मेरी बेटी
मेरी बेटी
पुष्पा बहुत खुश थी। रसोई में बड़े मनोयोग से बेटी के लिए पकवान बना रही थी। उसकी बेटी, उसके जीवन का एकमात्र सहारा, आज घर लौट रही थी। वह पढ़ाई के लिए
शहर में रहती थी। उसकी पढ़ाई अब पूरी हो चुकी थी। इतने दिनों बाद बेटी से मिलने की उत्कठा वह दबा नहीं
पा रही थी। काम खत्म करके उसने घड़ी की ओर देखा,
अभी तो एक घंटा बाकी है, क्या करे वह ?
वह सोफे पर बैठ गई और दरवाजे पर पलक-पांवड़े बिछा दिए। पता नहीं, बैठे-बैठे वह अतीत की यादों में खो गई। कैसे दिन जिए थे उसने ससुराल में सब दकियानूसी विचारों के लोग थे। अच्छा-खासा भरा पूरा परिवार, सभी लोग मिलकर रहते थे। हवेलीनुमा उस घर में जब वह दुल्हन बन कर आई तो उसने देखा कि चाचा, ताऊ और
उसके ससुर जी के तीन-तीन बेटे थे। लेकिन बेटी कोई नहीं, और तो और उसके देवर-जेठों में भी सबके बेटे ही
थे। वह असमंजस में पड़ गई। ऐसा कैसे हो सकता है?और फिर भावुकता के क्षणों में अपने पति से वह कहने लगी-
सुनो जी!आपके परिवार में तो एक भी बेटी नहीं है, क्या आपको इसकी कमी नहीं गलती। मैं तो चाहती हूं कि
हमारे प्यारी सी बिटिया हो जो इस घर की कमी को दूर कर दे।
उसकी इस बात पर पति झल्ला उठे-आज कह दी सो कह दी आगे से बेटी का नाम भी ज़बान पर ना आए।
और अगर मेरी कोख से बेटी ने जन्म लिया तो ?
ऐसे कैसे, नामर्द नहीं हूं मैं, सब भाईयों के लड़के हैं, मेरे भी लड़का होगा।
वह भौंचक्की रह गई। उस दिन उसने अपनी जिठानी से, जो उसके बेहद करीब थी, ये बात पूछी-दीदी ! यहां क्या
लड़के ही पैदा होते हैं, किसी के लड़की नहीं है। ऐसा क्यों ?
जिठानी उसका हाथ पकड़ कर कमरे में खींच लेती गई।
ऐसी बातें सबके सामने मत पूछा कर पुष्पा !इन लोगों को
बेटी के नाम से चिढ़ है क्यो तू अपनी शामत बुलाना चाहती है।
लेकिन दीदी !किसी के तो बेटी हुई होगी न, या हुई ही नहीं !
पुष्पा ने देखा जिठानी की आंखों से आंसू बह रहे थे, उन्होंने अलमारी खोली और एक बहुत छोटी सी फ्राक निकाल कर देखने लगी। फिर उसे चूम लिया।
ये तो लड़की के कपड़े हैं दीदी ! आपको बिटिया हुई थी, कहां है वो!
मार दिया, नवजात के मुंह में तंबाकू ठूंस दी इन नराधमों ने, छीन लिया मेरी गुड़िया को।
आप देखती रहीं चुपचाप कुछ भी न किया आपने!कैसी मां हो आप।
नहीं री, मुझे कमरे में बंद कर दिया और मुझसे बेटी छीन ले गए फिर न देख पाई उसे। अब तो जांच करवा के पहले ही गिरवा देते हैं।
अबार्शन ! भ्रूणहत्या ! ये तो अपराध है दीदी !
कुछ भी नहीं है अपराध, अभी बेला के अबार्शन को आठ
माह भी न हुए उसके बेटी थी, अब फिर पेट से है, कल लेके तो गए थे, पता नहीं क्या हुआ, बात ही न करने देवें
चाचीसास!
पुष्पा सोच में पड़ गई। कैसे लोग हैं ये?इतना जघन्य अपराध और शिकन तक नहीं। पांच महीने बीते, वह गर्भवती हुई। सासू जी उसे दिखाने ले गई। सोनोग्राफी
वाले को एक नोटों की गड्डी पकड़ाई। पुष्पा समझ गई
थी कि ये क्या चाहती है ? जब वापस लौट रही थीं तो
सासू जी का मुंह लटका हुआ था। घर लौटे तो खूब बवाल मचा। अगले दिन अबार्शन की डेट तय हो गई।
पुष्पा चुप थी। सोच रही थी कि इन नराधमो से उलझना
बेकार है। अच्छा यही है कि घर छोड़ दिया जाए और आधी रात को उसने वह घर छोड़ दिया तथा अपनी सहेली के पास देहरादून चली आई। उसकी मदद से उसने
अपना नया घर बसाया। उसने फिर न मैके वालों से संपर्क किया न ससुराल वालों से। अपनी इस नयी दुनिया में उसने एक प्यारी सी बेटी का जमकर स्वागत किया।
उसकी परवरिश में कोई कमी न आए, इसके लिए रात-दिन मेहनत की।
मां ओ मां ! कहां खोई हो!देखो आ गई तुम्हारी परी। ओ मेरी प्यारी मां!!देखो मेरी जाब भी लग गई। मैं फूड इंस्पेक्टर बन गई। पुष्पा ने उठकर बेटी को बांहों में भर लिया। उसका माथा चूमते हुए बोली- मेरी प्यारी बेटी।