नंदगाँव।' नंदगाँव कॉलेज में करीबन चार सौ विद्यार्थी पढ़ते थे और बारह शिक्षक शिक्षण कार्य को संपादित कर रहे थे। शिक्षकों की संख्या विद्यार्थियों की संख्या के आधार पर कम थी। इंटरमीडिएट में कला और विज्ञान दोनों वर्गों की पढ़ाई विद्यालय में होती थी। इंटर में भौतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र के प्रवक्ताओं के पद खाली थे जबकि हाईस्कूल में अंग्रेजी, गणित और संस्कृत के सहायक अध्यापकों के पद रिक्त थे। व्यवस्था के अंतर्गत शिक्षक विषयों को पढ़ाया करते थे। 

 महिपाल ने भी नौंवी कक्षा में गणित विषय के साथ एडमिशन लिया। शुरुआत में उसे कक्षा में काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। दरअसल में उसकी कक्षा में शिक्षकों के लड़के भी पढ़ा करते थे, जिनमें से एक का नाम था मनजीत और दूसरे का नाम था विशाल। वे दोनों स्वयं को बहुत ही होशियार समझा करते थे। शिक्षकों के मन में भी उनके प्रति अन्य छात्रों की अपेक्षा ज्यादा लगाव था। वे मानकर चलते थे कि अगर किसी प्रश्न का उत्तर इन दोनों को नहीं आयेगा, तो फिर कक्षा के किसी विद्यार्थी को नहीं आयेगा। ये दोनों लड़के कक्षा में सबसे आगे बैठा करते थे, जबकि महिपाल सबसे पीछे, लेकिन इस बात का महिपाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

वह नित्य प्रातः चार बजे उठता और शौच आदि से निवृत्त होने के पश्चात् कुछ देर अध्ययन करता और फिर उसके पश्चात् पीठ में झोला लगाकर गाँव के अन्य विद्यार्थियों के साथ कॉलेज की ओर चल देता। कॉलेज पहुंचने में उसे ढाई-तीन घंटे लग जाते। वापसी के दौरान यह समय और अधिक बढ़ जाता क्योंकि घर आते समय उन्हें तीन किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पढ़ती थी। उन दिनों आजकल की तरह सड़कें नहीं हुआ करती थीं। इसीलिए कॉलेज पढ़ने वाले विद्यार्थियों को घर से कॉलेज और कॉलेज से घर की दूरी पैदल ही तय करनी पड़ती थी। 

 माही भी अपने गाँव के दोस्तों के साथ चौदह किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय करता था। रास्ते में सघन चीड़ का जंगल था। माही के साथी कभी-कभी कॉलेज में जाकर उसी जंगल में छिप जाया करते थे और छुट्टी होने तक ताश खेला करते थे। वे माही पर भी रूकने का दबाव डालते थे, लेकिन माही उनकी बात को टाल दिया करता था। 

 इसी बीच छमाही परीक्षाओं का परिणाम आया, तो कक्षा नौ में पहला स्थान माही ने प्राप्त किया था। मनजीत, विशाल समेत कक्षा के सब विद्यार्थी तो आश्चर्य में थे ही साथ ही कुछ शिक्षकों को भी बड़ा आश्चर्य हुआ। माही की कापियाँ पुनः चैक की गईं, तो अध्यापक उसके कार्य को देखकर प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाये। सबने एक स्वर में कहा, नि:संदेह यह बालक एक दिन विद्यालय का नाम रौशन करेगा। 

वार्षिक परीक्षा में भी महिपाल ने कक्षा में अपना प्रथम स्थान बरकरार रखा। अगले वर्ष जब दसवीं की बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट आया तो महिपाल ने जिले में तीसरा स्थान प्राप्त किया था। उसके माता-पिता की खुशी का ठिकाना न था। रघुवीर सिंह को अब पूर्ण विश्वास हो गया था कि यह लड़का जरूर एक दिन बाबाजी की भविष्यवाणी को मिथ्या साबित करेगा। 

 ग्यारहवीं में महिपाल ने पी० सी० एम० ग्रुप का चयन किया और लगन के साथ अध्ययन में जुट गया। तेज धूप हो चाहे अंधाधुंध बारिश, वह नियमित रूप से विद्यालय आता। तेज बारिश के दिन कॉलेज जाने के लिए माँ मना करती तो वह कहता- "माँ, बारिश के मौसम में बारिश होती ही है। बारिश से क्या डरना ! फिर बारिश के दिन कॉलेज में कम बच्चे आते हैं, जिससे मुझे सर लोगों से प्रश्न पूछने का ज्यादा मौका मिल जाता है।" माँ बेटे के इस उत्तर के आगे समर्पण कर देती थी और इतना ही कह पाती थी- "ठीक है बेटा। ठीक से जाना। कहीं फिसल-विसल मत जाना।"

इस तरह अध्ययन करते हुए महिपाल ने बारहवीं की बोर्ड परीक्षा में पूरे जनपद में प्रथम स्थान प्राप्त किया। जब अखबार वालों ने महिपाल का इंटरव्यू लिया तो उसने कहा- "मैं अपनी मुट्ठी में पूरा आसमान कैद करना चाहता हूँ। यही मेरा सपना है।"

                  

 बारहवीं के बाद महिपाल आगे की पढ़ाई के लिए शहर आ गया और यहाँ वह कॉलेज से बी०एस० सी० करने के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी करने लगा। जब महिपाल बी० एस० सी० तृतीय वर्ष में अध्ययन कर ही रहा था कि उसी दौरान उसका चयन संघ लोक सेवा द्वारा आयोजित एन० डी० ए० की परीक्षा में हो गया। एन० डी० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण के बाद माही को तीन साल की ट्रेनिंग के लिए भेजा गया। इस ट्रेनिंग में सफल होने के बाद पुनः माही को वायुसेना की फ्लाइंग ब्रांच में विशेष ट्रेनिंग के लिए भेजा गया। 

महिपाल जब विशेष ट्रेनिंग के पश्चात वायुसेना का पायलट बनकर घर आया, तब पिता रघुवीर सिंह ने गर्व से सिर ऊंचा कर कहा- "बेटा तूने बाबाजी की बात को झुठला दिया। तेरी मुट्ठी में तो ज़मीन ही नहीं बल्कि पूरा आसमान है।" पिता के ऐसा कहते ही छुट्टी पर घर आये बड़े भाई ने भी छोटे भाई को आर्मी के अंदाज़ में सैल्यूट किया और फिर उसे सीने से लगा लिया। 

 

             


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