मेरी आधी आत्मा
मेरी आधी आत्मा
"प्रतिदिन कोई न कोई रोग घेरे रहता है तुम्हें।"
"इन तकलीफों का जिम्मेदार भी तो मैं ही हूँ। "कार्तिक को विधि की परेशानी देख बहुत दुख होता है।
"अच्छा ! वैसे आपने क्या तकलीफें दी हैं मैं भी तो सुनूँ ? "
दर्द में भी हँसी आ गई विधि को कार्तिक की मासूमियत पर।
वह उठकर कार्तिक के पास जा बैठी। उनके कांधे पर सिर टिका कर प्यार से कार्तिक की आँखों में झांकने लगी। बेपनाह प्यार करने वाले और उस पर दिलों जां न्यौछावर करने वाले इस अद्भुत दीवाने फरिश्ते को हर पल जी भर कर देखना चाहती है विधि।
"न मुझसे ब्याह करतीं, न एक बहुत ही प्यारी-सी डाॅल का अनमोल तोहफ़ा मुझे देतीं और न तुम्हारे तन बदन पर कोई आँच आती विधु..."
कहते हुए कार्तिक ने बड़ी ही मोहब्बत से विधि को अपने सुदृढ़ बाहुपाश में ले लिया। विधि ने लजाते हुए अपने आप को कार्तिक की बांहों में सौंप दिया। वह एक ईश्वरीय सुख-सा क्यों अनुभव करती है हमेशा कार्तिक की बांहों में, उनके प्यार भर सामीप्य में या उनके स्नेह सिक्त स्पर्श में।
क्या ऐसा कार्तिक से विवाह के पश्चात् हुआ ?? नहीं ऐसा नहीं। कॉलेज के दिनों में भी। पापा के ट्रांसफर के बाद जब रायपुर के पी जी काॅलेज में विधि का एडमिशन हुआ तो एक दिन नोटिस बोर्ड के सामने भीड़-भाड़ में धक्का- मुक्की होने पर एकाएक कार्तिक सामने आ गये। बड़े ही सुदर्शन, छ फुट से भी लम्बे अत्याकर्षक किन्तु अति गंभीर नवयुवक को एकदम सामने उसे निहारते देख वह संकोच में आ गयी और सिर झुका लिया। तभी अचानक एक रेला आया किन्तु यह क्या? मेरे आजू-बाजू एक मजबूत सुरक्षा घेरा था। जब भीड़ हटी तो कार्तिक ने बाहें हटा कर जाने के लिए हाथ से इशारा किया और मुस्कुरा दिए। मैं ऐसा महसूस कर रही थी कि मेरी आत्मा को जिस की खोज वह सोलमेट मेरे सम्मुख खड़ा था। खैर बात आई-गई हो गयी। मैं उन गिनी-चुनी लड़कियों में से थे जिन्होंने अपने प्रिय माता-पिता से मिले संस्कारों का मजबूत जामा पहना था और सच मानें तो पढ़ाई के अतिरिक्त अन्य बातों में कोई रुचि ही नहीं थी उसकी। यद्यपि पापा-मम्मा सामान्य मध्यम वर्गीय परिवार से थे किन्तु उसे व भैया विक्रांत को कभी संकीर्ण मनोवृत्ति या दबाव का वातावरण नहीं दिया अपितु निडरता व आत्मविश्वास से जीना सिखलाया। दोनों भाई-बहन पर ईश कृपा थी विशेषकर विधि तो रूप गुण चरित्र व योग्यता की प्रतिमूर्ति हो जैसे। गौर वर्ण अति सुन्दर नैन नक्श 5'4"इंच कद यह थी विधि। विधि मेघावी व सुरीले गले की मलिका थी किन्तु वह सुरों को केवल अपने पारिवारिक उत्सवों में ही काम में लिया करती थी।
......मुझे कॉलेज जाने की उत्सुकता क्यों रहती है आजकल। विधि खुद अचंभित थी।
कॉलेज में रहकर किस को ढूंढती है उसकी आत्मा??
जवाब में हृदय कह उठता-"यहीं पर है तेरा सोलमेट। तेरा शुभचिंतक। तेरा कोई हमराज। तुझे खुश व प्रसन्न देखने वाला। तुझे जीवन के बाद भी चाहने वाला। पर वह समझ न पाती कि कौन है वह??
