मेरी अधूरी कहानी
मेरी अधूरी कहानी
भाग -१
रमा एक बहुत बड़े वकील की बेटी थी। वह देखने में बहुत सुंदर थी। पिता के पास बहुत सारे खेत खलिहान बंगले नौकर चाकर सब थे। अपने ओहदे पर उन्हें नाज़ था। उन्हें लगता था कि परिवार और बाहर के लोग सब उनकी जी हुजूरी करें और लोग उनके पैसे और रुतबे के कारण करते भी थे। आठ बच्चों में सबसे छोटी रमा थी। अपने पिता के थोड़े से गुण उसने भी पाए थे। इसीलिए भाभियाँ उनसे बहुत डरतीं थीं। जैसे पुराने ज़माने में होता था औरतों को बोलने का हक़ नहीं था। उनका काम सिर्फ रसोई में खाना बनाना परिवार के सदस्यों को और घर आए मेहमानों को खिलाना यही काम था। किसी के सामने आना या आस पड़ोस की औरतों से बात करना ..यह तो वे सपने में भी नहीं सोच सकती थीं। रमा बहुत होशियार थी। इसलिए उनके पिता अपने ऑफिस रूम में रमा को बिठाकर खुद बाहर बैठते थे और रमा से क्लाइंट के फ़ाइल माँगते थे और वह रंग के हिसाब से उन्हें देती थी। इस वजह से रमा को घमंड था कि मेरे पिताजी सिर्फ मुझसे ही ऐसा काम कराते हैं।
जब रमा पंद्रह साल की हुई तब रमा की शादी एक ऐसे परिवार के लड़के से करा दी गई जो बहुत पढ़ा लिखा था पर रंग एकदम काला। उसका नाम था हरिश्चंद्र। घर का बड़ा बेटा था, दो छोटे भाई थे और एक बड़ी बहन थी जिसका विवाह बहुत पहले ही हो गया था। पिता गुजर गए थे जो कॉलेज में लेक्चरर थे। गोल्ड मेडिलिस्ट थे। शक्कर की बीमारी का उस समय इलाज नहीं था और वे उसी बीमारी से छोटी सी उमर में ही गुजर गए थे। उन्हीं की नौकरी हरिश्चंद्र को मिली। होशियार तो बहुत थे पर ज़िद्दी भी बहुत थे। लाड़ प्यार ने भी उन्हें बिगाड़ दिया था। सोचा था कि शादी हो जाएगी तो उसके व्यवहार में सुधार आ जाएगा।
रमा विवाह करके हरिश्चंद्र के घर पहुँची। बड़े घर से थी। उसने अपने आपको उस घर में ढालने की बहुत कोशिश की थी।
ननद ने भी काम काज में उसकी बहुत मदद की थी। ननद रुक्मिणी अपने मायके में रहती थी क्योंकि उनके पति इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। उस जमाने में लड़कों का विवाह भी पढ़ते समय ही कर देते थे। इसलिए उसने अपनी नई नवेली भाभी को घर के तौर तरीक़ों से अवगत कराया। दूसरे बेटे का नाम रामपाल था। तीसरे बेटे का नाम रामप्रसाद था। रामपाल और रामप्रसाद दोनों ने अपनी पढ़ाई पूरी की और नौकरी की वजह से मुंबई रहने चले गए। साथ में पूरा परिवार भी चला गया क्योंकि हरिश्चंद्र ने अपनी नौकरी किसी ज़िद के कारण छोड़ दी थी। रमा और हरिश्चंद्र के दो बेटे हो गए। पहला अजय दूसरा विजय। किसी तरह मुंबई में सब गुजर बसर कर रहे थे। एक दिन सुबह के घर से