मेरे पापा
मेरे पापा
पापा हमारे हीरो होते हैं। पापा हमारे जीवन के पहले आदर्श पुरुष हैं और उनके व्यक्तित्व का ऐसा प्रभाव पड़ा कि हमने उन्हें सुपर हीरो मान लिया था। सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि दुनिया के अधिकांश बच्चें अपने पापा को ही हीरो समझते हैं। पास हों या दूर हों लेकिन हर सुख-दुख में पहला नाम और पहला फोन नंबर पापा का ही होता है। उम्मीद और आकांक्षाएं भी पापा से ही होती है। पापा के साथ 25 सालों में मैंने 25 जन्मों का प्यार पा लिया था और असमय ही पापा जुदा हो गए हमसे।
आज 30 साल हुए पापा को बिछड़े हुए लेकिन आज भी उनकी आवाज़ कानों में गूंजती है उनका हंसता हुआ सौम्य चेहरा आंखों के सामने कौंध जाता है। बड़े ही स्नेही, भावुक और मृदुल स्वभाव के व्यक्ति थें। हमें सब कुछ सीखाना चाहतें थे लेकिन उनका तरीका आम लोगों से अलग और अधिक प्रभावशाली था। शायद इसीलिए उनकी कही बात आज तक हमें बहुत अच्छे से याद है और अभी तक हम उसी अनुशासन, सभ्यता संस्कृति और मर्यादाओं का पालन करते हुए एक सुसंस्कृत सुशिक्षित एवं जिम्मेदार नागरिक बन सकें। हम पांचों भाई बहन उनके आदर्शों पर चलते हुए अपने अपने क्षेत्र में उच्चतम स्थान हासिल करने में सफल रहें। आज अगर मां पापा होते तो उन्हें बड़ी प्रसन्नता होती और वो लोग गौरवान्वित होते अपनी दी हुई परवरिश पर। पांच बच्चों को छोड़कर असमय परलोक प्रस्थान कर गए आज उनके नाम से 30 सदस्य हो गए हैं और ईश्वर की कृपा और मां पापा के आशीर्वाद से सभी फल फूल रहें हैं। मां का कठोर अनुशासन निगाहों का इशारा ही काफी होता था हमें संभलने के लिए और पापा का अगाध प्रेम हमें उनका भरोसा तोड़ने नहीं दिया।
हम बहुत खुशनसीब हैं जो उनकी संतान हैं हमें गर्व है अपने पापा पर जिन्होंने हर क्षेत्र में अपनी विशिष्टता दर्ज कराई है। परिवार और समाज में जो मान सम्मान और लोगों का स्नेह उन्हें मिला और उन्होंने जो लोगों में बांटा वो उनके जाने के तीस साल बाद भी हम सभी को मिल रहा है। पापा का उदार हृदय, मिलनसार स्वभाव और बच्चों का विशेष देखभाल चाहें बच्चा किसी का भी हो समान रूप से फिक्रमंद रहना मुझे याद है गर्मी की छुट्टियों में हमारे घर पर बुआ लोगों का आना और उनके बच्चों के साथ मिल जुलकर रहना। मौसी, मामा, बुआ, चाचा और बड़े पापा, बड़ी मां और सभी भाई-बहनों का एकसाथ रहना।
गीत, संगीत, चेस और लूडो का खेलना। बिजली कट जाने पर छत पर पानी छिड़क कर बिस्तर लगाना भी खूब याद है मुझे। इम्तिहान के दिनों में छुट्टी लेकर हमें पढ़ाना ब्रह्म बेला में उठकर संतरे वाली चाय बनाकर जगाना सबसे ज्यादा याद आता है क्योंकि पापा के जाने के बाद कभी किसी ने मुझे संतरे वाली चाय नहीं पिलाई। अपना घर छोड़े हुए सदियां बीत गई लेकिन वो दरो दीवार आंखों के सामने है जहां पापा के हाथों से लिखे कुछ नोट्स चिपकाए हुए थे। सीढ़ियों से चढ़ कर ऊपर पहुंचते ही बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था "भावना से कर्तव्य ऊंचा होता है ।" इसी तरह की बहुत सी शिक्षाप्रद और प्रेरणादायक कोटेशन लिख कर लगा रखें थे। हर बात हमें बोल कर नहीं बल्कि जगह जगह संदेश चिपका कर, कहानी और कविताओं के माध्यम से सीखाते थें। कुछ नियम और सिद्धांत उनके अटल थे जैसे पहली तारीख को तनख्वाह मिलने के बाद भगवान को प्रसाद चढ़ाना और एक दिन के लिए मां को रसोईघर से छुट्टी दिलाना। भारत जलपान में मसाला डोसा और रस माधुरी खाना और मार्डन कुल्फी हाउस में जाकर कुल्फी खाना। सर्दियों के मौसम में एलाइट होटल में कॉफी पीना और जब भी कोई सामाजिक फिल्म आता तो पूरा परिवार इकट्ठे जाकर देखना। सिंदधी चाट हाउस में चाट खाना। बात बात पर इनाम पाना। हमारे द्वारा किए गए अच्छे कामों की प्रसंशा करना, सराहना और इनाम देकर प्रोत्साहित करना सबसे ज्यादा प्रभावित किया था। मैंने अपने जीवन में पापा के बहुत सारे गुणों को उतार लिया है। कविता और कहानियां लिखने का हुनर भी मुझे पापा से मिला है। पापा की एक कविता मुझे शब्द श: याद है जो पापा ने अपने शादी के सिल्वर जुबली पर मां को भेंट स्वरूप दिया था । मां के सम्मान में सैकड़ों पंक्तियां शहद में डूबो कर लिखा था और एक कविता जिसमें हम पांचों भाई बहनों के नाम शामिल थे।
"अतुल शक्ति दो मां मुझे
आलोक जग में फैला सकूं
संगीत के मधुर तान पर
सरिता की तरह ...
कविता जग को सुना सकूं।" यह कविता पापा ने 1980 में लिखी थी।