कार्तिक एक ऐसा होनहार नवयुवक जो अरबों रुपये का एकमात्र वारिस होते हुए भी माँ के अमूल्य संस्कारों के प्रति प्रतिबद्ध एक सच्चरित्र धनाढ्य सुदर्शन युवक था जो पी जी कॉलेज रायपुर की शान था स्टडीज हो या बैडमिंटन या गायन। गंभीर व शालीन कार्तिक की एक झलक पाने के लिए कॉलेज की सैंकड़ों नव युवतियों की लाइन थी किन्तु उसकी नज़र कहीं टिकती ही नहीं। उस दिन लाइब्रेरी के सामने विधि से मिलने के बाद वह भी बहुत बेचैन रहने लगा। कॉलेज आने पर दूर - दूर नज़रें न जाने क्यों विधि को ढूंढती परन्तु वह न मिलती। याद है विधि को कॉलेज के वार्षिकोत्सव का वह दिन। विधि अब द्वितीय वर्ष की छात्रा थी। अपनी सखियों के साथ फर्स्ट लाइन में बैठी थी। गायन प्रतियोगिता में उसने अचानक कार्तिक को देखा और उसे शर्म व घबराहट में सर्दियों में पसीना आ गया। दिल की धड़कन से एक ही आवाज़ - "तेरा सोलमेट "
कुछ देर बाद कार्तिक की निगाहें उससे मिलीं और वह हौले से मुस्कुरा उठा।
थोड़ी देर बाद वह गा रहा था
"मैंने इक बार तेरी एक झलक देखी है, मेरी हसरत है कि मैं फिर तेरा दीदार करूं....."
न जाने क्या हो जाता था उसे सामने देखकर। वह मेरा कुछ नहीं है और न ही होगा कभी।
कार्तिक को इस बात का पूर्ण एहसास था कि हम दोनों की हैसियत में धरती-आकाश का अंतर है। मैं यदि माँ से कहूँ तो वह संभवतः न कर दें।
बहरहाल, कार्तिक ने माँ को तो मना लिया किन्तु माँ का कहना था कि" कोई भी माता-पिता अपने से बहुत ऊंची हैसियत वालों को बेटी देने में खतरा महसूस करते हैं। वे नहीं राजी होंगे।"
"दूसरी बात यह तो पता कर ले कि उस लड़की की कहीं रिश्ता पक्का तो नहीं हो गया है? "
अब बारी कार्तिक की थी। कुछ दिन अपने मित्रों से अलग जाकर कार्तिक ने यह बात नोट की कि विधि घर कब लौटती है और किस वाहन से?
और एक दिन....
किस्मत ने कमाल का साथ दिया था कार्तिक का।
विधि रोज़ कॉलेज खत्म कर थोड़ा पैदल चलकर स्टैंड से स्कूटी उठाती थी। उस दिन भी हमेशा की तरह वह स्कूटी लेकर आगे बढ़ी कि उसकी स्कूटी का पिछला पहिया पंक्चर हो गया। सभी स्टूडेंट्स तेजी से निकल रहे थे व कोई वाहन न था कि तभी कार्तिक सामने आ गया। "सोलमेट... "विधि का दिल फिर धड़का।
"क्या हुआ विधि ? मैं कुछ हेल्प करूं ? "कार्तिक अनायास ही बोल उठा।
"जी पिछला पहिया पंक्चर हो गया है? " विधि इतनी परेशानी में भी उसे सामने पा कर बहुत खुश थी।
तुम एक काम कर सकती हो यदि चाहो तो इसे लाॅक करके कॉलेज में छोड़ देते हैं। मैं तुम्हें गाड़ी से घर छोड़ सकता हूँ।
जी मगर स्कूटी वहां तक कौन ले जाएगा।
मैं ले जाऊँगा।
विधि देखती रह गयी।
गाड़ी में कार्तिक ने साफ शब्दों में विधि से कह दिया - "विधि मैं तुम को अपना जीवन साथी बनाना चाहता हूँ।"
" तुम्हारे जवाब का इंतजार रहेगा।"
दूसरे दिन नज़रें मिलते ही विधि ने मुस्कुराते हुए अपने सोलमेट का अपनी मौन स्वीकृति दे दी।
आज पैंतीस वर्ष व्यतीत हो गये किन्तु कार्तिक की दीवानगी व समर्पण में रत्ती भर भी कमी विधि ने महसूस न की।