बाहर निकले हरिश्चंद्र घर वापस नहीं आए। पूरा परिवार हिल गया था। उनके सामने यह सवाल उठा कि हरिश्चंद्र के दो बच्चे और पत्नी की देखभाल कौन करेगा। घर में तनाव बढ़ने लगा, तब तक दूसरे दोनों भाइयों का भी विवाह हो गया था। रमा भी चिड़चिड़ी हो गई थी। दूसरों का ग़ुस्सा अपने बच्चों पर निकालती थी। आखिर वह भी क्या करे, उसने अपने घर में कभी पैसों की तंगी देखी ही नहीं थी।
एक दिन बाहर के कमरे से किसी के ज़ोर -ज़ोर से बोलने की आवाज़ें आ रही थी। अंदर बच्चों को खाना खिला रही रमा को अपने पति का नाम सुनाई दिया भागते हुए बाहर आई कि हुआ क्या है ? जानने के लिए तभी छोटे देवर रामप्रसाद ने बताया कि भाभी भैया मिल गए हैं, चेन्नई में नौकरी कर रहे हैं। मेरे एक मित्र ने बताया है। आप अपना और बच्चों का सामान बाँध लीजिए। मेरे मित्र ने कहा है कि वह घर ढूँढकर आपको भाई के पास पहुँचा देगा। अगले हफ़्ते रमा अपने दोनों बच्चों के साथ चेन्नई पहुँच गई। रामप्रसाद के मित्र अकेले नहीं आए थे, अपने साथ हरिश्चंद्र को भी लेकर आए थे। उन्हें क्या बताया था, नहीं मालूम पर अपने बीवी बच्चों को देखते उनका पहला प्रश्न रमा के लिए यही था कि तुम क्यों आई। ख़ैर अपने बीबी बच्चों को लेकर हरिश्चंद्र नए घर में आ गए। रमा का नया जीवन शुरू हुआ। उसे घर चलाने का तजुर्बा नहीं था और हरिश्चंद्र भी हर महीने की तनख़्वाह बिना माँगे कभी नहीं देते थे। किसी तरह घर चल रहा था। रमा खुश थी। पहले से ही अपने पिता के गुण रमा में थे। जो अब बाहर आ गए। वह घर की मालकिन थी। पति को उसने उँगलियों पर नचाना शुरू कर दिया। रमा और हरिश्चंद्र के अब पाँच बेटे हो गए थे। आमदनी तो बढ़ी नहीं पर परिवार बढ़ गया। बच्चों की पढ़ाई और घर का खर्चा बड़ी मुश्किल से चलता था। ऊपर से रमा को घर चलाने का तजुर्बा भी नहीं था। बच्चे बहुत ही होशियार थे। बड़ा बेटा अजय तो जीनियस था। उसने अपने बच्चों को बहुत ही संस्कारों से पाला। पिता की मृत्यु के बाद रमा को मायके वालों पर मोह भी बढ़ गया था। रमा खुदगर्ज थी स्वाभिमान उसमें कूट -कूट कर भरा था। अपनी परेशानी किसी पर ज़ाहिर नहीं करती थी।
इसीलिए घर आए मायके वालों को खाना खिलाना और दो -दो, तीन -तीन दिन अपने घर में रख कर ...उनकी मदद करना सब करती थी, पर मजाल है कि उनसे किसी चीज़ की मदद ले। कहते हैं कि ऊँट भी करवट बदलता है वैसे ही रमा के घर के हालात भी सुधर गए। अजय को सरकारी नौकरी मिली। दूसरे बेटे विजय ने पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया था फिर भी किसी तरह उसे भी नौकरी मिली पर प्राइवेट में। तीसरा बेटा संजय ने तो भी बारहवीं पास किया था पर उसे भी प्राइवेट ही पर अच्छी नौकरी मिली। ख़ुशियों ने रमा के घर के दरवाज़े पर अभी हौले से दस्तक दिए ही थे कि रमा के चौथे बेटे संजीव की मृत्यु सड़क दुर्घटना में हो गई। पाँचवाँ बेटा राजीव था जो अभी पढ़ रहा था।
