मेरी माँ मेरी मार्गदर्शक
मेरी माँ मेरी मार्गदर्शक
माँ वह है, जिसने मुझे जन्म दिया , मेरा लालन पालन किया ...स्वयं कष्ट सह कर भी उन्होंने मुझे सारी सुख सुविधायें दी। वह मेरी शिक्षक, मेरी मार्गदर्शक होने के साथ साथ सबसे अच्छी मित्र भी थीं।
मेरी माँ स्कूली शिक्षा से वंचित थीं परंतु वह धार्मिक पुस्तकें, समाचार पत्र एवं पत्रिकायें पढ़ा करतीं थीं ... उनको पढ़ते देख कर मेरे मन में भी पढ़ने के प्रति रुचि उत्पन्न हुई और हाईस्कूल में ही प्रेम चंद्र रचित साहित्य पढ़ डाला था। आज मैं एक लेखिका बन पाई हूँ तो इसके पीछे, उन्हीं का मार्ग दर्शन रहा है।वह मेरी सफलता और असफलता दोनों ही समय में मेरे साथ खड़ी होती थीं ...मेरी तकलीफों के समय मेरी शक्ति बनीं और मेरी हर सफलता का आधार स्तंभ भी थी।
` उनकी मेहनत, नि-स्वार्थ भाव, साहस तथा त्याग ने जीवन में सदा मुझे प्रेरित करने का कार्य किया है।
मेरा बचपन संयुक्त परिवार में बीता ... भाई बहनों के साथ मस्ती करना और खेलना यही अच्छा लगता था लेकिन मेरी माँ ने मुझे शिक्षा के महत्व को समझाया ... वह कहतीं थीं कि बेटी बिना पढ़ाई के तुम जीवन में तरक्की नहीं कर सकती .... इसलिये पढ़ना अत्यंत आवश्यक होता है ... वह अपनी व्यस्त दिनचर्या में भी समाचारपत्र पढ़ा करतीं थीं और राजनीति और सामाजिक संदर्भ की चर्चा किया करतीं थीं
वह कहतीं थीं कि समाज में इज्जत चाहती हो तो शिक्षित होना आवश्यक है ... यदि शिक्षित रहोगी अपने बच्चों को भी पढ़ा पाओगी और इस तरह से पूरा परिवार शिक्षित हो जायेगा।
हमारे घर आसपास जो गरीब बच्चे रहते थे, उन्हें बुला कर अक्षर ज्ञान करवाना ... मुख्य रूप से जीवन में पढ़ने के लिये प्रेरित करना और वह मुझे भी उन लोगों को कुछ पढ़ाने और सिखाने के लिये कहतीं थी ....
जब मैं इंटर में थी तो उन्होंने मुझे समाचार पत्र के लिये लेख लिखने के लिये मजबूर किया .... आज सोचती हूँ कि उन्हीं का मार्ग दर्शन था , जिसने मुझे लेखन के लिये प्रेरित किया .... जब मेरा लेख मेरे नाम के साथ समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था ... इसके साथ ही मनीऑर्डर प्राप्त करने की गर्वानुभूति, सुखानुभूति का वर्णन तो गूंगे के लिये गुड़ जैसा ही है .... लेकिन मुझे शिक्षा का महत्व मालूम हो चुका था ....
वह मेरी कहानियों को पढ़कर उनकी आलोचना भी करतीं और प्रशंसा भी करतीं .... मुझे लिखने के लिये विषय बताया करतीं , मुझसे कहतीं कि कोई भी लेख या कहानी लिखने के बाद कई बार पढ़ कर अवश्य देखना चाहिये .... उसकी कमियाँ तुम्हें पता चलेंगी ...
मेरी माँ ने हमेशा ईमानदारी, सच बोलना, कर्तव्यनिष्ठ रहने का पाठ पढ़ाया ....
मैं बचपन में बहुत डरपोक थी और झूठ भी बोलती थी, मेरी माँ ने ही मुझे समझाया कि जब झूठ बोलोगी तो तुम्हें बार बार बात को सच सिद्ध करने के लिये झूठ बोलते रहना पड़ेगा और यदि सच बोलोगी तो एक ही बात बोलोगी ... यदि गलत किया है तो स्वीकार कर लो क्योंकि झूठ तो एक न एक दिन पकड़ा ही जायेगा ...
मैं अंधेरे से बहुत डरती थी तो उन्होंने समझाया कि हर जगह भगवान होते हैं, इसलिये डरने की जरूरत ही नहीं है आदि आदि ... मां तो वह कुम्हार है जो अपने बच्चे के व्यक्तित्व को मनचाहा स्वरूप देती है ... उन्हीं की शिक्षा का प्रभाव था कि मैंने भी अपनी बेटी के जीवन में रंग भर दिये और वह आज नित नवीन सफलता की ऊँचाइयों पर अपने कदम रख रही हैं ....
बचपन में नाराज होना, जिद्द करना और फिर खाने के लिये मना कर देना ज्यादातर सभी बच्चों की आदत होती है ...मैं भी इससे अछूती नहीं थी , दादी प्यार से बहला फुसला मुझे खिला दिया करतीं थीं तो मेरी मां ने मुझे समझाया कि बेटी खाने से क्या रूठना ... एक टाइम नहीं खाओगी ...दूसरे टाइम खाना ही पड़ेगा ... खाना तो भगवान का प्रसाद है जो तुम्हें ईश्वर कृपा से मिल रहा है ... उन गरीब लोगों से पूछो जो बेचारे भूख से तड़पते रहते हैं और बेचारों को खाना नहीं मिल पाता इसलिये अपने जीवन का सिद्धांत बना लो कि अन्न से कभी नहीं रूठना ... उनकी बात मैंने गांठ बाँध ली कि कितनी भी कठिन परिस्थिति हो लेकिन खाने से मुँह नहीं मोड़ना है ..
मेरे व्यक्तित्व के निर्माण का श्रेय मेरी माँ को जाता है .. उन्होंने जीवन में आने वाली विषम परिस्थितियों का सामना करना सिखाया और मेरे अंदर आत्मविश्वास पैदा करवाया।
मैं कई संगठन या समिति के अध्यक्ष पद पर सुशोभित रही हूँ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में मेरी कहानियाँ और लेख प्रकाशित होते रहते हैं समाज की प्रतिष्ठित महिला हूँ ...