रमा का दिल बैठ गया। रमा ग़ुस्से वाली और तेज तर्रार जरूर थी पर अपने बच्चों से किसे प्यार नहीं होता। दो , तीन साल तक उसने अपने बेटे के ग़म में शोक मनाया पर रिश्तेदारों ने उसे समझाया कि अब अजय शादी के लायक़ हो गया है उसकी शादी करा दे ....घर में ख़ुशियाँ आ जाएंगी। पहले तो रमा नहीं मानी फिर सबके ज़ोर देने पर मान गई। अजय सुंदर संस्कारी और पढ़ने में भी होशियार था। घर की हालातों के कारण उसे बी.एस.सी के बाद ही नौकरी करना पड़ा।
अजय ने बहुत सारी लड़कियों को देखा उसे कोई भी अच्छी नहीं लगती थी। रमा भी बेज़ार हो गई थी अजय के लिए लड़कियों को देख देख कर। एक कहावत है कि बग़ल में लड़की शहर में ढिंढोरा .....वैसे ही रमा की जो दूसरी देवरानी थी कमला उसके भाई की लड़की थी पढ़ी लिखी और सुंदर थी उनका भी रिश्ता अजय के लिए आया पर कमला तो अपनी जेठानी के स्वभाव को जानती थी इसलिए उसने कभी पहल नहीं की थी पर कहते हैं न रिश्ते तो स्वर्ग में ही बनकर आ जाते हैं तो कमला की भतीजी रुचि का रिश्ता अजय के साथ पक्का हो गया। कमला ने रुचि को फ़ोन पर एक ही बात कही थी, देख बेबी मेरा बेटा प्यार का भूखा है ..तू उसे प्यार दे और अपनी ज़िंदगी खुद सँवार ले। अजय के अपने उसूल थे जैसे दहेज न लेना पर रमा को अपने पहले और बड़े बेटे के ससुराल वालों से बहुत सारी उम्मीदें थीं। उसने जहाँ तक हो सके सामने वालों से लेने की कोशिश की थी पर वह बहुत ज़्यादा खुश भी नहीं थी क्योंकि एक तो देवरानी की भतीजी दूसरी अजय इन सबके ख़िलाफ़ था इसलिए ज़्यादा डिमांड भी नहीं कर सकती थी। किसी तरह रुचि और अजय का विवाह बहुत ही धूमधाम से संपन्न हुआ, और उसने अजय का हाथ थामकर सुनहरे सपनों को सजाने के लिए अपने ससुराल में कदम रखे।
पूरा घर रिश्तेदारों से भरा था। सबको जाने में समय लगा धीरे-धीरे घर में सिर्फ परिवार के लोग ही बच गए थे। अजय भी ऑफिस जाने लगे क्योंकि हनीमून जाने की इजाज़त सासू माँ ने नहीं दिया उनका कहना था कि वह सब नए ज़माने के चोंचले हैं। ठीक है फिर अजय ऑफिस से जल्दी आते थे तो वह भी सासु जी को पसंद नहीं आया ...आए दिन ताने देती थी कि पहले तो घर कभी जल्दी नहीं आता था अब बीबी आ गई तो पाँच बजे ही घर आ रहा है। अजय ने धीरे-धीरे घर अपने नॉर्मल समय पर आना शुरू किया तब वे कहती थी कि शादी कर लिया फिर भी देर से आता है क्यों ?
रुचि ने देखा ससुराल में सब सासु माँ की ही बात सुनते हैं। तीन देवर थे सबसे छोटे वाले बारहवीं में पढ़ रहे थे। सास कड़क थी आते ही रुचि ने महसूस कर लिया था। एक महीने तक सब ठीक से ही चल रहा था। रमा ने रुचि को पहले दिन ही बता दिया था कि सबेरे जल्दी उठना है क्योंकि पीने का पानी भरना पड़ता है। इसलिए ५.३० को ही रुचि उठ जाती थी, कभी देरी हो गई तो बर्तनों का नाच होता था। अजय के बहुत से मित्र थे। वे सब दोनों को खाने पर बुलाना चाहते थे। परंतु अजय को मालूम था माँ रुचि को साथ ले जाना पसंद नहीं करेंगी। इसलिए वह आए दिन कुछ न कुछ बहाने बना देता था! एक दिन उनके एक सहकर्मी ने अजय को खाने पर बुलाया। जिन्हें वह टाल नहीं सका तो उसने रुचि से कहा रात को खाना खाने मेरे एक मित्र के घर जाना है तैयार हो जाना। माँ को भी बताया कि रात का खाना बाहर है एक दोस्त के घर रमा ने पूछा ....तुम्हारा दोस्त शाकाहारी है या मांसाहारी अगर मांसाहारी है तो उनके घर तुम खा लेना पर बहू नहीं खाएगी। अब अजय की बोलती बंद क्योंकि किसी के घर पति पत्नी गए और पति खाना खाए पर पत्नी नहीं यह कितनी शर्मिंदगी की बात है। अजय ने रुचि से कहा रुचि उनके घर खा लो और घर में भी कुछ थोड़ा सा खा लेना। अब आगे से कोई दोस्त खाने पर बुलाएँ तो कुछ बहाना बना दूँगा। दोनों रात को घर पहुँचे। रमा बिना खाना खाए दोनों का इंतज़ार कर रही थी। दोनों ने थोड़ा सा खाया पर रमा समझ गई कि ये लोग खाकर आए हैं। उस दिन उसने घर में इतना बवाल मचाया कि रुचि परेशान हो गई क्योंकि उसने अपने पिता के घर में इस तरह के बवालों को नहीं देखा था। उसके आँखों से आँसू बहने लगे। अब तो आए दिन घर में कुछ न कुछ होते ही रहता था।
अजय बहुत ही अच्छा था पर रुचि को उसका साथ सिर्फ़ थोड़े समय के लिए ही मिलता था। रविवार के दिन भी रमा कुछ न कुछ काम ऐसे निकाल लेती थी कि रुचि को सास का हाथ बँटाना ही पड़ता था। अब अजय रविवार को भी कोई न कोई मीटिंग के लिए बाहर चले जाते थे। इसी तरह एक साल बीता और रुचि की गोद में सुंदर सी बच्ची ने जन्म लिया। अब घर के झगड़े कम हुए। रमा की अपनी कोई लड़की नहीं थी .....इसलिए वह अनुजा को एक पल भी नहीं छोडती थी। दिन बीतते गए और रुचि ने एक लड़के को भी जन्म दिया आनंद बस अब न रमा और न रुचि को ही फ़ुरसत थी। दोनों ही बच्चों में इतनी व्यस्त हो गई कि और किसी मुद्दे पर बात करने के लिए समय ही नहीं मिलता था। वैसे भी रुचि के व्यवहार से रमा भी उसे चाहने लगी थी कभी-कभी उसे याद आ जाता था कि वह सास है पर रमा की सहेलियाँ और उसके मायके वालों ने तो रुचि को सर्टिफिकेट दे दिया कि रमा तुम्हारे अच्छे कर्म हैं जो तुझे रुचि जैसी बहू मिली है। अब रमा अपने दूसरे लड़के के लिए लड़की ढूँढने लगी और उसे उसके मायके के गाँव की ही एक लड़की मिल गई जो ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी पर अच्छे घर से थी। वह भी रुचि की तरह ही तीन भाइयों के बीच अकेली लड़की थी।
बहुत सारे दहेज के साथ उसकी भी शादी धूमधाम से हो गई। अब रमा को दो -दो बहुओं को संभालना था। रागिनी और रुचि की अच्छी दोस्ती हो गई।
भाग—-२
दिन और साल कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला रमा के बड़े बेटे ने उसी शहर में एक घर बना लिया और अपने परिवार के साथ अलग रहने लगा। रमा को पसंद तो नहीं था पर अजय के सामने वह कुछ भी बोल भी नहीं सकती थी। इसीलिए सारी बातें रुचि को ही सुननी पड़ती थी। कुछ सालों के बाद अजय को दूसरे शहर जाना पड़ा। रमा तिलमिला गई उसने रुचि को बहुत सुनाया तुम बहुत होशियार हो पहले मेरे बेटे को घर से ले गई और अब शहर से ही लेकर जा रही है। पर अजय ने अपनी गृहस्थी दूसरे शहर में बसा ली। अब रमा अपने तीसरे बेटे के विवाह की तैयारी करने लगी उसे भी पढ़ी लिखी लड़की उमा मिल गई। वह छोटे मोटे झगड़ों को सह नहीं पाती थी। पति कभी साथ नहीं देता था क्योंकि उसे भी अपनी माँ से डर लगता था। इसका परिणाम यह हुआ कि वह एक दिन घर छोड़ कर चली गई। सब जगह ढूँढ ही रहे थे कि उमा के मामा का फ़ोन आया कि वह मेरे घर आ गई है। शादी के दो तीन महीनों ही हुए थे पर दोनों की बनती नहीं थी। वह अपने मायके चली जाती थी सास की कही हुई बातें उसे चुभती थी। इसलिए अब वह सास के साथ नहीं रहना चाहती थी अगर अलग रहें तो वह आने के लिए तैयार थी। रमा इसके लिए तैयार नहीं थी। संजय कुछ नहीं बोलता था परिणाम यह हुआ कि
पंचायत बिठाया गया और रमा संजय उमा सबको बहुत समझाया गया परंतु कोई भी एक दूसरे की बात को सुनना नहीं चाहते थे इसलिए बात नहीं बनी और दोनों तलाक़ लेने के लिए तैयार हो गए। पर उमा ने गृह हिंसा का केस लगाया था। जिसके कारण ग्यारह साल लग गए तलाक मिलने में !!!!!पर किसी तरह दोनों अलग हो गए। अब रमा अपने आख़िरी लड़के राजीव के लिए लड़की ढूँढने लगी क्योंकि राजीव पैंतीस साल का हो गया था ।वह एक प्राइवेट कंपनी में काम कर रहा था। उसे लड़की मिलने में भी मुश्किल होने वाली थी। किसी तरह उसे लड़की मिली जो खुद भी बत्तीस की थी। जिसका नाम सुगंधी था। वह पढ़ी लिखी और स्कूल में क्लर्क का काम कर रही थी। दोनों की शादी हो गई। और वे दोनों ख़ुश थे पर न के बराबर क्योंकि उम्र बड़ी होने के कारण सुगंधी के अपने विचार थे जो राजीव से मेल नहीं खाते थे। पर वे लोग अपने जीवन की गाड़ी को चला ही रहे थे या यह कहें तो उचित होगा कि खींच रहे थे।
भाग —३
संजय का तलाक़ हुए दो साल हो गए थे। रमा उसकी दूसरी शादी कराना चाह रही थी। किसी तरह उन्हें रंजना मिल गई। उसके माता-पिता बचपन में ही गुजर गए थे। भाई -भाभी ने ही उसका पालन पोषण किया था। भाई भाभी के अपने बच्चे थे। उनकी शादियाँ हो गई पर उम्र में बड़ी रंजना का ब्याह नहीं हो पाया क्योंकि वह पढ़ी लिखी नहीं थी और दिखने में भी कोई ख़ास नहीं थी साथ ही दहेज भी ज़्यादा नहीं ला सकती थी। इसलिए संजय की दूसरी शादी होने पर भी उन्होंने रंजना का ब्याह उससे करा दिया। सास और पति ने पहले ही बता दिया कि इतने साल मायके में ही रही है अब बार- बार मत बुलाइए। उन्होंने कहा ठीक है !!!अब शहर में ही मायका होने पर भी रंजना को उनसे मिलने या उनके घर जाने नहीं दिया जाता था। उसके भैया भाभी भी रमा से डरकर उसे न्यौता नहीं देते थे। अस्सी साल से भी ज़्यादा उम्र वाली रमा आज भी मेरे मायके वाले कहकर हर महीने उनसे मिल जाती है पर बहुओं के लिए शादी के बाद मायके को भूल जाने की सीख दे देती है बेटे या पति या बहुएँ किसी ने भी इस बारे में रमा से कुछ कहने का साहस किया है। उस घर में रमा से कुछ भी कहने का साहस सिर्फ़ अजय ही कर सकता था। राजीव और अजय एक ही शहर में रहते थे। विजय और संजय माता-पिता के साथ रहते थे। कुछ समय पश्चात रमा के पति का देहांत केंसर से हो गया। अब तो रमा और भी ज़्यादा ग़ुस्से वाली हो बात बात पर झगड़ा वह रागिनी को ही पसंद नहीं करती थी क्योंकि दोनों ही एक ही गाँव के थे। रागिनी को भी काम करना पसंद नहीं आए दिन दोनों लड़ते थे। रंजना ने घर और रागिनी के बच्चों को भी संभाल लिया। विजय और रागिनी के दो संतान थी एक लड़की और एक लड़का। संजय की कोई संतान नहीं थे इसलिए उसने विजय के दोनों बच्चों को अपने बच्चों के समान पाल पोसकर बड़ा किया। विजय के बेटे राहुल ने इंजीनियरिंग पास किया लड़की मधु ने बी.एस.सी पास किया। दादी और चाचा के लाड प्यार ने उन्हें बिगाड़ दिया। जो भी उन्हें चाहिए बिन माँगे ही मिल जाता था दोनों को अच्छे संस्कार भी नहीं मिल सके। रमा ने अपने बच्चों को तो अच्छे संस्कार देकर पाला था परंतु अपने पोता पोती को अच्छे संस्कार देने में नाकाम रही। क्योंकि उन्हें उसने दादी बनकर पाला था। उसके फलस्वरूप राहुल ने इंजीनियरिंग करने के बाद भी नौकरी न करके व्यापार करने की ठान ली और वह अपने व्यापार को जमा भी नहीं पा रहा था क्योंकि उनके परिवार में से किसी ने भी व्यापार नहीं किया था। किसी को भी उसके बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी। राहुल भी उस कपड़ों के व्यापार को जमाने में अपनी जी जान लगाने के बदले में अपने बाइक राइड के शौक़ को पूरा करने में लगा था। मधु की शादी एक बहुत बडे रईस ख़ानदान में हुई पर उसका पति पियक्कड़ होने के कारण अपनी छोटी सी बच्ची को लेकर मायके में ही आकर रहने लगी। आज रमा हर दिन बैठकर आँसू बहाती है कि उसने उन बच्चों की ज़िम्मेदारी को क्यों उठाया। अजय के बच्चों ने अच्छे से पढ़ाई की और दोनों बच्चों ने अपने परिवार को सँभाल लिया। उन्हें देखकर भी रमा को लगता है कि उसने बच्चों की परवरिश अच्छे से नहीं की पर कहते हैं अब पछताय क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत। रमा के बच्चे भी बड़े हो गए रिटायर लाइफ़ बिता रहे हैं पर रमा अपने 86 साल के उम्र में भी अपने बहुओं पर हुक्म चलाते हुए अपनी ज़िंदगी बिता रही है। आज भी घर या बाहर हर बात उन्हें बताए बिना नहीं होता है। और आगे जितनी उनकी ज़िंदगी है बहुओं को उनकी सुननी ही पड़ेगी। आगे क्या होगा इसका निर्णय तो भगवान ही कर सकते हैं।
